दीपक सवाल, कसमार, झारखंड राज्य अलग हुए 25 वर्ष बीत चुके हैं. इस दौरान अनेक सरकारें बनीं और बदलीं, लेकिन बोकारो जिले में नये प्रखंडों के गठन की दशकों पुरानी जनआकांक्षा अब भी ठहरी हुई है. बोकारो जिले के विभिन्न क्षेत्रों में लंबे समय से माराफारी, पिंड्राजोरा, खैराचातर, महुआटांड़, अमलाबाद, बरमसिया, चलकरी, चतरोचट्टी, बोकारो थर्मल और ऊपरघाट को अलग प्रखंड बनाने की मांग उठती रही है. कई क्षेत्र भौगोलिक दृष्टि से विशाल हैं. कई प्रशासनिक दृष्टि से जटिल और कई ऐसे जहां प्रखंड मुख्यालय तक पहुंचना आज भी ग्रामीणों के लिए चुनौती से कम नहीं.
मुंडा सरकार की अंतिम बैठक में हुआ था फैसला
सबसे बड़ी पहल वर्ष 2013 में हुई थी. आठ जनवरी 2013 को अर्जुन मुंडा सरकार की अंतिम कैबिनेट बैठक में बोकारो जिले के अनेक क्षेत्रों को नया प्रखंड बनाने का प्रस्ताव पारित किया गया था.पिंड्राजोरा : प्रखंड की जरूरत का सबसे बड़ा उदाहरण
पिंड्राजोरा क्षेत्र में प्रखंड बनाने की आवश्यकता को देखते हुए वर्ष 2005-06 में तत्कालीन डीसी अमरेंद्र प्रताप सिंह ने चास प्रखंड के अधिकारियों को सप्ताह में दो दिन पिंड्राजोरा में ही बैठने का निर्देश दिया था. कुछ समय तक अधिकारी वहां शिविर कार्यालय चलाते भी रहे, परंतु यह व्यवस्था कुछ महीनों बाद ही समाप्त हो गयी. इसके बाद पिंड्राजोरा के लिए अलग प्रखंड बनने की मांग नए सिरे से जोर पकड़ने लगी. किसान मुक्ति मोर्चा इसे लेकर लगातार संघर्ष कर रहा है. नये प्रखंडों की मांग सबसे ज्यादा पूर्व भाकपा जिला सचिव एवं झारखंड नवनिर्माण सेना के प्रमुख गुलाब चंद्र करते रहे हैं.
क्यों परेशान है आम जनता
प्रस्तावित क्षेत्रों के ग्रामीणों को आज भी छोटी-छोटी सरकारी सेवाओं के लिए कई किलोमीटर दूर प्रखंड मुख्यालय जाना पड़ता है. कई गांवों की स्थिति तो यह है कि उन्हें अपने ही प्रखंड मुख्यालय तक पहुंचने के लिए किसी दूसरे प्रखंड से होकर गुजरना पड़ता है. चास और चंदनकियारी, दोनों ही विशाल प्रखंड हैं. मोहाल, बरमसिया, अमलाबाद के ग्रामीण प्रशासनिक कार्यों के लिए भारी कठिनाई उठाते हैं. खैराचातर, माराफारी, ऊपरघाट, चलकरी और बोकारो थर्मल क्षेत्रों की दिक्कतें भी बिल्कुल यही हैं.जनता की मांग बरकरार, सरकार की चुप्पी भी
राज्य गठन की रजत जयंती पर जहां कई उपलब्धियों का जश्न मनाया जा रहा है, वहीं बोकारो की जनता यह सवाल पूछ रही है कि नए प्रखंडों का फैसला आखिर कब होगा? यह सिर्फ प्रशासनिक सुविधा का सवाल नहीं है, बल्कि दूरदराज बसे हजारों ग्रामीण परिवारों की रोजमर्रा की जीवन से जुड़ी कठिनाइयों का समाधान भी है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

