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कभी फसलों की बुझती थी प्यास, अब खुद पानी की तलाश
सारवां : 1960 के दशक में एकीकृत बिहार के वक्त सारवां प्रखंड के कुसुमथर जोरिया पर करोड़ों की लागत से बाबूडीह खुरखुंटी के पास डैम का निर्माण कराया गया था. लेकिन, हजारों हेक्टेयर जमीन को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए बना यह डैम आज खुद पानी के लिये तरस रहा है. डैम अपने […]
सारवां : 1960 के दशक में एकीकृत बिहार के वक्त सारवां प्रखंड के कुसुमथर जोरिया पर करोड़ों की लागत से बाबूडीह खुरखुंटी के पास डैम का निर्माण कराया गया था. लेकिन, हजारों हेक्टेयर जमीन को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए बना यह डैम आज खुद पानी के लिये तरस रहा है.
डैम अपने निर्माण के बाद कुछ दिनों तक तो सुचारु रूप से सिंचाई सुविधा उपलब्ध करा रहा था. लेकिन, आठ सालों से यह डैम खुद सूखे की मार झेल रहा है. पूरा डैम बालू से भरा हुआ है. अब यह असमय ही सूख जाता है. जिसकी कीमत बारिश के अभाव में किसानों को फसल की बर्बादी के रूप में चुकाना पड़ रहा है.
किसानों का कहना है कि सारवां व सोनारायठाढ़ी के सात पंचायतों के हजारों हेक्टेयर जमीन का पटवन इस डैम से होता था. सूखे की मार झेल रहे किसानों के लिए अब रबि फसल की चिंता सताने लगी है. किसानों ने प्रशासन व जनप्रतिनिधियों से अविलंब समस्या के समाधान की मांग की है.
डैम में भर गया बालू, नहीं बचा पानी
बाबूडीह डैम दो प्रखंड की लाइफ लाइन है. बालू भर जाने से हजारों एकड़ जमीन में लगी धान की फसल बर्बाद हो गयी. अगर बालू हटा लिया जाये तो पानी ठहर सकेगा. साथ ही आपदा राहत के तहत किसानों को खाद बीज उपलब्ध कराये तो कुछ रबी फसल की खेती हो सकती है.
मुकेश कुमार, प्रमुख, सारवां
किसानों की जिंदगी खेती पर टिकी है, लेकिन उसकी खेती ही चौपट हो गयी है. डैम के सूख जाने से रबी की खेती भी कर पाना मुश्किल हो जायेगा. सरकार किसानों को राहत पैकेज दे व डेम की सफाई के साथ मुफ्त में खाद बीज मुहैया कराये.
संजय राय, प्रमुख, सोनारायठाढ़ी
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