सुपौल. बिहार विधान सभा चुनाव 2025 को लेकर जैसे-जैसे चुनावी मौसम दस्तक देता है, वैसे-वैसे राजनीति के मैदान में मोहल्ले वाले नेताओं की किस्मत चमकने लगती है. जो कभी अपने मोहल्ले से बाहर नहीं निकलते थे, आज कलफदार कपड़े में आंखों पर काला चस्मा लगाये, ऊपर से नीचे तक अप टू डेट ड्रेस में दिखने लगे हैं. कल तक गली-मोहल्लों में गुटका खाते और पान की पीक थूकते नजर आने वाले नेताजी अब चुनावी मौसम में नये अंदाज में दिख रहे हैं. जेब में अब गुटका नहीं, बल्कि “रजनीगंधा जिपर” और “तुलसी जिपर” झांकती दिखेगी. चेहरे पर अच्छे खान-पान की चमक, कपड़ों में ब्रांडेड झलक और गाड़ियों में अब लग्जरी का रंग चढ़ा हुआ है. चुनावी मौसम में जिले भर के ऐसे नेताजी अचानक सक्रिय हो जाते हैं. जो कल तक वार्ड की गलियों से बाहर नहीं दिखते थे, आज वही बड़े नेताओं की सभा में मंच के नीचे कुर्सी संभालते नजर आ रहे हैं. किसी के कंधे पर पार्टी का झंडा है, तो किसी की गाड़ी पर प्रत्याशी का पोस्टर. सुपौल की गलियों और चौक-चौराहों पर ऐसे नेताओं का रेला लगा हुआ है. चुनाव आते ही ये ‘सोशल वर्कर’ बन जाते हैं. लोगों को नमस्कार करना, बच्चों को टॉफी देना और बुजुर्गों को राम-राम कहना अब इनकी रोजमर्रा की दिनचर्या बन चुकी है. गांव में कोई शुभ कार्य हो या मेला हर जगह इनका आना जरूरी है. स्थानीय लोगों का कहना है कि चुनाव आते ही ऐसे नेताओं का ‘स्टाइल’ बदल जाता है. जो पहले साधारण कपड़े पहनते थे, अब वही नये-नये कुर्ते और चप्पल बदलते नजर आते हैं. जो पहले साइकिल या बाइक पर घूमते थे, अब लग्जरी गाड़ियों में हेडलाइट चमकाते हुए निकलते हैं. वे खुद को प्रत्याशी के ‘करीबी’ बताने लगते हैं. इनकी कोशिश रहती है कि किसी न किसी तरह पार्टी के असली नेताओं की नजर में जगह बना लें. पोस्टर लगवाना, भीड़ जुटाना और सोशल मीडिया पर प्रचार करना इनकी नयी जिम्मेदारी बन जाती है. सुपौल जिले में ऐसे दृश्य आम हैं. चाय की दुकान पर बैठा हर दूसरा शख्स अब चुनावी जानकार बन गया है, वहीं ऐसे नेताजी अपने नये अवतार में लोगों को प्रभावित करने की कोशिश में लगे रहते हैं. गांव से लेकर शहर तक, अब हर जगह इनकी मौजूदगी दिखती है चाहे फोटो खिंचवाना हो या मंच पर कुर्सी कब्जाना. चुनाव बीतने के बाद ये चेहरे फिर गायब हो जाते हैं, लेकिन अभी तो मौसम है और इस मौसम में इनकी चांदी है.
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