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धर्म की स्थापना व अधर्मियों के नाश के लिए आये श्रीकृष्ण: अभयानंद

धर्म की स्थापना व अधर्मियों के नाश के लिए आये श्रीकृष्ण: अभयानंद

छोटी रण बहियार में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा सुनने उमड़े श्रोता प्रतिनिधि,रामगढ़ छोटी रण बहियार में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के चतुर्थ दिवस पर कथा व्यास अभयानंद अभिषेक जी महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण के जन्म और उनकी बाल लीलाओं का सुंदर वर्णन किया. उन्होंने बताया कि द्वापर युग में जब धरती पर अधर्म, अन्याय और अनाचार बढ़ गया था, तब भगवान श्रीकृष्ण का अवतरण हुआ. कंस, जरासंध और शिशुपाल जैसे अत्याचारी शासकों के अत्याचार से चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था. समाज में निराशा व्याप्त थी, और ऐसे ही कठिन समय में धर्म की स्थापना के लिए श्रीकृष्ण प्रकट हुए. कथा व्यास ने कहा कि जब अन्याय अपनी सीमा पार कर जाता है, तब ईश्वर अवतार लेकर धर्म की स्थापना करते हैं. भगवान के जन्म के समय उनके माता-पिता की बेड़ियां स्वतः खुल गईं और कंस के कारागार के द्वार अपने आप खुल गए. वसुदेव ने नवजात श्रीकृष्ण को कंस के अत्याचार से बचाने के लिए घनघोर वर्षा और अंधेरी रात में यमुना नदी पार कर उन्हें गोकुल पहुंचाया. इसके बाद भी अधर्म ने बालकृष्ण का अंत करने के कई प्रयास किए. राक्षसी पूतना ममतामयी स्त्री का रूप धारण कर बालकृष्ण को मारने आई, लेकिन शिशु कृष्ण ने उसे ही मृत्यु के घाट उतार दिया. इसके अलावा बकासुर, शकटासुर और अघासुर जैसे कई राक्षस भी बालकृष्ण को मारने आए, परंतु सभी असफल रहे. श्रीकृष्ण के गोकुल पहुंचते ही वहां आनंद और उल्लास का वातावरण छा गया. बालकृष्ण ने अपनी बाल लीलाओं के माध्यम से अनेक असुरों का नाश किया. उन्होंने कालिया नाग का दमन किया, गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा उंगली पर उठाकर बृजवासियों की रक्षा की और माता यशोदा को अपने मुख में सम्पूर्ण ब्रह्मांड का दर्शन कराया. कथा व्यास ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने अपने जन्म और लीलाओं के माध्यम से संसार को यह संदेश दिया कि धर्म की रक्षा के लिए अधर्म का नाश आवश्यक है. उन्होंने बिना संकोच कंस द्वारा भेजे गए सभी आतताई राक्षसों का वध किया. कथा व्यास ने यह भी बताया कि पहले देवता और दानव भिन्न होते थे, लेकिन वर्तमान समय में ये प्रवृत्तियां हमारे भीतर ही मौजूद हैं. ईर्ष्या, द्वेष और अभिमान दानवीय प्रवृत्तियां हैं, जबकि दया, ममता, करुणा, सद्भावना, सहयोग, अनुशासन और शिष्टाचार दैवीय गुण हैं. जीवन में इन दोनों प्रवृत्तियों के बीच का संघर्ष ही देवासुर संग्राम है. उन्होंने यह भी समझाया कि क्रिया और लीला में अंतर होता है. जिस कार्य में सुख, अभिमान और प्राप्ति की इच्छा होती है, उसे क्रिया कहा जाता है. वहीं, जब अभिमान और सुख की इच्छा छोड़कर दूसरों के हित के लिए कार्य किया जाता है, तो वह लीला कहलाती है. भगवान श्रीकृष्ण ने यही उदाहरण प्रस्तुत किया. उन्होंने एक ओर कंस के अत्याचार से मथुरा के लोगों को मुक्त किया और दूसरी ओर इंद्र के अभिमान को समाप्त कर गोवर्धन पूजा की परंपरा प्रारंभ की. श्रीमद्भागवत कथा के इस पावन अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव भी धूमधाम से मनाया गया. कथा वाचक द्वारा प्रस्तुत भक्ति गीत “नंद घर आनंद भयो ” और “जय कन्हैया लाल की ” के उद्घोष से कथा स्थल पर साक्षात गोकुल का अनुभव होने लगा और श्रद्धालु भक्तिमय माहौल में झूम उठे.

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Prabhat Khabar News Desk
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