मधुपुर. शहर के भेड़वा नवाडीह स्थित राहुल अध्ययन केंद्र में हिन्दी के प्रसिद्ध शायर दुष्यंत कुमार व रधुवीर सहाय को पुण्यतिथि पर याद किया गया. लोगों ने उनकी तस्वीर पर माल्यार्पण कर श्रद्धासुमन अर्पित किया. इस अवसर पर धनंजय प्रसाद ने कहा कि दुष्यंत कुमार एक युग का नाम है. जहां से हिन्दी गजल की विकास यात्रा शुरू होती है. उनकी गजलें व गीत आम आदमी की पीड़ा का मुखरित स्वर है. गुंडे की जुबान बनकर आती है, जो प्रताड़ना सहने रहने है पर कुछ कह नहीं पाते है. उन्होंने हिन्दी गजल को एक श्री दिशा दिया है. वे गजल की दुनिया में नये तेवर लेकर आये, जिसमें व्यवस्था के प्रति आक्रोश व व्यंग्य दिखता है. दुष्यंत ने अपनी गजलों के जीवन की सामंजस्यपूर्ण व्यवस्था और व्यक्ति सामंजस्यपूर्ण विकास का व्यापक अर्थ प्रस्तुत किया. यही कारण है कि पांच दशक के सफर के बावजूद भी उनकी गजलें की आत्मिक क्षमताओं को उनके आचरण को कहीं डींगने नहीं दिया. वैसे तो दुष्यंत जी गजलकार के अलावे गीतकार व उपान्यासकार थे, पर उन्हें सर्वाधिक ख्याति गजल व गीत से ही मिली. उनकी प्रमुख रचनाएं है सूर्य का स्वागत, आग जलनी चाहिए, जलते हुए वन का बज्में, मानदंड बदलों, नदी की धार में व हो गयी पीर पर्वत सी आदि है.
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