जसीडीह : एक ओर राज्य व केंद्र सरकार उद्योग लगाने के लिए बाहरी कपंनियों के लिए रेड कारपेट बिछा रही है, वहीं स्थानीय उद्यमी सिसक-सिसक अपना उद्योग किसी तरह चला रहे हैं. स्थानीय उद्यमियों को न तो कोई सरकारी प्रोत्साहन मिलता है और न ही बैंक ही ऐसे उद्योगों को सहयोग करते हैं.
ऐसे ही समस्याओं से जूझ रहे हैं जसीडीह इंडस्ट्रीयल एरिया के उद्यमी निरंजन उपाध्याय. वे निरंजन टेक्स्टाइल्स नामक कंपनी संचालित कर रहे हैं. 1985 में स्थापित यह कारखाना कई बार अभाव के कारण बंद हुआ. फिर खुला. सरकारी उदासीनता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि इस उद्योग के लिए 1986 में ही बिजली कनेक्शन के लिए अप्लाई किया गया था, इसके लिए 1.07 लाख रुपये जमा भी कराया गया, लेकिन बिजली नहीं मिली. हारकर न्याय के लिए बिजली विभाग के खिलाफ कोर्ट की शरण में गये हैं.
काठमांडू, कोलकाता व असम से मिलता था आर्डर
उद्यमी श्री उपाध्याय ने बताया कि 1985 में कारखाना का ट्रायल प्रोडक्शन लिया गया था. लेकिन कार्य पूर्ण नहीं होने के कारण प्रोडक्शन चालू नहीं हो पाया. 1987 में व्यवसायिक रूप से कॉमर्शियल प्रोडक्शन शुरू हुआ. इस दौरान बैंक से किसी प्रकार का सहयोग नहीं मिलने के कारण 1989 में पुन: बंद पड़ गया. जबकि उत्पादन के लिए काठमांडू, असम, कोलकाता से कपड़े की अच्छी मांग थी.
झारक्राफ्ट ने दिया सहारा, पुन: चालू हुआ
इस बीच कारखाना को चालू करने के लिए दो से तीन बार कोशिश किया गया लेकिन आर्थिक अभाव के कारण बंद हो जाता था. उन्होंने बताया कि बिहार-झारखंड में एक ऐसी इकाई है जिसमें राज्य सरकार का 58 प्रतिशत हिस्सा है, 2010 से झारक्राफ्ट के सहयोग से कारखाना को फर से चालू कराया गया. बीच में झारक्राफ्ट बंदी के कगार पर होने के कारण हमें काफी कठिनाई का सामना करना पड़ा. उन्होंने बताया कि राज्य सरकार की मदद से केवल सरकारी विभागीय क्रय कर ले तो यह इकाई सुचारू रूप से चल सकता है, और वित्तीय संस्थाओं के बकाया राशि का भी भुगतान कर पायेंगे. उन्होंने बताया कि राज्य खादी भंडार ने काम दिया था लेकिन किसी कारणवश काम बंद कर दिया.