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घटती जमीन व बढ़ती जनसंख्या के बीच अब छतों पर उगाने लगे सब्जियां

पर्यावरण के साथ सामंजस्य बनाते हुए एक सतत जीवनशैली की ओर इशारा करता है

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सुपौल. जिले में तेजी से बढ़ती जनसंख्या और सिकुड़ती जमीन के कारण अब शहर ही नहीं, ग्रामीण इलाकों की तस्वीर भी बदलने लगी है. पहले जहां गांवों में दलान और खलिहान आम बात थी, अब वहां पक्के मकानों की भरमार है. खेती योग्य भूमि कम होने से लोग पारंपरिक खेती छोड़ छतों पर सब्जियां उगाने लगे हैं. यही कारण है कि ग्रामीणों ने खेती के लिए एक नया रास्ता अपनाया है घर का छत. अब आलू, टमाटर, मिर्ची जैसी सब्जियों के साथ-साथ परंपरागत सब्जी नेनुआ भी लोगों के घरों के छत पर लहलहाने लगा है. यह नया चलन न केवल जमीन की कमी को पूरा करने का प्रयास है, बल्कि शुद्ध और ताजा सब्जियां उगाने का भी एक तरीका बनता जा रहा है. ग्रामीणों का कहना है कि अब खेत बचे ही नहीं, और जो थोड़ी बहुत जमीन है, वहां घर बनने लगे हैं. ऐसे में छत ही एकमात्र जगह है जहां खेती की थोड़ी गुंजाइश बनती है. नेनुआ जैसी बेलवाली सब्जियों के लिए छत की ग्रिल या बांस का सहारा देकर लोग अब अपने उपयोग की सब्जियां खुद उगा रहे हैं. कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि यह नया चलन भविष्य की अर्बन फार्मिंग यानी शहरी खेती की नींव रखता है. इससे न केवल ताजा सब्जियों की उपलब्धता बनी रहती है, बल्कि रासायनिक खादों से दूर रहकर स्वास्थ्य लाभ भी मिलता है. पहले गांवों में लोग फूंस या कच्चे मकानों के छतों पर बेलदार सब्जियां उगाया करते थे. अब उसी परंपरा को आधुनिक रूप में छतों पर जारी रखा जा रहा है, जो पर्यावरण के साथ सामंजस्य बनाते हुए एक सतत जीवनशैली की ओर इशारा करता है.

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