Samastipur News: प्रकाश कुमार, समस्तीपुर : कठपुतली का खेल देखकर बच्चे हों या बुजुर्ग सभी वाह-वाह कर उठते हैं. अंगुलियों के इशारे पर नाचती कठपुतली जब बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का संदेश देती है तो बच्चे ही नहीं अभिभावक और ग्रामीण भी बेटियों की शिक्षा के महत्व को समझते हैं. गीत और कहानियों के माध्यम से कठपुतली अच्छे से गणित, विज्ञान, सामाजिक विषय व हिंदी आदि विषयों के पाठों को बच्चों को सहज ही समझा देती है. कठपुतली से शैक्षिक गतिविधियों को रोचक बनाने का हुनर जिले के मोरवा प्रखंड स्थित मध्य विद्यालय बाजितपुर करनैल में पदस्थापित शिक्षिका ज्योति श्वेता बाखूबी समझती हैं. कठपुतली कला और कला के अन्य विधाओं का समायोजन कर के पढ़ाने का प्रयास उनका सफल रहा है. इनका कठपुतली से परिचय काफी पहले से रहा पर समायोजन व कई तरह के कठपुतलियों का निर्माण इन्होंने तब सीखा जब इनका चयन एससीईआरटी द्वारा जिला से सीसीआरटी हैदराबाद में एनइपी 2020 के अनुरूप शिक्षा में कठपुतली की भूमिका के प्रशिक्षण कार्यशाला में किया गया. वहां से प्रशिक्षण के बाद इन्होंने अपना समय विद्यालय में कठपुतली कला के पाठ्यक्रम के समायोजन में लगाया जिसका असर यह रहा की बच्चों में पढ़ने की झिझक दूर हुई. सीखने के नये अवसर मिले.
मीना मंच को बनाया सशक्त
गीत-कहानी के माध्यम से ऐसे रोचक ढंग से पढ़ाती हैं कि बच्चे यही कह उठते हैं मैडम जी अभी मत जाइए. वह कहानी, रंगमंच, त्वरित नवाचार से बच्चों का शैक्षिक संवर्धन कर चुकी हैं. उन्हें कठपुतली बनाना सिखा रहे हैं. अपने नवाचार के माध्यम से शिक्षकों तथा अभिभावकों को भी दायित्व बोध कराते रहते हैं. अपने अनुभव को इन्होंने शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय सीटीई समस्तीपुर के प्रशिक्षुकों के साथ भी साझा किया. जहां सॉक्स पपेट, शैडो पपेट तथा वेन्ट्रिलक्विजम जैसे कला के बारे में बताया.– कठपुतली को घुमाते-नचाते शिक्षिका करती है बच्चों से संवाद
वर्ष 2024 के दिसम्बर माह के लिए अपने उत्कृष्ट कार्य तथा तरह-तरह के कठपुतली के समायोजन के प्रयास के लिए टीचर ऑफ द मंथ अवार्ड के साथ विवेकानंद शिक्षा सम्मान 2025 से सम्मानित किया गया. बिहार दिवस 2025 में एक साधन सेवी के रूप में अपना कर्तव्य निर्वाह करते हुए बच्चों को तरह-तरह के पपेट बनाना सिखाया. कठपुतली का सहारा लेते हुए मीना मंच की विविध कहानियों के माध्यम से किशोरियों को महावारी, शिक्षा के महत्व जैसे गंभीर मुद्दों को समझाती हैं और उनको जागरूक करती हैं. अभिभावकों ने भी बेटियों की शिक्षा व उनके स्वास्थ्य संबंधी विषयों को गंभीरता से समझा और उस पर अमल भी कर रहे हैं. शिक्षिका बताती है कि प्राथमिक स्तर पर बच्चों की अपनी एक काल्पनिक दुनिया होती है, वे गुड्डे-गुड़ियों से आकर्षित होते हैं. अपने अनुभवों के आधार पर उन्होंने पाया कि कठपुतलियां भावनात्मक रूप से प्रभाव डालती हैं, शांत बच्चे भी बोलना शुरू कर देते हैं. कठपुतलियां हमेशा से संदेश देने वाली रहीं हैं. यह मनोरंजन के साथ सीख देने वाली रही हैं. यह अलग बात है कि नई तकनीक के दौर में इनकी पहचान कम हो गई है, बावजूद इसके कठपुतलियों को बच्चों को बेहतर ढंग से शिक्षा देने का सशक्त माध्यम साबित किया है.
मानवेंद्र कुमार रायडीपीओ एसएसए, समस्तीपुरडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है