पचरुखी. प्रखंड मुख्यालय स्थित स्थायी पशु चिकित्सालय की स्थिति इन दिनों बेहद दयनीय हो गई है. 1955 में निर्मित यह अस्पताल आज संसाधन और कर्मियों की भारी कमी से जूझ रहा है. डॉक्टर से लेकर दवा तक की किल्लत ने इस अस्पताल की उपयोगिता लगभग समाप्त कर दी है. पशु मालिकों को अपने मवेशियों के इलाज के लिए दूर-दराज के निजी क्लिनिकों या अन्य प्रखंडों की ओर रुख करना पड़ रहा है. अस्पताल में दवा के साथ-साथ आवश्यक संसाधनों की भी भारी कमी है. कृत्रिम गर्भाधान के लिए सृजित पशुधन सहायक का पद तो है, लेकिन चपरासी और रात्रि प्रहरी के पद लंबे समय से खाली पड़े हैं. आलम यह है कि सफाई से लेकर छोटे-छोटे कार्यों तक का जिम्मा यहां कार्यरत डॉक्टर को ही उठाना पड़ता है. कई बार डॉक्टर खुद अस्पताल की सफाई करते देखे जाते हैं, स्थानीय लोगों का कहना है कि जब कभी डॉक्टर अनुपस्थित रहते हैं, तो पशुपालकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है. कई बार बीमार पशु इलाज के अभाव में दम तोड़ देते हैं. ग्रामीणों ने जिला प्रशासन से मांग की है कि अस्पताल में दवाओं की आपूर्ति के साथ ही खाली पड़े पदों पर शीघ्र बहाली की जाए, ताकि पशुपालकों को राहत मिल सके और अस्पताल अपनी वास्तविक भूमिका निभा सके. इस संबंध में पशु चिकित्सा पदाधिकारी आशुतोष कुमार ने बताया कि सप्ताह में तीन दिन यहां पर हम आते हैं और बाकी दिन बरहनी में तैनात है. पचरुखी में दो परिचारी आ गए हैं अब कोई परेशानी नहीं है.
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