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ईंट भट्ठे पर जिंदगी बिताने को विवश है नारी

कोसी नाट्य महोत्सव. नारी अस्तित्व व उसकी वेदना पर चोट करती ईंंटउघनी का हुआ मंचन साहित्यकार डॉ मनोरंजन झा के 70 वीं जयंती समारोह पर पंचकोसी सांस्कृतिक मंच द्वारा आयोजित दो दिवसीय कोशी नाट्य महोत्सव के पहले दिन डॉ मनोरंजन झा की काव्य रचना ईंटउघनी का नाट्य मंचन पंचकोसी के रंगकर्मियों द्वारा हुआ. सहरसा : […]

कोसी नाट्य महोत्सव. नारी अस्तित्व व उसकी वेदना पर चोट करती ईंंटउघनी का हुआ मंचन

साहित्यकार डॉ मनोरंजन झा के 70 वीं जयंती समारोह पर पंचकोसी सांस्कृतिक मंच द्वारा आयोजित दो दिवसीय कोशी नाट्य महोत्सव के पहले दिन डॉ मनोरंजन झा की काव्य रचना ईंटउघनी का नाट्य मंचन पंचकोसी के रंगकर्मियों द्वारा हुआ.
सहरसा : काव्य ईंटउघनी के नाट्य रूपांतरण के मंचन से रंगकर्मियों ने मौजूदा व्यवस्था पर प्रहार करते सफेदपोशों के असली चेहरा को उजागर करने व दर्शकों के समक्ष समाज के अंदर छिपी बुराइयों को सामने लाने का सफल प्रयास किया.
नारी वेदना व उसके अस्तित्व की रक्षा पर सवाल खड़ा करते काव्य रचना का हिन्दी रूपांतरण कर पंचकोसी के रंगकर्मी विकास भारती व श्वेता कुमारी ने इसे नाटक का रूप दिया. इसे पंचकोसी के युवा रंगकर्मी अमित कुमार जयजय की परिकल्पना व निर्देशन में प्रस्तुत किया गया.
सब पेट की खातिर…
नारी शोषण पर केंद्रित इस नाटक में अपनी पेट की आग बुझाने के लिए दो जून की रोटी के तलाश में ईंट भट्ठे पर अपनी जिंदगी बिताने को मजबूर एक लाचार बेबस महिला की कहानी के जीवंत अभिनय ने महिलाओं के प्रति सफेदपोशों कही सोंच व चरित्र को उजागर कर दिया. सामाजिक व्यवस्था के बदलाव को लेकर हमारे समाज में चाहे जितना भी ढिंढोरा पीटा जा रहा हो. लेकिन वास्तव में ईंटउघनी के मंचन में सामाजिक व्यवस्था में हमारे समाज के अंदर कहीं न कहीं रित्रयां आज भी सिर्फ शोषण व उपभोग की वस्तु मात्र बनकर रह गयी.
महिलाओं को लेकर बनी सोच हमेशा ही तथाकथित लोगों की घूरती आंखें, लपलपाती जिह्वा से लार टपकाते सभ्य लोग आज के इस आधुनिक युग में भी प्रतिष्ठा का चोला पहनकर हर जगह मौजूद हैं. जहां पर स्त्रियां विज्ञापन के लिए नंगी खड़ी मिल जायेगी. किसी के साथ अपना सर्वस्व दांव पर लगाकर तो कहीं अपने जीवन के लिए. वजह सिर्फ पापी पेट कहीं न कहीं उसके सामने मजबूर बन खड़ा हो जाता है. जिसकी वजह से एक नारी अपना सब कुछ लुटाने की खातिर मजबूर हो जाती है. डॉ मनोरंजन झा की रचना ईंटउघनी में नारी की इसी मजबूरियों को दिखाने मे पंचकोसी के रंगकर्मियों ने अपने सशक्त अभिनय से कोशी नाट्य महोत्सव के पहले दिन के आयोजन को सफल बनाने में कामयाब रहे.
डॉ मनोरंजन झा की रचना में सफेदपोशों का असली चेहरा उजागर करने में सफल रही प्रस्तुति
पंचकोसी द्वारा प्रस्तुत ईंटउघनी के कुछ दृश्य
रंगकर्मियों ने जीवंत अभिनय कर दर्शकों को किया आकर्षित
नाटक में रंगकर्मी विकास भारती, श्वेता कुमारी, नंदिनी कुमारी, राजनंदिनी कुमारी, निधि कुमारी, मिथुन कुमार गुप्ता, संतोष कुमार मिश्र, अमित कुमार अंशु, चंदन कुमार, मिथुन राम, सुमित कुमार, उमेश राम, सुंदर कुमार अपने जीवंत अभिनय कर पूरी नाटक में दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित किये रहे. ईंटउघनी नाटक के जरिये अपने घरों से बाहर अपने परिवार की दो जून रोटी की जुगाड़ में बाहर निकल काम करने मजदूर महिला जो एसी पंखा में आराम फरमाते वाली महिला से इतर पापी पेट की भूख मिटाने के लिये चिलचिलाती धूप में, ठिठुरती ठंड में अपनी इज्जत बचाती, कहीं बलात्कार तो कहीं शोषण तो कहीं मौत के घाट उतार दी जाती है.
फिर भी स्त्रियां मौन है. अपने श्रम पथ पर समय की प्रतीक्षा में लाज बचाने की इच्छा में, अपना भाग्य गढ़ रही है. नाटक को अपने हाव भाव से जीवंत प्रस्तुति देने पर देर तक कला भवन के सभागार में तालियां बजती रही.
नाटक देख रहे लोगों के सामने कलाकारों ने समाज की इस सच्चाई को बखूबी परोसा. संस्था के सचिव व टीम लीडर अभय कुमार के नेतृत्व में नाटक को सफल बनाने में परिधान को खुश्बु कुमारी, मेकअप श्वेता व निधि, लाइट अमित कुमार जयजय, सेट निर्माण विकास भारती, मंच सज्जा अमित कुमार अंशु, मिथुन कुमार गुप्ता सहित सुधांशु शेखर, धीरज कुमार व अन्य ने अपनी सहभागिता निभायी.

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