दुमका. एसपी कॉलेज के मनोविज्ञान विभाग द्वारा संचालित मानसिक स्वास्थ्य परामर्श केंद्र एवं मेंटल हेल्थ मिशन इंडिया के संयुक्त तत्वावधान में “ईटिंग डिसऑर्डर का युवाओं पर प्रभाव एवं निदान ” विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया. विभागाध्यक्ष डॉ विनोद कुमार शर्मा ने कहा कि युवाओं में ईटिंग डिसऑर्डर एक कॉमन मनोरोग समस्या है. इसकी रोकथाम आवश्यक है. इस बीमारी के कारण युवा एनोरेक्सिया नर्वोसा, बुलिमिया, बिंज ईटिंग आदि रोग लक्षणों से सफर करते हैं. पतला और स्मार्ट शरीर बनाने, मीडिया आकर्षण आदि के लिए युवा जहां कम खाना और ज्यादा एक्सरसाइज पसंद करते हैं, वहां वो थोड़ा-थोड़ा खाना, आधा पेट खाना, जंक फूड आदि का ज्यादा सेवन कर स्वास्थ्य खराब भी कर रहे हैं. ईटिंग डिसऑर्डर के कारण युवा कैंसर से आत्महत्या तक का शिकार हो रहे हैं. खान-पान की अनियमितता व कमी के कारण विद्यार्थी पढ़ाई में अपेक्षित ऊर्जा लगा नहीं पाते हैं, जिससे ध्यान-धारणा में कमी आती है. पौष्टिक आहार की कमी के कारण विद्यार्थी विषयों को स्मरण नहीं कर पाते हैं, जिससे उसके परफॉर्मेंस में कमी आती है और तनावों से घिरकर आत्महत्या के लिए उन्मुख होते हैं. नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे (2015) के अनुसार जहां इस डिसऑर्डर से 2 से 2.4 प्रतिशत लोग प्रभावित हैं, तो वहीं किशोर और युवाओं में इसका प्रचलन दर 2 से 3 प्रतिशत के बीच बतलाया जाता है. एक सर्वे के मुताबिक भारत में जहां 7.8 प्रतिशत किशोरवय लड़कियां इससे प्रभावित हैं, तो वहीं यह विकृति पुरुषों के बनिस्पत महिलाओं में ज्यादा है. डॉ शर्मा ने यह भी बताया कि इस विकृति से प्रभावित युवाओं में चिंता विषाद, सामाजिक पलायन, ऑब्सेस्ड मनोवृत्ति, हीनता की भावना आदि मनोरोग लक्षणों का अप्रत्यक्ष रूप से निर्माण होता है. इसके लिए न्यूट्रिशन परामर्श, कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी, फोकस्ड फैमिली थेरेपी आदि आवश्यक होता है.
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