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जहां होती थी अफीम की खेती, आज वहां उगाया जा रहा है केसर

चतरा के हंटरगंज प्रखंड की जोल्डीहा पंचायत के कई गांवों में कभी बड़े पैमाने पर अफीम के लिए पोस्ते की खेती होती थी

सीताराम यादव, कान्हाचट्टी (चतरा) : चतरा के हंटरगंज प्रखंड की जोल्डीहा पंचायत के कई गांवों में कभी बड़े पैमाने पर अफीम के लिए पोस्ते की खेती होती थी. पोस्ता की खेती से जमीनें बंजर हो रही थीं, युवाओं का जीवन भी बर्बाद हो रहा था. अफीम के दुष्प्रभाव को देखते हुए पंडरकोला के किसानों ने पोस्ता की खेती छोड़ केसर की खेती अपना ली है.

वर्ष 2019 में गांव के तीन किसानों क्रमश: पवन कुमार भोगता, रूपलाल सिंह भोगता व विनोद भोगता ने केसर की खेती की शुरुआत की थी. केसर की खेती से इन किसानों को 20 लाख रुपये की आमदनी हुई. इसे देख गांव के अन्य किसानों ने भी केसर की खेती करने का मन बनाया है. पवन पटना से बीज मंगाते हैं.

  • तीन किसानों ने शुरू की केसर की खेती, एक बार की खेती से कमाये 20 लाख

  • इनसे प्रेरणा लेकर गांव के अन्य किसानों ने भी केसर की खेती का मन बनाया

  • अफीम की खेती से जमीन के साथ युवाओं का जीवन भी बर्बाद हो रहा था

  • व्यापारी केसर की खरीदारी करने के लिए हमेशा संपर्क में रहते हैं

केसर के पौधे का हर हिस्सा होता है कीमती : केसर के पौधे के सभी भाग कीमती होते हैं. इसके फल से फूल निकलता है, जो लाल रंग का होता है. फूल को तोड़ कर सुखाया जाता है. सूखा हुआ फुल ही केसर कहलाता है. यह 60-70 हजार रुपये किलो बिकती है. केसर का फल डोडा कहलाता है. डोडा से निकलनेवाला बीज 30-40 रुपये किलो बिकता है. वहीं, डोडा पांच से सात हजार रुपये में बिकता है. एक कट्ठा में आधा किलो केसर, तीन किलो बीज व सात-आठ किलो डोडा तैयार होता है.

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