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Chaibasa News : स्वदेशी संस्कृति को दिलाएं वैश्विक पहचान

चाईबासा. महिला कॉलेज में विश्व आदिवासी दिवस पर सेमिनार आयोजित, डॉ मीनाक्षी ने कहा

चाईबासा. चाईबासा महिला कॉलेज के बीएड विभाग में विश्व आदिवासी दिवस मनाया गया. मौके पर दिशोम गुरु शिबू सोरेन की जीवनी पर एकांकी का प्रस्तुतीकरण किया गया. वहीं, कार्यशाला आयोजित कर आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा व वर्तमान की चुनौतियों पर चर्चा की गयी. मुख्य अतिथि कोल्हान विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर मानव विज्ञान की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. मीनाक्षी मुंडा रहीं. मुख्य वक्ता डॉ मीनाक्षी मुंडा ने कहा कि स्वदेशी संस्कृति को अधिक से अधिक पहचान देने की आवश्यकता है, ताकि विश्व पटल पर पहचान बने. यह दिन स्वदेशी समुदायों के सामने आने वाली चुनौतियों, जैसे भूमि अधिकार, शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दों पर जागरुकता बढ़ाने का अवसर है.

दिशोम गुरु के जीवन पर एकांकी प्रस्तुत

कॉलेज के प्रभारी प्राचार्य डॉ निवारण महथा ने अतिथियों का स्वागत किया. उन्होंने आदिवासी दिवस के महत्व को बताया. वर्ष 1994 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने 9 अगस्त को प्रत्येक वर्ष ‘विश्व आदिवासी दिवस’ मनाने का प्रस्ताव पारित किया. मौके पर बीएड विभाग की छात्राओं ने दिशोम गुरु शिबू सोरेन के जीवन दर्शन को मनमोहक एकांकी के रूप में प्रस्तुत किया. मंच का संचालन डॉ ओनिमा मानकी व धन्यवाद ज्ञापन डॉ अर्पित सुमन टोप्पो ने किया. मौके पर बीएड विभागाध्यक्ष प्रो.मोबारक करीम हाशमी, डॉ बबीता कुमारी, प्रोफेसर शीला समद, प्रोफेसर प्रीति देवगम, प्रोफेसर सितेंद्र रंजन, प्रोफेसर मदन मोहन, प्रोफेसर धनंजय कुमार, डॉ सुचिता बाड़ा, संगीता लकड़ा व बीएड सेमेस्टर टू व थ्री की छात्राएं उपस्थित रहीं.

आदिवासीयत बचाने के लिए भाषा, संस्कृति को अपनी लिपि में पुस्तक रचना जरूरी है

कोल्हान विश्वविद्यालय के जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा के स्नातकोत्तर विभाग में शुक्रवार की संध्या में विश्व आदिवासी दिवस मनाया गया. मुख्य अतिथि मानविकी संकाय के अध्यक्ष डॉ. तपन कुमार खानरा ने कहा कि आदिवासियों की अस्मिता व अस्तित्व बचाने के लिए अपनी भाषा, संस्कृति, परंपरा व रीति-रिवाजों से संबंधित तथ्यों को अपनी लिपि में पुस्तकों की रचना बहुत जरूरी है. अपनी भाषा व साहित्य से ही समाज का संपूर्ण विकास हो सकता है.डॉ बसंत चाकी ने स्वागत भाषण दिया. छात्र-छात्राओं ने स्वागत गीत, कविता, कला संगीत व आदिवासी अस्तित्व पर भाषण दिया. जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा के विभागाध्यक्ष डॉ सुनील मुर्मू ने कहा कि विश्व में आदिवासी ही मानव की मूल संस्कृति के सृजनकर्ता हैं. वे सभ्यता संस्कृति और प्रकृति के असली पोषक हैं. इनकी रक्षा करना मानव समाज की रक्षा के समान है. मौके पर प्रो सुभाष चंद्र महतो, प्रो दानगी सोरेन, गोनो अल्डा, रामदेव बोयपाई, धनु मार्डी, दिकु हांसदा, संगीता महतो और छात्र -छात्राएं उपस्थित थे.

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