प्रतिनिधि,सीवान.तापमान में वृद्धि व कम बारिश होने के चलते धान की नर्सरी तैयार करने में काफी परेशानी हुई है.समय से बारिश नहीं होने के चलते किसान जैसे तैसे धान की नर्सरी तैयार किए है.मॉनसून कमजोर होने के कारण धान की रोपनी नही हो रही है. इधर तीखी धूप व पानी की कमी से बिचड़े में झुलसा रोग लग गया है.इसकी वजह से धान के पौधे की वृद्धि में रुकावट आ रही है.तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण धान का बिचड़ा पीला पड़ रहा है.कृषि वैज्ञानिकाें ने बताया कि इन दिनों बरसात का दौर थमने के साथ ही तापमान व नमी में बढ़ोतरी हो रही है. रोग लगने से अच्छी पैदावार की उम्मीदों पर पानी फिरता नजर रहा है. कुछ सालों से मौसम में आया है बड़ा बदलाव मौसम के जानकारों के मुताबिक विगत कुछ सालों से मौसम में बड़ा बदलाव आया है. अधिकतम तापमान सामान्य से तीन से चार डिग्री तक अधिक बना हुआ है.नमी का प्रवाह बढ़ने पर भारी उमस की स्थिति जिले भर में बन रही है.जिसके चलते मानव स्वास्थ्य के साथ फसल का उत्पादन भी प्रभावित हुआ है. बारिश के दिनों में आई कमी का सीधा असर अधिकतम और न्यूनतम तापमान पर पड़ा है. जुलाई में ऐसी गर्मी नहीं होती थी. सामान्यत: अधिकतम तापमान 32 डिग्री सेल्सियस रहता था.यही इस मौसम का मानक तापमान भी है. हाल के वर्षों में खासकर इस वर्ष जून से लेकर अबतक बारिश की मात्रा और बारिश के दिनों में कमी की वजह से सामान्य से अधिक तापमान वाले दिनों की संख्या बढ़ती जा रही है.जिसका प्रभाव धान की फसल पर पड़ रहा है. झुलसा रोग के लक्षण दिखते ही करें दवा का प्रयोग कृषि विशेषज्ञ डॉ धीरेंद्र कुमार गिरी ने बताया कि हर साल की अपेक्षा इस वर्ष सामान्य से कम बारिश हुई है.तापमान में उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है, जिसका असर धान के बिचड़े पर पड़ रहा है. खेतों में अत्यधिक नमी के कारण बिचड़ा पीला पड़ रहा है. उसमें वृद्धि नहीं हो रही है, तो नमी की कमी के कारण भी असर देखने को मिल रहा है. अनुदानित बीज हो या संकर, सभी बिचड़े में यह शिकायत देखने को मिल रही है. धान के बिचड़े में इस रोग का प्रकोप बढ़ रहा है. थोड़ी सी लापरवाही से फसल को नुकसान होगा और पैदावार में कमी हो सकती है.यदि धान के बिचड़े की पत्तियां पीली है. साथ ही उसने लाल रंग का मार्क हो तो दोपहर बाद हल्की सिंचाई कर ट्राइसाइक्लोजोन 1.5 ग्राम प्रति लीटर व हेक्साकोनाजोल 75% 1.5 एमएल प्रति लीटर का छिड़काव करें. यदि पत्तियां सिर्फ पीली है, तो रोपनी के पूर्व खेत में जिंक सल्फेट का प्रयोग करना सही होगा.यह नियंत्रण करने लायक है और इसपर नियंत्रण कर पैदावार को बढ़ाया जा सकता है.
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