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बारिश के अभाव में खरीफ की फसल प्रभावित

मानसून की लेट लतीफी से खरीफ की फसल प्रभावित होने की चिंता किसानों को सता रही है. आम तौर पर 15 जून तक जिला में मॉनसून का आगमन हो जाता था. वहीं प्री मानसून की वर्षा भी अच्छी हो जाती थी. इस बार प्री मानसून की बारिश भी नहीं हुई है.

प्रतिनिधि, सीवान. मानसून की लेट लतीफी से खरीफ की फसल प्रभावित होने की चिंता किसानों को सता रही है. आम तौर पर 15 जून तक जिला में मॉनसून का आगमन हो जाता था. वहीं प्री मानसून की वर्षा भी अच्छी हो जाती थी. इस बार प्री मानसून की बारिश भी नहीं हुई है. कृषि विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक जून में औसतन करीब 143 एमएम बारिश होती है . जबकि अभी तक मात्र 76 एमएम हो बारिश हुई है. मॉनसून के सक्रिय होने की संभावना भी फिलहाल नहीं दिख रही है. खेती के लिए प्रतिकुल परिस्थिति में खरीफ फसल प्रभावित होने की आशंका है. किसानों का कहना है कि 15 जून तक मकई, ज्वार, बाजरा, उड़द व अरहर की बुआई हो जाती थी. धान मुख्य रूप से जिला की खरीफ की फसल है. जिले में पड़ रही भीषण गर्मी के कारण अब धान की खेती प्रभावित होने की संभावना बढ़ रही है. रोहिणी नक्षत्र व मृगशिरा नक्षत्र बीत गया है. खेती के लिए महत्वपूर्ण आद्रा नक्षत्र चल रहा है. लेकिन आद्रा नक्षत्र में भी मॉनसून सक्रिय नहीं हुआ. किसानों ने पंपिंग सेट चलाकर धान का बिचड़ा खेतों में गिराया है. लेकिन भीषण गर्मी के कारण अब ये बिचड़े भी गर्मी की भेंट चढ़ते दिखाई दे रहे हैं. कृषि विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक अभी तक धान की खेती के लक्ष्य के हिसाब से किसानों ने करीब 78 प्रतिशत बिचड़ा खेतों में गिरा दिया है. मौसम प्रतिकूल होने के चलते बिचड़ा का बचना मुश्किल नजर आ रहा है. 10077.40 हेक्टेयर में लगायी जायेगी नर्सरी जिला कृषि पदाधिकारी डॉ. आलोक कुमार ने बताया कि इस बार 19 प्रखंडों में 10077.40 हेक्टेयर में धान का बिचड़ा लगाया जाना है.अभी तक 7820 हेक्टेयर में धान की नर्सरी लग गई है. वहीं जिला में एक लाख 774 हेक्टेयर में धान की खेती की खेती की जाएगी. खरीफ मौसम में विभिन्न फसलों की उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को आधुनिक तकनीक से खेती करने की सलाह दी गयी है. प्रखंड स्तर पर खरीफ महाभियान का आयोजन किया गया है. पंचायत स्तर पर आत्मा के तहत चौपाल लगाकर किसानों को जीरो टिलेज, सीड ड्रिल व पैडी ट्रांसप्लांटर से धान की खेती करने की तरीके बताये गये हैं. मौसम परिवर्तन के परिपेक्ष में धान की सीधी बुआई, विभिन्न खरीफ फसलों की वैज्ञानिक पद्धति से खेती करने, जैविक खेती, कृषि यांत्रिकीकरण, केसीसी, पशुपालन, मत्स्य पालन आदि सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी दी जा रही है. वैकल्पिक फसलों की करें खेती कृषि विभाग के कर्मियों का कहना है कि मानसून की अनिश्चितता को देखते हुए किसानों को खरीफ के वैकल्पिक फसलों की खेती करनी चाहिए. जिससे उन्हें कम लागत में अच्छी पैदावार प्राप्त हो.धान की नर्सरी लगाने के 35 दिनों के अंदर की बुआई कर देनी चाहिए.35 दिन से पुरानी नर्सरी के बिचड़े से रोपाई करने से कल्ले कम निकलते हैं. इससे प्रति इकाई क्षेत्र में पौधों की संख्या घट जाती है और इससे उपज में भारी कमी आती है. इस स्थिति को देखते हुए बेहतर होगा कि किसान बारिश के सक्रिय होने का इंतजार करें. किसानों को यह भी ध्यान रखना होगा कि वो किसी भी परिस्थिति में 35 दिन से ज्यादा पुराने बिचड़े से धान की रोपाई न करें. अगर बिचड़े 35 दिन से अधिक पुराने हैं तो बेहतर होगा कि वो धान की सीधी बीजाई कर दें. बारिश नहीं होने की परिस्थिति में किसान दलहनी फसलों को भी लगा सकते हैं. जल्द वारिश नहीं हुई तो बिचड़ा बचाना होगा मुश्किल किसानों ने बताया कि खेतों में डाले गए बिचड़ा में करीब 25 फीसदी का नुकसान हो चुका है.यदि ऐसा ही मौसम रहा तो नुकसान बढ़ जाएगा. किसान केदारनाथ गिरी,ओमप्रकाश सिंह,सुदामा कुशवाहा सहित अन्य ने बताया कि बिचड़ा डाले गए खेतों में दरार पड़ गया है. यदि जल्द वर्षा नहीं हुई तो बिचड़ा को बचाना मुश्किल है. …….. बोले अधिकारी बारिश नहीं हुई तो किसानों की परेशानी बढ़ेगी. बिचड़ा झुलस रहा है. जिन किसानों ने रोपनी शुरू कर दी है. अब उनके खेतों में पानी की जरूरत है. बारिश नहीं होगी तो अन्य स्रोतों का सहारा लेना पड़ेगा. लेकिन इससे बेहतर ढंग से खेती नहीं हो पायेगी. लक्ष्य की प्राप्ति के लिए बारिश जरूरी है. आलोक कुमार, प्रभारी जिला कृषि पदाधिकारी, सीवान

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