कनकनी. 10 डिग्री सेल्सियस पर आया पारा, नहीं की गयी अलाव की सरकारी व्यवस्था
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हाड़ कंपा रही पछिया हवा, सूरज भी नाकाम
कनकनी. 10 डिग्री सेल्सियस पर आया पारा, नहीं की गयी अलाव की सरकारी व्यवस्था सर्द हवा ने सिहरन बढ़ा दी है. पूरे बदन को ढकने के बाद भी हो ठंड का एहसास होता है. वहीं अलाव की सरकारी व्यवस्था नहीं होने से गरीबों का बुरा हाल है. सहरसा : दिसंबर के पहले सप्ताह से शुरू […]
सर्द हवा ने सिहरन बढ़ा दी है. पूरे बदन को ढकने के बाद भी हो ठंड का एहसास होता है. वहीं अलाव की सरकारी व्यवस्था नहीं होने से गरीबों का बुरा हाल है.
सहरसा : दिसंबर के पहले सप्ताह से शुरू हुआ शीतलहर का कहर लगातार जारी है. मौसम का पारा भी लगातार नीचे गिरता जा रहा है. सातवें दिन यह लुढ़कता हुआ दस के करीब आकर अटक गया है. इस बीच सोमवार को सूरज के ठीक ठाक दर्शन भी हुए. थोड़ी तपिश का एहसास भी हुआ. लोगों ने कपड़ों को धूप भी दिखाया. लेकिन उसी शाम से मौसम पर शीतलहर ने फिर से अपना कब्जा लौटा लिया. शेष सभी दिन लुकाछिपी चलती रही. पिछले गुरुवार से लगातार बहती पछिया हवा ने मौसम की शीतलता को दूनी कर दी है. आठवें दिन हांड़ को कंपाकंपाने वाली ठंड से जन जीवन अस्त-व्यस्त होने लगा है. सूरज पूरी तरह दक्षिणायन में चला गया है. सोमवार को दिन भर तो सूरज आसमान में छाया रहा, लेकिन पछुआ हवा उसकी तपिश लगातार कम करती रही.
शाम होते-होते एक बार फिर से सभी ठंड से सिहर उठे. जबकि अन्य दिन तो देर से भी सूरज आसमान में नजर नहीं आता है. यदि कुछ देर के लिए दिखाई भी देता है तो उसकी तपिश बिल्कुल प्रभावहीन साबित हो रही है. बह रही पछिया हवा लोगों का हाड़ कंपा रही है. इस शीतलहर में लोगों का अधिकतर समय आग के पास ही गुजर रहा है. आग ही ठंड से थोड़ी बहुत राहत दिला पा रही है. पूरी तरह गर्म कपड़ों में लिपट कर ही लोग बाहर जाने की हिम्मत जुटा पाते हैं. इंसान की तरह पशु-पक्षी भी इस शीतलहर से परेशान हैं. पालतू पशु को तो उनके मालिकों ने उसके शरीर पर बोरा-चट्टी ओढ़ा दिया है, लेकिन आवारा घुमने वाले पशुओं की जैसे मौत ही आ गयी है. वे भी अलाव की तलाश में ही भटक रहे हैं. दुत्कारे जाने के बाद भी इंसानों के साथ बैठ आग तापने से वे परहेज नहीं कर रहे हैं.
गिर रहा पारा
जिले में मौसम का पारा लुढ़क कर दस डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच गया है. जबकि अधिकतम का पारा अठारह डिग्री पर ही अटका रहा. लगातार बह रही हवा से मौसम और भी ठंडा होता जा रहा है. पानी छूने व पीने लायक नहीं रह गया है. एक स्वेटर या एक विंड चीटर ठंड से बचाव में नाकाफी है. सड़क पर निकलने वालों के बदन पर इनर थर्मोकॉट के अलावा दो-दो स्वेटर व जैकेट चढ़े रहते हैं. महिला व बुजुर्ग शरीर को गरम रखने के लिए चादरों का निश्चित रूप से उपयोग कर रहे हैं. सामान्य रूप से सबों के पांव में जूता-मोजा और कान में टोपी या मफलर लगा होता है. बाजार में चाय कॉफी की बिक्री बढ़ गयी है. अमूमन दो से तीन बार पीने वाले लोग इस शीतलहर में चार से पांच बार पी ले रहे हैं.
अलाव से लगाव
इस कड़ाके की ठंड में लोगों को अपनी जान की हिफाजत सिर्फ अलाव में ही दिख रही है. अभी अक्सर सभी घरों में दस से बारह घंटे तक अलाव जलता रहता है. आग के पास ही बैठ लोग अपने अधिकतर कामों को निपटाना चाहते हैं. आवश्यक कार्य से बाहर निकलने के बाद बाजार में जहां कहीं भी अलाव जलता दिखता है, वे वहां बैठ थोड़ी देर ताप फिर आगे बढ़ते हैं. चूंकि शहरी क्षेत्र में बिजली की स्थिति भी अभी ठीक -ठाक रहती है, इसलिए घरों में हीटर का भी जम कर उपयोग हो रहा है. हीटर से घर सहित लोगों के शरीर को कंपकंपी से बड़ी राहत मिल रही है. शीतलहर ने बाजार में हीटर की बिक्री भी बढ़ा दी है.
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