चक्रधरपुर. अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक महासंघ और उसके 24 राज्य सहयोगी संगठनों ने हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पदोन्नति और सेवा में बने रहने के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीइटी) को अनिवार्य करने के फैसले पर विरोध जताया है. महासंघ ने जारी पत्र में कहा कि वर्ष 2011 से ही शिक्षक भर्ती मानदंड पर सवाल उठते रहे हैं, जब सेवा-पूर्व प्रशिक्षण के बाद टीइटी लागू किया गया था. महासंघ का कहना है कि अन्य व्यवसायों की तरह शिक्षण पेशे में भी पात्रता मानदंड भर्ती से पहले तय होना चाहिए, न कि कई वर्षों तक सेवा दे चुके शिक्षकों पर बाद में थोप दिया जाए.
शिक्षकों की भारी कमी, फैसले से शिक्षा व्यवस्था चरमरायेगी
पत्र में कहा गया है कि यदि यह फैसला लागू किया गया तो स्कूली शिक्षा व्यवस्था चरमरा जायेगी और पहले से ही शिक्षकों की भारी कमी से जूझ रहे राज्यों में हालात और बिगड़ जायेंगे. इसके कारण बच्चों को शिक्षा छोड़ने या निजी संस्थानों में महंगी पढ़ाई करने के लिए विवश होना पड़ेगा.
देशभर के 98 लाख शिक्षक होंगे प्रभावित
महासंघ ने शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से अपील की कि वह इस मामले में हस्तक्षेप करें और सर्वोच्च न्यायालय से इस फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध करें. उनका कहना है कि देश के लगभग 98 लाख स्कूली शिक्षक इस निर्णय से प्रभावित होंगे. महासंघ के अनुसार, टीइटी की सफलता दर इसके लागू होने के बाद से ही बहुत कम रही है. इसलिए यह शर्त केवल नए अभ्यर्थियों पर लागू होनी चाहिए जो शिक्षक बनने की तैयारी कर रहे हैं, न कि उन पर जो वर्षों से सेवा दे रहे हैं.
सेवारत शिक्षकों पर टीइटी लागू न हो
अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक महासंघ के अध्यक्ष बसवराज गुरिकर और महासचिव कमलाकांत त्रिपाठी की ओर से हस्ताक्षरित इस पत्र के संबंध में झारखंड राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ के पश्चिमी सिंहभूम जिला अध्यक्ष आनंद कुमार गुप्ता ने कहा कि यह फैसला न केवल शिक्षकों के हित के खिलाफ है बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता पर भी नकारात्मक असर डालेगा. उन्होंने कहा कि शिक्षकों को न्याय दिलाने के लिए संगठन हर स्तर पर अपनी आवाज उठायेगा.
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