मोरवा : इंद्रवारा पंचायत में साल 2010 से आयोजित हो रहे राजकीय मिलेगी को व्यवस्था दिन व दिन बिगड़ती ही जा रही है. खर्च के नाम पर एक ओर जहां बजट तेजी से ऊपर बढ़ता जा रहा है. दूसरी तरफ लोगों की सुविधा उसी हिसाब से घट रही है. मेला कमेटी के सदस्यों की माने, तो पिछले साल 78 लाख की सरकारी राशि खर्च की गई लेकिन सुविधाओं के लिए लोगों को जूझना पड़ा. इस बार उम्मीद थी कि जिलाधिकारी का बैठक रंग लायेगा और सारी व्यवस्थाएं सुव्यवस्थित होगी. लेकिन इस बार का मेला लोगों के लिए यादगार बन गया. आने वाले लोग शौचालय, पेयजल, बिजली और ठहरने को लेकर तरसते रहे. मोबाइल की रोशनी में खाना बनाया तो खुले खेत में शौचालय कर सरकारी योजनाओं की पोल खोल दी. बताया जाता है कि नेपाल समेत दूसरे प्रदेशों से भी बड़े पैमाने पर निषाद समाज से जुड़े लोग यहां पहुंचते हैं. दो से तीन लाख लोगों की भीड़ होती है लेकिन प्रशासन के दावे उसे समय खोखली साबित होती है. जब लोगों को मूलभूत सुविधाओं के लिए भी जूझना पड़ता है. प्रशासन के द्वारा दावे तो हर साल बड़े-बड़े किये जाते हैं लेकिन ऐन वक्त पर न तो कर्मचारी नजर आते और न ही अधिकारी मामले को गंभीरता से लेते हैं. सर्वाधिक दुर्गति पीएचइडी द्वारा किये जाने वाले कामों का होता है. बताया जाता है कि पेयजल, शौचालय की व्यवस्था अंतिम समय में शुरू की जाती है जो कि कभी भी लोगों की सेवा देने में कारगर साबित नहीं होता है. भीषण गर्मी और धूप में लोग खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर होते हैं. प्रशासन की व्यवस्था बौनी साबित होती है. इस बार के मेले में भी दुर्घटना में जहां एक युवक की मौत हो गई. वहीं बिजली की शार्ट-सर्किट से लगी आग लोगों के हौसले पस्त करने के लिए काफी थे. बताया जाता है कि राजकीय मेला में तीन दिनों के भीतर 60 से 70 करोड रुपये का व्यवसाय होता है लेकिन आने वाले लोगों को सुविधा नहीं मिल पाती है.
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राजकीय मेला में बूंद-बूंद पानी को तरसते रहे लोग
मोरवा : इंद्रवारा पंचायत में साल 2010 से आयोजित हो रहे राजकीय मिलेगी को व्यवस्था दिन व दिन बिगड़ती ही जा रही है.
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