जनजातीय हिजला मेला. ग्राम प्रधान करेंगे शुभारंभ, खेलकूद के साथ कई कार्यक्रम होंगे
संवाददाता, दुमकाराजकीय जनजातीय हिजला मेला महोत्सव न केवल एक मेला है, बल्कि यह जनजातीय समुदाय की संस्कृति, परंपरा और लोककला का उत्सव भी है. यह मेला वर्षों से समाज के विभिन्न वर्गों को जोड़ने और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने का माध्यम रहा है. इस आयोजन के माध्यम से न केवल लोकनृत्य, खेल-कूद और कला को मंच मिलता है, बल्कि समाज में आपसी सद्भाव और मेलजोल की भावना भी प्रबल होती है. इस वर्ष महोत्सव का विधिवत उद्घाटन शुक्रवार, 21 फरवरी 2025 को पूर्वाह्न 11:00 बजे स्थानीय ग्राम प्रधान द्वारा किया जायेगा. यह परंपरा पिछले तीन दशकों से चली आ रही है कि उद्घाटन का कार्य ग्राम प्रधान ही करते हैं, जबकि मौके पर प्रशासनिक अधिकारी और जनप्रतिनिधि आदि उपस्थित रहते हैं. आमतौर पर मेले या महोत्सवों में नेताओं और अधिकारियों के बीच उद्घाटन की होड़ देखी जाती है, लेकिन इस मेले के मामले में स्थिति अलग है. पहले राज्यपाल और मुख्यमंत्री उद्घाटन करते थे, लेकिन कुछ कारणों के बाद अब राजनेता और अधिकारी फीता काटने से परहेज करते हैं.
जॉन राबर्ट्स कास्टेयर्स ने रखी थी मेले की नीव
जनजातीय हिजला मेले की शुरुआत 3 फरवरी 1890 को तत्कालीन संताल परगना जिले के उपायुक्त जॉन राबर्ट्स कास्टेयर्स ने की थी. इसका उद्देश्य संताल हूल के बाद आदिवासियों और प्रशासन के बीच की दूरी को कम करना था. मेला जनजातीय समुदाय की पारंपरिक संस्कृति, रीति-रिवाज और लोककला को संरक्षित करते हुए लोगों से सीधे संवाद का मंच बन गया.
मेले को लेकर दो मान्यताएं हैं प्रचलित
‘हिजला’ शब्द के बारे में दो मान्यताएं प्रचलित हैं. पहली मान्यता के अनुसार इसका संबंध अंग्रेजी शब्द ‘हिज लॉज’ से है, जबकि दूसरी मान्यता के अनुसार इसका नामकरण स्थानीय गांव हिजला के आधार पर किया गया. वर्ष 1975 में संताल परगना के तत्कालीन उपायुक्त गोविंद रामचंद्र पटवर्धन ने इस मेले के नाम में ‘जनजातीय’ शब्द जोड़ा. इसके बाद, झारखंड के अलग राज्य बनने के बाद वर्ष 2008 में इसे महोत्सव के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया. वर्ष 2015 में इसे राजकीय मेला घोषित किया गया और तब से यह राजकीय जनजातीय हिजला मेला महोत्सव के नाम से प्रसिद्ध है. राजकीय जनजातीय हिजला मेला महोत्सव अपनी सांस्कृतिक विविधता, पारंपरिक कलाओं और खेलों के माध्यम से समाज के सभी वर्गों को एक मंच पर लाता है. यह आयोजन न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि झारखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को सहेजने और अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास भी है.
उद्घाटन से पहले उल्लास जुलूस और सांस्कृतिक कार्यक्रम
महोत्सव की सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं. उद्घाटन समारोह के दिन उल्लास जुलूस, ध्वजारोहण और विभिन्न पारंपरिक नृत्यों का आयोजन मुख्य आकर्षण रहेगा. इनमें तीरंदाजी, घोड़ा नृत्य, छऊ नृत्य और पाईका नृत्य विशेष रूप से दर्शकों का मन मोहेंगे. हर दिन सांस्कृतिक और खेलकूद प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जायेगा.
किस दिन कौन-सा कार्यक्रम
– 22 फरवरी : पारंपरिक नृत्य, खेल-कूद प्रतियोगिता, क्विज और सांस्कृतिक कार्यक्रम.
– 23 फरवरी : कवि सम्मेलन, जादोपटिया चित्रांकन प्रतियोगिता, वॉलीबॉल, खो-खो, कबड्डी और सांस्कृतिक प्रस्तुतियां. – 24 फरवरी : भारोत्तोलन, कुश्ती, भाषण प्रतियोगिता और चदर-बादोनी नृत्य. – 25 फरवरी : जनजातीय त्योहार पर निबंध लेखन, सांस्कृतिक कार्यक्रम और खेलकूद प्रतियोगिताएं. – 26 फरवरी: पारंपरिक फैशन शो, परिचर्चा, नुक्कड़ नाटक और सांस्कृतिक कार्यक्रम. – 27 फरवरी : बाल कवि गोष्ठी, खो-खो और वॉलीबॉल का फाइनल, सांस्कृतिक कार्यक्रम और म्यूजिकल नाइट. – 28 फरवरी : समापन समारोह में नटुआ नृत्य, घड़ा उतार प्रतियोगिता, पुरस्कार वितरण और आतिशबाजी के साथ महोत्सव का समापन होगा.विशेष आकर्षण और प्रदर्शनी
महोत्सव के पूरे अवधि में कृषि प्रदर्शनी, ट्राइबल म्यूजियम और विभिन्न विभागों की प्रदर्शनियां दर्शकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र रहेंगी. ये प्रदर्शनियां न केवल झारखंड की पारंपरिक कृषि पद्धतियों और जनजातीय जीवनशैली को दर्शाती हैं, बल्कि नई तकनीकों और सरकारी योजनाओं के बारे में जागरूकता भी बढ़ाती हैं.
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