बिक्रमगंज. शहर की सुंदरता और सुगम यातायात व्यवस्था के लिए नगर पर्षद द्वारा मुख्य सड़क के दोनों ओर 8-8 फुट चौड़ा पेवर ब्लॉक लगाया था. उद्देश्य था कि लोग आराम से पैदल चल सकें और सड़क चौड़ी हो सके. लेकिन, यह पेवर ब्लॉक अब पैदल यात्रियों की जगह ठेला और ऑटो चालकों के अड्डे में बदल गया है. प्रशासन के अतिक्रमणमुक्त अभियान में भी लाख प्रयासों के बावजूद यह कब्जा खत्म नहीं हो पा रहा है. अनुमंडलाधिकारी प्रभात कुमार के नेतृत्व में लगातार अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया जा रहा है. दूसरे दिन भी अभियान के तहत कई ठेला और ऑटो हटाये गये. लेकिन जैसे ही प्रशासनिक टीम सड़क के दूसरे छोर की ओर बढ़ी, वैसे ही पेवर ब्लॉक पर फिर से ठेला और ऑटो खड़े हो गये. इससे साफ है कि नियम तोड़ने वालों में प्रशासन का खौफ बिल्कुल नहीं है. गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगमन (30 मई) से पहले नगर के सासाराम रोड की सड़क चौड़ी करने की कवायद हुई थी. उसी समय दोनों ओर पेवर ब्लॉक लगाकर रास्ता आकर्षक बनाया गया. स्थानीय लोगों को उम्मीद थी कि अब शहर की तस्वीर बदलेगी. लेकिन, कुछ ही महीनों में वही पेवर ब्लॉक जाम और गंदगी का कारण बन गया है. अलग है वेंडर जोन, फिर सड़कों पर क्यों ? नगर पर्षद की ओर से ठेला पर फल और अन्य सामान की दुकान लगाने वालों के लिए अलग से वेंडर जोन बनाया है. उसकी बैरिकेडिंग भी की गयी है. यहां दुकान लगाने वालों से नगर पर्षद के ठेकेदार 15 रुपये प्रतिदिन वसूलते हैं. लेकिन सबसे बड़ी विडंबना यह है कि सड़क किनारे कब्जा करने वाले ठेलेवालों से भी वही रसीद काट दी जाती है. यानी नियम तोड़ने वालों को भी वैधता का प्रमाण मिल जाता है. इसी वजह से पेवर ब्लॉक पर कब्जा लगातार बना हुआ है. आम लोगों को दुर्घटना का बना रहता खतरा स्थानीय लोगों का कहना है कि पैदल चलने की जगह घिर जाने से उन्हें सड़क पर चलना पड़ता है, जिससे हर समय दुर्घटना का खतरा बना रहता है. साथ ही पेवर ब्लॉक पर खड़े ठेले जाम की बड़ी वजह बन रहे हैं. नगर प्रशासन से लोगों का कहना की है कि जब तक इन नियम तोड़ने वाले ठेलेवालों पर कड़ी कार्रवाई नहीं होगी, तब तक शहर की सड़कें अतिक्रमण मुक्त नहीं हो सकतीं. अब देखना है कि अतिक्रमण हटाने के इस चार दिवसीय अभियान में प्रशासन पेवर ब्लॉक पर कब्जा जमाये ठेला और ऑटो चालकों पर क्या सख्त कदम उठाता है. फिलहाल तो पेवर ब्लॉक शहर की सुंदरता और यातायात व्यवस्था की जगह ठेला-ऑटो वालों का स्थायी ठिकाना बन चुका है.
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