बोकारो, निमोनिया बैक्टीरिया, वायरस या फंगस से होने वाला फेफड़ों का संक्रमण है. जो बच्चों व बुज़ुर्गों के लिए खास तौर पर जानलेवा साबित होता है. इससे निपटने के लिए 12 नवंबर को विश्व निमोनिया दिवस मनाया जाता है. वर्ष 2025 का थीम हर सांस मायने रखती है : निमोनिया को उसके रास्ते में ही रोकें है. चिकित्सक निमोनिया को लेकर चिंतित हैं. अस्पताल आनेवाले मरीजों को जागरूक कर रहे हैं.
अनुमंडल अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ रवि शेखर ने बताया कि निमोनिया फेफड़ों में बैक्टीरिया, वायरस या फंगस के कारण होने वाला संक्रमण है. निमोनिया के कारण फेफड़ों के उतकों में सूजन आ जाती है. फेफड़ों में तरल पदार्थ या मवाद बन सकता है. वायरल निमोनिया से ज्यादा गंभीर बैक्टीरियल निमोनिया होता है. जो दोनों फेफड़ों को प्रभावित कर सकता है. ऐसे में फेफड़ों में सूजन हो जाता है. इस कारण सांस लेना मुश्किल हो जाता है. जो गंभीर स्वास्थ्य परेशानी पैदा करती है. निमोनिया को लेकर बड़े व बच्चों में अलग-अलग लक्षण दिखाई पड़ते हैं. सामान्य तौर पर निमोनिया के लक्षणों में तेज बुखार, खांसी, थकान, सांस लेने में तकलीफ, पसीना आना या ठंड लगना, हृदय गति का तेज होना आदि शामिल हैं. जरूरी नहीं कि सभी लक्षण एक जैसे ही हो. शिशुओं, छोटे बच्चों व बड़े वयस्कों में अलग-अलग लक्षण हो सकते हैं.बच्चों को बचाने के लिए पीसीवी का लगता है टीका
निमोनिया से बच्चों को बचाने के लिए छह हफ्तों से लेकर 12 महीने की उम्र तक पीसीवी के तीन टीके लगाये. पर्याप्त पोषण ले. बच्चों में इनडोर वायु प्रदूषण, उचित वेंटिलेशन, माता-पिता धूम्रपान से दूर रहें.व्यस्क में निमोनिया के प्रमुख लक्षण
बैक्टीरियल निमोनिया के लक्षणों में तेज बुखार, पीले-हरा या खूनी बलगम के साथ खांसी, थकान, तेजी से सांस लेना, सांस लेने में कठिनाई, तेज हृदय गति, पसीना आना या ठंड लगना, सीने या पेट में दर्द, खांसने या गहरी सांस लेने पर दर्द की शिकायत, भूख में कमी, त्वचा, होंठ या नाखून का नीला पड़ना, भ्रम या परिवर्तित मानसिक स्थिति का पैदा होना मुख्य है. वायरल निमोनिया के लक्षणों में सूखी खांसी, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, अत्यधिक थकान या कमजोरी मुख्य है. 65 वर्ष से अधिक आयु के वयस्क में खांसी और सांस लेने में तकलीफ का होना मुख्य है.छोटे बच्चों व नवजात में प्रमुख लक्षण
छोटे बच्चों में निमोनिया के लक्षण व्यस्क के लक्षण से अलग है. इसमें बुखार, ठंड लगना, सामान्य बेचैनी, पसीना आना, त्वचा का लाल होना, खांसी होना, सांस लेने में कठिनाई या तेज सांस लेना, भूख में कमी, उल्टी करना, कमजोरी होना, बेचैनी या चिड़चिड़ापन होने की शिकायत होती है. इसके अलावा सांस लेते समय घुरघुराने जैसी आवाज का आना, पेशाब की मात्रा में कमी या डाइपर का कम गीला होना, पीली त्वचा, लंगड़ापन, सामान्य से अधिक रोना, भोजन करने में कठिनाई की स्थिति पैदा होना मुख्य है.
बचाव के उपाय
नवजात शिशु को निमोनिया से बचाने के लिए टीकाकरण, घर में हवा की गुणवत्ता बेहतर करना व स्तनपान कराना जरूर है. न्यूमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन जैसे टीके निमोनिया को रोकने में मदद करते है. साथ ही नियमित रूप से हाथ धोना व दूषित जगहों से नवजात को बचाये रखना जरूरी है. इसके साथ ही बडों व बुजुर्गों को निमोनिया से बचाव के लिए धूम्रपान से बचने, नियमित रूप से सफाई रखने. इन्फ्लूएंजा के टीके लगवाना जरूरी है. शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत रखने के लिए स्वस्थ भोजन करना जरूरी है. व्यायाम करें व पर्याप्त आराम करें.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

