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गांवों में दवा दुकानदार ही डॉक्टर की निभा रहे हैं भूमिका

परिणामस्वरूप कई लोग गलत दवा, ओवरडोज अथवा नकली दवाओं के कारण स्वास्थ्य जोखिम का शिकार हो रहे हैं.

– शहर से लेकर गांव तक बिना लाइसेंस के खुलेआम संचालित हो रही दवा दुकानें – गलत इलाज से मरीजों की स्थिति हो जाती है गंभीर, विभाग बना है लापरवाह – ग्रामीण इलाकों में बिना लाइसेंस के चल रहे 70 फीसदी से अधिक दवा दुकानें – बिना लाइसेंस के चल रहे दुकानों में मिल रही है प्रतिबंधित दवाएं भी सुपौल जिले के शहरी से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक सैकड़ों की संख्या में बिना ड्रग लाइसेंस के दवा दुकानें खुलेआम संचालित हो रही हैं. इन दुकानों में ना तो योग्य फार्मासिस्ट हैं और ना ही दवा बेचने एवं सलाह देने का कोई कानूनी अथवा तकनीकी आधार है. इसके बावजूद ग्रामीण इलाकों में रहने वाले कम जागरूक लोगों के लिए ऐसे दुकानदार ही डॉक्टर बन बैठे है. परिणामस्वरूप कई लोग गलत दवा, ओवरडोज अथवा नकली दवाओं के कारण स्वास्थ्य जोखिम का शिकार हो रहे हैं. जिले के सभी प्रखंडों के ग्रामीण बस्तियों में दवा दुकानदार खुलेआम डॉक्टर की भूमिका निभा रहे हैं. किसी को बुखार हुआ, दर्द हुआ या पेट में समस्या लोग सीधे दवा दुकान पहुंचते हैं. यहां दुकान चलाने वाला व्यक्ति बिना किसी मेडिकल डिग्री के मर्ज भी बताता है और इंजेक्शन तक लगा देता है. लोगों की आर्थिक सीमाएं, अस्पतालों की कमी, डॉक्टरों तक तत्काल पहुंच नहीं होना और जागरुकता की कमी के कारण ग्रामीण इन्हीं दुकानदारों पर निर्भर हो जाते हैं. यही वजह है कि बिना पढ़े-लिखे लोग भी वर्षों से अनुभव नाम पर दवाइयों का धंधा चला रहे हैं. बिना लाइसेंस दवा बेचने का जिले में है बड़ा नेटवर्क ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के नियमों के अनुसार कोई भी व्यक्ति बिना लाइसेंस दवा बेच नहीं सकता, लेकिन जिले में यह कानून कागजों तक सीमित है. ग्रामीण स्तर पर यह स्थिति और ज्यादा गंभीर है जहां 70 प्रतिशत से अधिक दवा दुकानों के पास लाइसेंस तक नहीं है. ऐसी दुकानें ना केवल प्रतिबंधित दवाएं बेच रही हैं बल्कि एंटीबायोटिक, स्टेरॉयड और इंजेक्शन जैसी संवेदनशील दवाएं भी सौंप रही हैं. कई दुकानों पर कोई पंजीकृत फार्मासिस्ट भी मौजूद नहीं रहता है. स्वास्थ्य विभाग की कार्रवाई कागजी, अवैध दुकानदार बेखौफ स्वास्थ्य विभाग समय-समय पर सख्त कार्रवाई की बात जरूर करता है, लेकिन जमीनी हकीकत एकदम उलट है. पिछले कई वर्षों में जिले में बिना लाइसेंस दवा दुकानों पर बड़े स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है. प्रशासनिक खामियों और निरीक्षण की कमी के कारण अवैध दुकानें बढ़ती जा रही हैं. कई बार कार्रवाई की खबरें आती हैं, लेकिन यह केवल कुछ दुकानों तक सीमित रह जाती है. वहीं अधिकांश दुकानों पर ना तो कोई जांच टीम पहुंचती है और ना ही मॉनिटरिंग होती है. ग्रामीण इलाकों में तो स्थिति और दयनीय है, जहां स्वास्थ्य विभाग की टीम महीनों तक नहीं पहुंचती है. मरीजों की जान से खिलवाड़, बढ़ रहे हैं दवा रिएक्शन और गंभीर खतरे दवा एक संवेदनशील क्षेत्र है जहां छोटी सी गलती भी बड़ा नुकसान पहुंचा सकती है, लेकिन जिले में बिना जानकारी और बिना अनुमति दवाइयों का धंधा एक बड़े