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Ghatshila News :सड़क व शिक्षा के लिए तरस रही कृष्णा नगर की चार हजार आबादी

घाटशिला : गांव के बच्चे शिक्षा के ढाई किलोमीटर दूर जाने को विवश, गांव में आंगनबाड़ी केंद्र नहीं, पगडंडी से होकर आवागमन करते हैं लोग

घाटशिला. घाटशिला अनुमंडल कार्यालय के पास एनएच-18 के किनारे बसे कृष्णा नगर की करीब चार हजार की आबादी नारकीय जीवन जीने को विवश है. बरसात में आवागमन के लिए खासी परेशानी होती है. ग्रामीणों का आरोप है कि एनएच से गांव तक पगडंडी का रास्ता है. उससे कुछ दूरी पर सरकारी भूमि है. कृष्णानगर के बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए ढाई किलोमीटर दूर बनकाटी आदर्श मध्य विद्यालय और जगदीश चंद्र हाई स्कूल जाना पड़ता है. गांव में छोटे-छोटे बच्चों के लिए आंगनबाड़ी केंद्र नहीं है.

गांव के अंदर 200 मीटर पीसीसी सड़का, बाहर पगडंडी

कृष्णानगर से कुछ आगे सरकारी भूमि होने के कारण सड़क नहीं बन पा रही है. गांव के अंदर लगभग चार साल पूर्व 200 मीटर पीसीसी सड़क बनी. गांव से बाहर जाने के लिए आज तक सड़क नहीं बन पायी है. कृष्णा नगर लगभग 15 साल पूर्व बसा है. पहले कृष्णा नगर के ग्रामीण एनएच 18 के किनारे मनोहर कॉलोनी में रहते थे. एनएच चौड़ीकरण के कारण यहां से लगभग 60 घरों को विस्थापित के नाम पर कृष्णा नगर में बसाया गया. कृष्णा नगर में बिजली तो आयी है. सरकारी चापाकल भी लगे हैं. लगभग चार लाख की लागत से सोलर जलमीनार भी लगी है. यहां के ग्रामीण के पास अपनी भूमि नहीं है. इसके कारण उन्हें सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं मिलता है.

क्या कहते हैं ग्रामीण

पांच साल से रह रहीं सलमा टुडू, एक साल पूर्व बसे बरियार टुडू, 2016 से रह रही गुलाबी हेंब्रम, 6 साल से रह रहे दीपक अधिकारी, दस साल से रह रहे विमल पातर व आशा दास ने कहा कि एनएच चौड़ीकरण के नाम पर दूसरे किनारे पर बसा दिया गया. सुविधा के नाम पर बिजली, चापाकल और सोलर जलमीनार दी गयी. सड़क नहीं है. बरसात में पगंडडी पर जगह-जगह पानी जम जाता है. पुलिया और कल्वर्ट नहीं होने से परेशानी होती है.

खंभों पर लगीं लाइटें नहीं जलतीं

कृष्णा नगर में लगभग 12 खंभों पर लाइटें लगायी गयी हैं. एक भी लाइट नहीं जलती है. गांव की महिलाओं का आरोप है कि खराब लाइट की मरम्मत की दिशा में पहल नहीं होती है. रात में टॉर्च और मोबाइल ही सहारा बनता है. नेता सिर्फ आश्वासन देते हैं. कृष्णा नगर के लोगों के पास अपनी भूमि नहीं है. उन्हें प्रधानमंत्री और अबुआ आवास का लाभ नहीं मिल रहा है. यहां बसे लोग खुद की कमाई से पक्के मकान बनाकर रह रहे हैं.

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