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Chaibasa News : इस वर्ष चार जून से शुरू हो रही है हज यात्रा, चक्रधरपुर से सात यात्री शामिल

इस्लामी दृष्टिकोण से हज का मतलब है अल्लाह की इबादत के उद्देश्य से काबा (मक्का) की यात्रा करना और वहां कुछ विशेष कार्यों को विशेष दिनों में संपन्न करना.

चक्रधरपुर.

अरबी कैलेंडर वर्ष के अंतिम माह जिलहिज्जा में प्रत्येक वर्ष पवित्र हज का आयोजन अरब के मक्का और मदीना शहर में होता है. इस वर्ष 4 जून से हज यात्रा शुरू हो रही है. चक्रधरपुर से सात लोग हज यात्रा के लिए निकल चुके हैं. इसके लिए भारत सहित दुनिया से करोड़ों हज यात्री अरब पहुंच चुके हैं. ””””हज”””” शब्द अरबी भाषा का है, जिसका अर्थ है ””””इरादा करना”””” या ””””किसी पवित्र स्थान की यात्रा””””. इस्लामी दृष्टिकोण से हज का मतलब है अल्लाह की इबादत के उद्देश्य से काबा (मक्का) की यात्रा करना और वहां कुछ विशेष कार्यों को विशेष दिनों में संपन्न करना. यह इस्लाम के पांच मूल स्तंभों में एक है.

हज की धार्मिक पृष्ठभूमि

अल्लाह के नबी हजरत इब्राहिम (अ.स.) को अल्लाह ने आदेश दिया कि वे अपने बेटे हजरत इस्माइल (अ.स.) के साथ मिलकर खाना-ए-काबा (अल्लाह का घर) का निर्माण करें. इसके बाद अल्लाह ने उन्हें आदेश दिया कि वे लोगों को हज के लिए बुलाएं और लोगों में हज का ऐलान करने का हुक्म दिया. हजरत इब्राहिम (अ.स.) ने अल्लाह के आदेश से अपनी पत्नी हाजरा और बेटे इस्माइल को मक्का की वीरान घाटी में छोड़ दिया. जब हजरत हाजरा को पानी नहीं मिला, तो उन्होंने सफा और मरवा नामक दो पहाड़ियों के बीच सात बार दौड़ लगाई. इसी को सई कहा जाता है जो आज भी हज का हिस्सा है. इसी दौरान अल्लाह ने हजरत इस्माइल (अ.स.) के पैरों से जमजम का पानी निकाला. हजरत इब्राहिम (अ.स.) को सपना आया कि वे अपने बेटे की कुर्बानी कर रहे हैं. वे अल्लाह की आज्ञा का पालन करने चल पड़े. जब वे बेटे को कुर्बान करने ही वाले थे, अल्लाह ने एक दुम्बा (मेंढा) भेज दिया और उसे कुर्बान किया गया. इस घटना की याद में ईद-उल-अजहा (बकरीद) मनायी जाती है और हज में कुर्बानी की रस्म अदा की जाती है.

इस्लाम में हज की शुरुआत

इस्लाम से पहले भी अरब के लोग हज करते थे, लेकिन उसमें शिर्क और बिदअत (गलत रस्में) मिल चुकी थीं. पैगम्बर मोहम्मद (स.) ने इन ग़लत परंपराओं को समाप्त किया और 10 हिजरी में अपना पहला और अंतिम हज (हजतुल विदा) अदा किया. इस हज में आपने (स.) ख़ुत्बा-ए-हजतुल विदा दिया. इसमें मानवाधिकार, स्त्रियों के अधिकार, समानता, इंसाफ और इस्लाम की पूर्णता की घोषणा की गई. रसूल अल्लाह ने फरमाया ””आज मैंने तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन (मजहब) मुकम्मल कर दिया””.

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