डालमियानगर. मंगलवार को सामुदायिक भवन सिधौली में अहिबरनपुर का चकबंदी कार्य करने आये चकबंदी पदाधिकारियों का ग्रामीणों ने जमकर विरोध किया तथा चकबंदी के खिलाफ वोट बहिष्कार का प्रस्ताव रखा. इस पर उपस्थित सभी ग्रामीणों ने प्रस्ताव का समर्थन देते हुए पदाधिकारियों के कार्य व सरकार की नीति पर असंतोष जताया. वहीं, उपस्थित चकबंदी पदाधिकारी ग्रामीणों को समझाने का प्रयास कर रहे थे. सभी ग्रामीण उपस्थित पदाधिकारियों से सर्वे के अनुसार चकबंदी करने पर अड़े थे. ग्रामीणों के विरोध पर चकबंदी पदाधिकारी ने कार्य रोक दिया है. क्या है मामला : 1970 के सर्वे में अहिबरनपुर में कुल 739 खाता है. सर्वे के अनुसार सभी ग्रामीण उक्त प्लॉट पर काबिज हैं. 1983 में स्थल जांच किये बगैर चकबंदी का कार्य पूरा किया गया था. इसमें सर्वे के प्लॉट के अन्यत्र चकबंदी का प्लॉट था. उस दौरान चकबंदी पदाधिकारियों पर सभी ग्रामीणों ने कड़ा एतराज व्यक्त कर कदाचार का आरोप लगाते हुए चकबंदी मानने से इनकार कर दिया तथा सर्वे की भूमि पर काबिज रह गये. कहा कि उस दौरान विरोध पर अंचल पदाधिकारी व चकबंदी पदाधिकारी ने चकबंदी के अनुसार राजस्व रसीद कटवाने की सलाह देते हुए कहा था कि दाखिल काबिज रहने पर दोबारा सर्वे में सभी प्लॉट अपने आप सुधर जायेगा. मामले में क्या है पेच : अहिबरनपुर में वर्तमान समय में आवासीय व कृषि दो प्रकार की भूमि है. कई ग्रामीणों का सर्वे में आवासीय तथा चकबंदी में कृषि योग्य प्लॉट प्राप्त है. वहीं, सर्वे व दाखिल काबिज के अनुसार कई आवासीय प्लॉट ग्रामीणों द्वारा बिक्री कर दिया गया है. इसमें कई घर भी बन चुके हैं. सरकार के आदेश पर 1983 के चकबंदी के अनुसार चकबंदी कार्य करने से लाखों रुपये खर्च कर बनाये गये घर को छोड़ना होगा. इससे उन्हें आर्थिक नुकसान होगा. ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि 1983 में चुपचाप चकबंदी कर दिया गया, लेकिन हकबंदी नहीं कराया गया है. इससे ग्रामीण इन समस्याओं को झेल रहे हैं. सभी ने कहा कि चुनाव बहिष्कार के साथ मामले को जिला से लेकर राज्य स्तरीय पदाधिकारियों तक पहुंचाया जायेगा तथा इसके बाद भी सुनवाई नहीं हुई तो न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जायेगा. कहते हैं मुखिया:– गंगौली पंचायत मुखिया देवानंद सिंह का कहना है कि चकबंदी को लेकर ग्रामीणों के बीच आपसी मतभेद है. लोग कभी भी आपसी विवाद कर शांति भंग कर सकते हैं. चकबंदी को निरस्त कर सर्वे के आधार पर रसीद काटा जाये. कहते हैं अंचलाधिकारी:– अंचलाधिकारी अविनाश कुमार का कहना है कि ग्रामीणों की समस्या गंभीर है. 1983 में हुए चकबंदी के अनुसार सभी की रसीद कट रही है. हालांकि, सभी ग्रामीण सर्वे के आधार पर काबिज हैं. स्थानीय पदाधिकारी द्वारा सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है. किसी भी सुधार के लिए ग्रामीणों को राज्य स्तरीय पदाधिकारी या उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना होगा. –क्या कहते हैं लोग –ग्रामीण कामेश्वर सिंह यादव का कहना है कि सभी ग्रामीण आपसी सहमति से सर्वे के आधार पर चकबंदी कार्य करना चाहते हैं, तो बेवजह कानूनी पेच डालकर कार्य को रोका जा रहा है. सरकार तत्काल लोगों की मांग समझते हुए पदाधिकारियों को कार्य करने का आदेश दें. अन्यथा ग्रामीण आंदोलन को मजबूर होंगे. –ग्रामीण राज कुमार महतो का कहना है कि सर्वे व चकबंदी में भूमि की अदला बदली से भूमि के प्रकार व मूल्य में काफी अंतर है. बिना स्थल जांच किये 1983 में पदाधिकारियों द्वारा चकबंदी कर दिया गया है. उसे कोई ग्रामीण नहीं मानेंगे. सर्वे के आधार पर चकबंदी कार्य हुआ तो आसानी पूर्वक हो जायेगा. –ग्रामीण दिनेश कुमार का कहना है कि आम लोगों की सहूलियत, भूमि के प्रकार व पैमाइश के लिए सरकार द्वारा चकबंदी कराया जाता है. जब सभी ग्रामीण 1983 के चकबंदी का विरोध कर रहे हैं, तो सरकार को मामले पर संज्ञान लेते हुए ग्रामीणों की भलाई के लिए कार्य करना चाहिए. इससे सरकार की योजना निर्बाध जारी हो सके. –ग्रामीण रामलाल महतो का कहना है कि सर्वे में जमीन घर के पास तथा 1983 के चकबंदी में घर से चार किलोमीटर दूर है, जो कदाचार को दर्शाता है. इसका विरोध सभी ग्रामीणों द्वारा किया गया था. सरकार को मामले पर संज्ञान लेते हुए सर्वे के अनुसार चकबंदी कार्य कराना चाहिए, अन्यथा मजबूर ग्रामीण वोट बहिष्कार को बाध्य होंगे.
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