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Bokaro News : कोका कमार करमाली : अपनी लोहे की टांगी से अंग्रेजी साम्राज्य को हिला देने वाला गुमनाम योद्धा

Bokaro News : 164वीं जयंती पर विशेष : बिरसा मुंडा के उलगुलान में निभायी थी महत्वपूर्ण भूमिका.

दीपक सवाल, कसमार, जब हम भारत की स्वतंत्रता संग्राम की गाथा पढ़ते हैं, तो अधिकांश बार दिल्ली, लखनऊ, कोलकाता, पुणे या फिर चंपारण जैसे बड़े आंदोलन क्षेत्रों के नाम सामने आते हैं. मगर उस महान संघर्ष की लौ छोटे-छोटे गांवों की मिट्टी में भी जलती रही, जहां ना तो इतिहासकार पहुंचे, ना ही सत्ता की नजर. बोकारो जिले के कसमार प्रखंड अंतर्गत ओरमो गांव का नाम ऐसे ही एक गुमनाम अध्याय से जुड़ा है. यहीं जन्मे थे कोका कमार करमाली. एक ऐसे जनजातीय योद्धा, जिन्होंने ना केवल हथियारों से बल्कि अपने लोहार कौशल से आजादी के संघर्ष को नई धार दी.

कोका कमार करमाली का जन्म 21 नवंबर 1861 को हुआ था. उस दौर में झारखंड की धरती उलगुलान की ज्वाला से तप रही थी. बिरसा मुंडा के नेतृत्व में आदिवासी समाज अंग्रेजी शासन के विरुद्ध गोलबंद हो रहा था. कोका कमार करमाली भी इस आंदोलन से प्रेरित हुए, मगर उनकी भूमिका सिर्फ क्रांतिकारी नहीं, बल्कि एक हथियार निर्माता की भी थी. लोहरा-करमाली जनजाति, जिनकी पारंपरिक पहचान लोहा गढ़ने में रही है, कोका कमार के नेतृत्व में एक पूरी क्रांतिकारी श्रृंखला में बदल गयी थी.

चितरिया पत्थर से शुद्ध बाली लोहा निकालकर उन्होंने तलवारें, भाले, फरसे, टांगी और तीर की नोकें बनायी. इन स्वदेशी हथियारों की आपूर्ति उन्होंने बंगाल, बिहार और झारखंड के विभिन्न क्रांतिकारी मोर्चों पर की. वे स्वयं भी टांगी लेकर लड़ाई में उतरते थे और अंग्रेजी सत्ता को खुली चुनौती देते थे. यही कारण था कि अंग्रेज उन्हें पकड़ने के लिए बार-बार ओरमो गांव में छापामारी करते रहे, लेकिन वह हर बार चकमा देकर निकल जाते.

उनकी युद्धक कला और संगठन क्षमता का ही असर था कि करमाली समाज एकजुट होकर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से स्वतंत्रता संग्राम में शामिल रहा. आज भी उनके वंशजों के पास वह ऐतिहासिक टांगी सुरक्षित है, जिससे उन्होंने अंग्रेजों और उनके सहयोगी जमींदारों को परास्त किया था. दुर्भाग्यवश, कोका कमार की कहानी मुख्यधारा के इतिहास से गायब रही. 8 जनवरी 1896 को केवल 35 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया. परिजन इसे स्वाभाविक मृत्यु नहीं मानते. उनका मानना है कि वे अंग्रेजों के विरुद्ध एक लड़ाई में शहीद हुए. आजादी के इतने दशकों बाद भी कोका कमार का नाम सरकारी दस्तावेजों में सम्मानपूर्वक दर्ज नहीं हो पाया है. हालांकि बिहार जनजातीय कल्याण शोध संस्थान द्वारा प्रकाशित प्रो एचआर नौमानी की पुस्तक ‘लोहरा’ में उनका उल्लेख मिलता है, लेकिन इससे आगे सरकार की कोई ठोस पहल अब तक नहीं हुई. 22 नवंबर 2022 को उनके वंशजों और कमार-लोहरा समाज द्वारा ओरमो गांव में आयोजित एक कार्यक्रम में उनकी प्रतिमा स्थापित की गयी. यह पहल उस अस्मिता की एक छोटी सी कोशिश है, जो वर्षों से दबा दी गयी थी.

ओरमो में मनायी जाएगी जयंती

कसमार प्रखंड के ओरमो गांव में शनिवार को कोका कमार करमाली की जयंती मनायी जाएगी. आयोजन समिति ने बताया कि कार्यक्रम की शुरुआत सुबह उनकी आदमकद प्रतिमा पर माल्यार्पण और श्रद्धांजलि के साथ होगी. इसके बाद जयंती समारोह, परिचर्चा और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का आयोजन किया जाएगा, जिसमें स्थानीय कलाकार और ग्रामीण बड़ी संख्या में भाग लेंगे. जानकारी देते हुए बोधन राम करमाली और मनोज कुमार करमाली ने कहा कि कोका कमार करमाली ना केवल आदिवासी समुदाय के गौरव थे, बल्कि अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई में उनका योगदान ऐतिहासिक रहा है. जयंती का उद्देश्य युवा पीढ़ी को उनके संघर्ष, साहस और देशभक्ति से अवगत कराना है.

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