खतरे का रूप ले चुका है. ऐसे दुकानदार मरीज की बीमारी बिना जांच बताए दवा दे देते हैं. एंटीबायोटिक का गलत प्रयोग कर रहे हैं. जरूरत नहीं होने पर भी स्ट्रॉन्ग दवाएं थमा देते हैं. इंजेक्शन लगाने योग्य नहीं होने पर भी इंजेक्शन लगा देते हैं. एक्सपायरी की कगार पर पहुंची दवाएं बेचते हैं. इसके कारण मरीजों में कई बार गंभीर रिएक्शन, एलर्जी, किडनी संबंधी परेशानी और कई मामलों में जान का खतरा तक बन जाता है. इसके बावजूद लोग मेडिकल सुविधाओं की कमी के कारण जोखिम उठाने को मजबूर हैं. ग्रामीण क्षेत्रों के लोग बताते हैं कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और उप केंद्रों में डॉक्टरों की उपस्थिति अनियमित रहती है. दवा का स्टॉक भी समय पर उपलब्ध नहीं होता. ऐसे में लोग मजबूरी में दवा दुकानदार पर निर्भर हो जाते हैं. कहा कि गांव में रात में अगर बच्चा बीमार हो जाए तो हम कहां जाएंगे. दवा दुकान वाला ही इलाज करता है. यही कारण है कि लोग अवैध दुकानों पर जाने को मजबूर हैं. बिना लाइसेंस दवा दुकानों का बढ़ता जाल स्वास्थ्य विभाग के लिए बना गंभीर चुनौती जानकार बताते है कि जिले में अवैध दवा दुकानों की सूची विभाग के पास मौजूद है, लेकिन संसाधनों की कमी और प्रशासनिक प्रक्रियाओं के कारण बड़े पैमाने पर कार्रवाई नहीं हो पाती. कहा कि जिले में दवा दुकानों की संख्या हजारों में है, लेकिन इतनी दुकानों की जांच करने के लिए मानव बल कम है. अवैध दवा दुकानों के कारण गरीब और अनपढ़ लोग जान जोखिम में डाल रहे हैं. कहा कि समस्या का हल केवल एक्शन से नहीं होगा, बल्कि दीर्घकालिक रणनीति की आवश्यकता है. जिले में बिना लाइसेंस दवा दुकानों का बढ़ता जाल एक गंभीर चुनौती बन चुकी है. जहां एक तरफ स्वास्थ्य विभाग नियमों की बात करता है, वहीं दूसरी ओर जमीनी स्तर पर स्थिति नियंत्रण से बाहर है. ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण लोग जोखिम लेकर भी अवैध दुकानों से दवा लेते हैं. यह ना केवल कानून का उल्लंघन है बल्कि आमलोगों की जान के साथ बड़ा खिलवाड़ भी है. प्रशासन यदि सख्त कार्रवाई और मजबूत स्वास्थ्य ढांचा दोनों पर एक साथ ध्यान दे तो इस समस्या का समाधान संभव है. वरना आने वाले समय में यह मुद्दा और भी गंभीर रूप ले सकता है. कहा कि जिला प्रशासन को विशेष अभियान चलाकर इन दुकानों पर रोक लगानी चाहिए. बिल मांगने पर टालमटोल, टैक्स चोरी और मनमानी कीमतें जिले में कई दुकानें न तो लाइसेंस प्रदर्शित करती हैं और न ही ग्राहकों को पक्का बिल देती हैं. बिल मांगने पर दुकानदार टालमटोल करते हैं, जिससे टैक्स चोरी का संदेह और बढ़ जाता है. बिना बिल दवा मिलने से कीमतों में मनमानी, गुणवत्ताहीन दवा प्राप्त होने का खतरा दोगुना हो जाता है. जरूरी है सख्त अभियान और बेहतर स्वास्थ्य संरचना विशेषज्ञों का मानना है कि समस्या केवल कार्रवाई से हल नहीं होगी. इसके लिए नियमित निरीक्षण योग्य फार्मासिस्ट की अनिवार्यता ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं का सुदृढ़ीकरण जरूरी है. सूचना मिलने पर होती है कार्रवाई : ड्रग्स कंट्रोलर एडिशनल ड्रग्स कंट्रोलर राजेश कुमार ने बताया कि सूचना मिलने पर कार्रवाई की जाती है. इस साल में अब सात अवैध दवा दुकानों पर कार्रवाई की गयी है.

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