घाटशिला. बिक्रमपुर तालाब ‘सरकारी या रैयत’ के घमसान पर ग्रामीणों का प्रदर्शन, कहा
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सरकारी तालाब की कैसे कर दी गयी बंदोबस्ती
घाटशिला. बिक्रमपुर तालाब ‘सरकारी या रैयत’ के घमसान पर ग्रामीणों का प्रदर्शन, कहा घाटशिला : घाटशिला की कासिदा पंचायत के बिक्रमपुर स्थित तालाब सरकारी है या फिर रैयत, पर घमसान मचा है. यहां के ग्रामीणों का कहना है कि यह तालाब 1964 के पूर्व अनाबाद बिहार सरकार की थी. फिर हराधन चंद्र पंडा के नाम […]
घाटशिला : घाटशिला की कासिदा पंचायत के बिक्रमपुर स्थित तालाब सरकारी है या फिर रैयत, पर घमसान मचा है. यहां के ग्रामीणों का कहना है कि यह तालाब 1964 के पूर्व अनाबाद बिहार सरकार की थी. फिर हराधन चंद्र पंडा के नाम बंदोबस्ती कैसे हो गयी. सरकारी तालाब की बंदोबस्ती नहीं होती है. वहीं तालाब के रैयतदार मदन पंडा का कहना है कि यह तालाब मेरे नाना के नाम है, जिसके सभी कागजात उनके पास हैं.
गुरुवार को तालाब के पास वरुण सिंह मुंडा, सुरेंद्र मुंडा, भीम मुंडा, विश्वजीत मुंडा आदि के नेतृत्व में पुरुष और महिलाओंं ने विरोध जताया और कहा कि तालाब का जीर्णोद्धार हो और इसका उपयोग जनहित में हो.
ग्रामीणों द्वारा प्रस्तुत खतियान के मुताबिक थाना नंबर 111, खाता नंबर 64, प्लॉट नंबर 24, रकबा 1.05 एकड़ भूमि पर फैला यह तालाब अनाबाद बिहार सरकार की थी. खतियान के मुताबिक 1967 में यह तालाब सीएनटी एक्ट की धारा 90 आदेशानुसार बिहार सरकार के खाता नंबर 64 से खारिज और खाता नंबर 15 में दर्ज हुआ.
खतियान में सहायक बंदोबस्त पदाधिकारी का मुहर अंकित है. तदनुसार खाता नंबर 15 हराधन चंद्र पंडा पिता श्वेत मोहन पंडा के नाम दर्ज हो गया. ग्रामीणों का कहना है कि इस तालाब का उपयोग सार्वजनिक रूप से होता आ रहा है, क्योंकि यह तालाब सरकारी थी. ग्रामीणों का कहना है कि सरकारी तालाब की बंदोबस्ती होने का प्रावधान नहीं है.
इधर, तालाब के रैयतदार मदन पंडा का कहना है कि राजा इश्वर चंद्र धवलदेव से कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद यह तालाब उनके नाना के नाम हुई. सभी कागजात उनके पास है. पूर्व में भी तालाब को लेकर विवाद हुआ था, लेकिन कागजात देखने के बाद पदाधिकारी संतुष्ट हुए.
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