छपरा : शराब बंदी को जिले के परिपेक्ष्य में देखें, तो इसे सीधे तौर पर आधी आबादी की फतह माना जा सकता है. यहां लंबे समय से महिलाएं शराबबंदी के खिलाफ आंदोलन चलाती रही हैं. परिवार के पुरुष सदस्यों के व्यसन की शिकार अधिकतर महिलाएं इस आंदोलन से जुड़ी थीं. किसी ने पति खोया था, तो किसी का बेटा या दामाद इसका शिकार हुआ.
बीन टोली हुई थी चर्चित
वैसे तो लगभग सभी प्रखंडों ने कभी-न-कभी शराब माफियाओं के खिलाफ आंदोलन छेड़ा है. कभी लाठी-डंडे व कभी झाड़ू लेकर निकली महिलाएं अक्सर शराब धंधेबाजों व शराबियों के खिलाफ चर्चा में आती रही हैं. मगर शहर की बगल में स्थित ग्रामीण परिवेश का पिछड़ा इलाका बीन टोली उस समय अखबार व मीडिया में चर्चे में आ गयी, जब शराब माफिया ने महिलाओं पर हमला कर दिया. तब से यहां महिलाएं और माफिया आमने-सामने आ गये. हालांकि शराब मुक्ति मोरचा व जिला प्रशासन का उन्हें संरक्षण हासिल
हुआ. मगर, आंदोलनकारी चार महिलाओं पर प्राथमिकी भी दर्ज हुई, जिसमें उन्हें बेल लेना पड़ा. मगर महिलाओं ने आंदोलन नहीं छोड़ा और वंचित बच्चों के लिए अपने दम पर स्कूल खोल कर अपनी इच्छा को व्यक्त करने का काम किया.