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फसलों को ठंड से बचाव के लिए सिंचाई के साथ उपचार आवश्यक : वैज्ञानिक

विगत करीब एक सप्ताह से पड़ रही कड़ाके की ठंड कुहासा व शीतलहर से जहां जनजीवन अस्त व्यस्त है.

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पुपरी. विगत करीब एक सप्ताह से पड़ रही कड़ाके की ठंड कुहासा व शीतलहर से जहां जनजीवन अस्त व्यस्त है. पछिया हवा के कारण कनकनी बढ़ गई है. वहीं इसका प्रभाव खेतों में लगी फसलों पर भी होता है. कुछ फसलों पर इसका प्रभाव कम पड़ता है. तो कुछ फसलें अधिक प्रभावित होती है. कृषि विज्ञान केंद्र बलहा मकसूदन सीतामढ़ी के सस्य वैज्ञानिक सच्चिदानंद प्रसाद व मनोहर पंजीकार ने बताया कि इस मौसम में फसलों की विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है. पौधों की कोशिकाओं के अंदर और ऊपर मौजूद पानी जम जाता है, जिससे ठोस बर्फ की तरह पतली परत बन जाती है. इसे पाला पड़ना कहते हैं. पाला पड़ने से पौधों की कोशिकाओं की दीवार क्षतिग्रस्त हो जाती है. कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन व वाष्प की विनिमय प्रक्रिया भी बाधित होती है, जिससे फसलों को काफी नुकसान पहुंचता है, जिसके चलते पैदावार कम हो जाती है. उन्होंने बताया कि पपीता, आम व अमरूद पर पाले का प्रभाव अधिक नहीं पड़ता है. वहीं, टमाटर, मिर्च, बैगन, मटर, चना व सरसों, धनिया आदि फसलों पर पाला पड़ने के दिन से ज्यादा नुकसान की आशंका रहती है. जबकि अरहर, गन्ना, गेहूं, जौ आदि पर पाले का असर कम दिखाई देता है. कहां पाला पड़ने की संभावना को देखते हुए जरूरत के हिसाब से खेत में हल्की हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए. सरसों, गेहूं, आलू, मटर आदि फसलों को पाले से बचाने के लिए सल्फर का छिड़काव करने से रासायनिक सक्रियता बढ़ जाती है. पाले से बचाव के अलावे पौधे को सल्फर तत्व भी मिल जाती है. सल्फर पौधों से रोग रोधिता बढ़ाने में सहायता होती है. पाले व शीतलहर से बचाने के लिए थोयोयूरिया एक ग्राम प्रति दो लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर सकते हैं. साथ ही 15 दिनों के बाद छिड़काव को दोहराना चाहिए. क्योंकि सल्फर से पौधे में गर्मी बनती है. इसलिए घुलनशील सल्फर दो ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करने से पाले के असर को कम किया जा सकता है. कहां पाला पड़ने की संभावना वाले दिनों में मिट्टी की जुताई नहीं करनी चाहिए. क्योंकि ऐसा करने से मिट्टी का तापमान कम हो जाता है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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