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बच्चों के भविष्य पर लगा ग्रहण, छह साल बाद भी नहीं मिला मैट्रिक का मूल प्रमाणपत्र

शिक्षा विभाग की लापरवाही पर उठे सवाल

– शिक्षा विभाग की लापरवाही पर उठे सवाल – जिले के 51 स्कूलों को अब तक नहीं मिला मूल प्रमाण पत्र सुपौल. सुपौल जिले में शिक्षा व्यवस्था की लापरवाही एक बार फिर सुर्खियों में है. जिले के विभिन्न उत्क्रमित उच्च विद्यालयों से मैट्रिक परीक्षा पास करने वाले हजारों छात्र-छात्राएं पिछले छह वर्षों से अपने मूल प्रमाणपत्र के लिए दर-दर भटक रहे हैं. शिक्षा विभाग की उदासीनता और लापरवाही के कारण ये छात्र आज भी अपने दस्तावेजों से वंचित हैं, जिससे उनके उच्च शिक्षा में नामांकन और सरकारी योजनाओं का लाभ लेने में गंभीर कठिनाइयां आ रही हैं. जानकारी के अनुसार, वर्ष 2019 से 2024 के बीच जिले के कई उत्क्रमित विद्यालयों से उत्तीर्ण हुए छात्रों को अब तक मूल प्रमाणपत्र नहीं मिल पाया है. इन छात्रों ने मैट्रिक परीक्षा सफलतापूर्वक पास कर ली, लेकिन विभागीय प्रक्रियाओं में सुस्ती के कारण प्रमाणपत्र वितरण नहीं हो सका. परिणामस्वरूप, छात्र न तो इंटरमीडिएट में समय पर नामांकन ले पा रहे हैं और न ही किसी प्रतियोगी परीक्षा में भाग लेने के लिए आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत कर पा रहे हैं. विद्यालय और जिला शिक्षा कार्यालय के बीच तालमेल की कमी छात्रों और अभिभावकों का आरोप है कि जब वे विद्यालय जाते हैं, तो प्रधानाध्यापक उन्हें जिला शिक्षा कार्यालय भेज देते हैं, जबकि कार्यालय में यह कहकर टाल दिया जाता है कि प्रमाणपत्र बोर्ड से उपलब्ध नहीं हुआ है. इस तरह छात्र महीनों से दोनों कार्यालयों के बीच चक्कर काट रहे हैं. कुछ विद्यालयों के शिक्षकों का कहना है कि प्रमाणपत्र से जुड़ी फाइलें लंबे समय से जिला स्तर पर लंबित हैं. वहीं, कुछ विद्यालयों में रिकॉर्ड के अद्यतन (अपडेट) न होने के कारण भी प्रक्रिया में विलंब हो रहा है. छात्रों का भविष्य अधर में मूल प्रमाणपत्र नहीं मिलने से गरीब और ग्रामीण पृष्ठभूमि के छात्र सबसे अधिक प्रभावित हैं. कई छात्र सरकारी योजनाओं, छात्रवृत्ति और नौकरी के अवसरों से वंचित रह गए हैं. कुछ छात्रों ने बताया कि ऑनलाइन आवेदन या कॉलेज प्रवेश के दौरान मूल प्रमाणपत्र की मांग की जाती है, लेकिन उपलब्ध न होने के कारण उनका आवेदन अस्वीकार कर दिया जाता है. अभिभावकों ने की कार्रवाई की मांग अभिभावकों का कहना है कि शिक्षा विभाग की यह लापरवाही छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है. उन्होंने जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग से शीघ्र पहल कर प्रमाणपत्र वितरण की प्रक्रिया को गति देने की मांग की है. अभिभावक सचिदानंद झा ने कहा कि उनका पुत्र वर्ष 2019 में मैट्रिक परीक्षा पास किया. इसके बाद बीकॉम करने के बाद प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करने लगा. कई परीक्षा पास करने के बाद जब बच्चें से कागजात की मांग की गयी तो मूल प्रमाण पत्र नहीं देने के कारण वह नौकरी से वंचित रह गया है. ऐसे में बच्चें का भविष्य विभागीय लापरवाही के कारण अंधकारमय हो रहा है. विभाग को भेज दी गयी रिपोर्ट : डीईओ वहीं, जिला शिक्षा पदाधिकारी संग्राम सिंह ने कहा कि संबंधित विद्यालयों का रिपोर्ट बनाकर बोर्ड को भेज दी गयी है. अब बोर्ड से आवश्यक दस्तावेज प्राप्त होते ही छात्रों को शीघ्र ही मूल प्रमाणपत्र उपलब्ध करा दिए जाएंगे.

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