सीएचसी में तीन से चार डॉक्टरों की प्रतिनियुक्ति थी, लेकिन एक से अधिक नहीं मिले. महिला चिकित्सक की आस में गांव की महिलाएं परेशान दिखी. अधिकांश जगहों पर काफी देर तक दवाखाना और एक्स-रे कक्ष भी बंद मिला.
कार्यशैली का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि गांव के अस्पताल में परचा तक काटने वाला कोई नहीं था, मरीज खुद परचा काट कर डॉक्टर के पास जाते देखे गये. बहरहाल, करोड़ों खर्च कर हर जिले में गांव के अस्पताल का संचालन सरकार कर रही है. लेकिन उनके स्वास्थ्य महकमा के लोग गांव की गरीब जनता के पैसे से अपनी नौकरी नहीं कर रहे हैं बल्कि स्वास्थ्य केंद्रों को ही बीमार बनाने पर तुले हैं.