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महादलित टोला सुविधाविहीन

पटेढ़ी बेलसर : प्रखंड क्षेत्र के एक ऐसा गांव है जहां आम लोगों को सरकार की ओर से चलायी जा रही जनकल्याण योजनाओं की जानकारी नहीं है. इस टोले के निवासी को जो मिल जाये वह भगवान की देन, न मिले तो भी भगवान की मरजी मानते हैं. यह गांव बसा है दो पंचायतों में. […]

पटेढ़ी बेलसर : प्रखंड क्षेत्र के एक ऐसा गांव है जहां आम लोगों को सरकार की ओर से चलायी जा रही जनकल्याण योजनाओं की जानकारी नहीं है. इस टोले के निवासी को जो मिल जाये वह भगवान की देन, न मिले तो भी भगवान की मरजी मानते हैं. यह गांव बसा है दो पंचायतों में. सरकारी आकड़ों में यह टोला दो पंचायतों में पड़ता है, लेकिन देखने और लोगों से पूछने पर पंचायत की सरहद यहां सिमट जाती है.

मुसहर टोली की सीमा : ऐसी ही एक महादलित बस्ती है चकगुलामुद्दीन और मनोरा पंचायत के सड़क किनारे बसे मुसहर टोली की. यहां पहुंच कर लगता है मानो सरकार की महादलितों के उत्थान के लिए चलायी जा रही सारी योजनाएं टांय-टांय फिस्स है. पूरी बस्ती कुपोषण का शिकार है. ये सभी यायावर की तरह जिंदगी बसर कर रहे हैं. घूम-घूम कर यहां के पुरुष तथा महिलायें काम की तलाश करते हैं. जिस दिन काम मिला उस दिन चूल्हा जला नहीं तो भूखे पेट विश्राम करना पड़ता है.
साक्षरता का औसत चार प्रतिशत : पूरी बस्ती में मात्र दो ही मैट्रिक पास है. लगभग पांच सौ की जनसंख्या वाले इस टोले में मात्र 18 ही साक्षर है. साक्षरता का औसत मात्र 4 प्रतिशत हैं. जो देश के किसी भी पिछड़े गावों से काफी कम है. बस्ती के लोग आज भी नरक समान जिंदगी जीने को विवश हैं. इन लोगों को सरकारी सुविधा सिर्फ कागजी दिखाई प्रतीत होती है.
बुनियादी सुविधाओं की है भारी कमी : टोले में शिक्षा,स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं का भी बुरा हाल है. बस्ती के लिये एक मिनी आंगनबाड़ी केंद्र संख्या 77 बनायी गयी है, परंतु उस केंद्र पर पहुंचने पर पता चला की केंद्र का संचालन कागजों पर हो रहा है. बुधवार को केंद्र पर मात्र 4 बच्चे ही थे. वह भी बिना ड्रेस और कागज कलम के ही पहुंचे थे. उसमें एक भी महादलित बच्चा नहीं था. सेविका से जब इस बारे में पूछा गया तो चुप्पी साध ली.
बस्ती के लोगों का आरोप है कि हमारे बच्चे को नहीं पढ़ाया जाता. बस्ती के लोगों ने बगल में विद्यालय खोलने की जरूरत बतायी. बस्ती के लोगों को सरकारी खाद्यान्न भी डीलरों द्वारा प्रत्येक माह नहीं मिलता. इस बस्ती के अधिकतर बच्चे कुपोषण के शिकार है. कुल मिलाकर आजादी के बाद सरकार बदलती रही, लेकिन इन महादलितों के जिंदगी उस प्रकार नहीं बदली.
क्या कहते हैं अधिकारी
यह महादलित टोला दो पंचायतो में आता है. इस बस्ती के 120 से अधिक परिवारो को इंदिरा आवास योजना का लाभ दिया जा चुका है. कुछ परिवारों ने इंदिरा आवास का निर्माण कराया है. टोले के भूमिहीन परिवार को अंचल कार्यालय द्वारा किसानों से सरकारी नियमानुसार जमीन खरीद कर दिया जा चुका है. उपलब्ध कराया गया जमीन इस टोले में सड़क किनारे ही है. 58 परिवारों को तीन-तीन डिसमिल जमीन दी गयी थी. सुचिवद्धशेष 18 परिवारों को जमीन उपलब्ध करने की प्रक्रिया जारी है.
विवेक कुमार मिश्रा, अंचलाधिकारी सह प्रखंड विकास पदाधिकारी, पटेढ़ी बेलसर
महादलित टोला के नजदीक मिनी आंगनबाड़ी केंद्र रहने के बावजूद एक भी महादलित बच्चे का नामांकित नहीं होना, बहुत ही गंभीर मामला है. किन कारणों से ऐसा हो रहा है, इसकी जांच करायी जायेगी. संबंधित सेविका से इस संबंध में स्पष्टीकरण मांगी जायेगी.
मंजरीनाथ, बाल विकास परियोजना पदाधिकारी, पटेढ़ी बेलसर
पक्का मकान नहीं दिखता
टोले में अधिकतर निवासियों को इंदिरा आवास योजना का लाभ मिल चुका है, परंतु पूरी बस्ती में एक भी पक्का या अर्ध पक्का मकान नजर नहीं आता. पक्की सड़क के दोनों किनारे फूस के घर में यह लोग जीवन व्यतीत कर रहे हैं. जहां इनकी झोपड़ी बनी है. वह रोड की अतिक्रमित जमीन है. सरकार की भूमिहीन परिवार को मकान बनाने के लिए जमीन उपलब्ध कराने की योजना अंतर्गत कुछ परिवारों को जमीन मिली, लेकिन अंचल कार्यालय द्वारा वैसी जमीन खरीदगी की गयी जो घर बनाने लायक नहीं है. वह जमीन काफी गहरी है. जिसको बिना मिट्टी भरे मकान का निर्माण संभव नहीं है. अब महादलितों की सांप छूछुंदर वाली हालात है. अगर जमीन की मकान बनाने के लायक बनातेे हैं तो इंदिरा आवास की राशि मिट्टी भराई में ही. खत्म हो जायेगी. तो फिर आवास नहीं बन पायेगा.

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