चक्रधरपुर. मुहर्रम हजरत इमाम हुसैन ( र.) की स्मृति में प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है. हमें जानना चाहिए कि इमाम हुसैन ( र.) कौन हैं और इस्लाम मजहब में उनका क्या मुकाम है. इमाम हुसैन ( र.) इस्लाम के तीसरे इमाम और पैग़म्बर हजरत मोहम्मद (स.अ.) के नवासे (नाती) थे. वे हज़रत अली (र.) और हज़रत फ़ातिमा ज़हरा ( र.) के बेटे थे. इमाम हुसैन ( र.) की शहादत इस्लामिक इतिहास की सबसे दुखद घटनाओं में से एक है, जो 10 मुहर्रम 61 हिजरी (680 ई.) को कर्बला (वर्तमान इराक) में हुई थी.
इमाम हुसैन ( र.) की शहादत का कारण
उमय्यद ख़लीफ़ा यज़ीद इब्न मुआविया ने सत्ता के लिए इस्लामी मूल्यों और न्याय को कुचलना शुरू किया. यज़ीद चाहता था कि इमाम हुसैन ( र.) उसकी बैअत (वफ़ादारी की क़सम) करें, लेकिन इमाम हुसैन ( र.) ने अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध खड़े होकर इनकार कर दिया. यही उनके कर्बला जाने और शहीद होने का कारण बना.इमाम हुसैन ( र.) के शहीद होने वाले अनुयायियों की सूची
इमाम हुसैन ( र.) के साथ उनके परिवार और कुछ सच्चे साथी थे, जो यज़ीद की 30,000 की फ़ौज के सामने डटे रहे. उनकी कुल संख्या 72 थी. इनमें से प्रमुख शहीदों की सूची निम्नलिखित है.अहले-बैत (परिवार) से शहीद
1. इमाम हुसैन ( र.) इब्न अली ( र.)2. अली अकबर ( र.) इमाम हुसैन ( र.) के जवान बेटे3. अली असग़र ( र.) इमाम हुसैन ( र.) के 6 महीने के बेटे
4. अब्बास इब्न अली ( र.) इमाम हुसैन ( र.) के भाई, जिनकी बहादुरी मशहूर है.5. क़ासिम इब्न हजरत हसन ( र.) इमाम हसन ( र.) के बेटे
6. अउन और मुहम्मद, ज़ैनब ( र.) के बेटेसाथी (सहाबी और अनुयायी) से शहीद
1. हुर इब्न यज़ीद रियाही, पहले यज़ीद की फ़ौज में थे, बाद में तौबा कर हुसैन ( र.) का साथ दिया.
2. हबीब इब्न मज़ाहिर, बुज़ुर्ग और हुसैन ( र.) के खास साथी3. मुस्लिम इब्न औसजा
4. ज़ुहैर इब्न क़ैन5. बुर्ख़ इब्न अब्दुल्लाह6. अनस इब्न हारिस
7. जॉन, एक अफ्रीकी ग़ुलाम, जिन्होंने वफ़ा की मिसाल कायम की.8. सैद और सुआइद, दो भाई
9. नाफे बिन हिलाल10. अब्दुल्लाह बिन उमैरइस तरह कुल 72 शहीदों के नाम इतिहास में दर्ज हैं, जिनमें 18 अहले बैत से और बाकी साथी थे.
शहादत का इस्लाम में महत्व
इस्लाम में शहादत (शहीद होना) का बहुत ऊंचा दर्जा है. कुरआन और हदीसों में इसे सबसे ऊंचे रूहानी दर्जों में से एक माना गया है. कुरआन में है, और जो लोग अल्लाह के रास्ते में मारे गए हैं उन्हें मुर्दा न कहो, बल्कि वे ज़िंदा हैं, लेकिन तुम समझते नहीं.(सूरा अल-बक़रा, आयत 154)
हदीस में कहा गया है कि शहीद को क़ब्र में सवाल नहीं किया जाता, उसे जन्नत का दरवाज़ा दिखा दिया जाता है. (हदीस-ए-नबवी)इमाम हुसैन ( र.) की शहादत का मर्तबा
इमाम हुसैन ( र.) की शहादत को इस्लाम के लिए क़ुर्बानी की सबसे बड़ी मिसाल कहा जाता है. उन्होंने न सिर्फ अपने परिवार की कुर्बानी दी, बल्कि इस्लाम की अस्ल पहचान को यज़ीद जैसे तानाशाह से बचाया. शहादत-ए-हुसैन ( र.), हक़ बनाम बातिल (सत्य बनाम असत्य) की लड़ाई की प्रतीक बन गई. इमाम हुसैन ( र.) और उनके अनुयायियों की कर्बला में शहादत केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि सत्य, इंसाफ़, और ईमानदारी की हमेशा रहने वाली मिसाल है. उनकी शहादत ने इस्लाम को ज़िंदा रखा और बताया कि अत्याचार के सामने झुकना हरगिज़ स्वीकार नहीं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

