सहरसा : संस्कृत उच्च विद्यालय बनगांव से सेवानिवृत्त राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त पंडित रघुवंश झा उम्र के अंतिम पड़ाव पर भी शिक्षा दान में जुटे हैं. संस्कृत के साथ अन्य विषयों पर भी उनकी अच्छी पकड़ रही है. वे बच्चों के नैतिक शिक्षा के हिमायती हैं. उन्होंने कहा कि मानव जीवन को सफल बनाने के लिए शिक्षा जरूरी है.
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पढ़ने-पढ़ाने में ही जिंदगी गुजर जाये तो बेहतर
सहरसा : संस्कृत उच्च विद्यालय बनगांव से सेवानिवृत्त राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त पंडित रघुवंश झा उम्र के अंतिम पड़ाव पर भी शिक्षा दान में जुटे हैं. संस्कृत के साथ अन्य विषयों पर भी उनकी अच्छी पकड़ रही है. वे बच्चों के नैतिक शिक्षा के हिमायती हैं. उन्होंने कहा कि मानव जीवन को सफल बनाने के लिए […]
उन्होंने कहा कि अब लोग शिक्षा के प्रति जागरूक हो रहे हैं. लेकिन यह जागरूकता भी पूरी तरह नहीं है. उन्होंने कहा कि सरकारी सहित निजी विद्यालय में बड़े-बड़े भवन तो खड़े कर दिये गये, लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है एवं योग्य शिक्षकों की अनदेखी हो रही है.
जिससे सरकारी व निजी विद्यालय में शैक्षणिक स्तर गिर रहा है. इसके लिए शिक्षकों एवं अभिभावकों को भी आगे आना होगा. तब ही सरकारी व निजी विद्यालयों में शिक्षा सुधार हो सकता है. उम्र के अंतिम पड़ाव पर भी पंडित झा थका महसूस नहीं कर रहे हैं. वे आज भी बच्चों को पढ़ाने में जुटे रहते हैं एवं खुद भी पुस्तकों को पढ़ने में अभिरुचि रखते हैं. उन्होंने कहा कि पढ़ते पढ़ाते ही जीवन समाप्त करना चाहते हैं.
स्कूल ही नहीं, घर पर भी बच्चों को पढ़ाते हैं अवधेश
सहरसा. शिक्षा के क्षेत्र में बच्चों के प्रति समर्पित उत्क्रमित मध्य विद्यालय इटहरा सौरबाजार के प्रधानाचार्य अवधेश कुमार झा बच्चों के चतुर्दिक विकास में अपना योगदान दे रहे हैं. पिछड़े क्षेत्र में अवस्थित इस विद्यालय में वर्ष 2016 में योगदान देने के बाद इन्होंने गरीब बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाया है. इनके योगदान के बाद इस विद्यालय के 11 बच्चे राष्ट्रीय आय सह मेधा छात्रवृत्ति के लिए चयनित हो चुके हैं.
एक छात्र सिमुलतला आवासीय विद्यालय के लिए चयनित हुआ है एवं एक छात्र नवोदय विद्यालय के लिए चयनित हुआ है. बच्चों के घरों पर जाकर भी यह उन्हें शिक्षा के प्रति लगनशील बनाने का काम कर रहे हैं. हिंदी एवं मैथिली में उनकी अनेक रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हो चुकी है. दिनकर साहित्य सम्मान एवं गोपाल सिंह नेपाली साहित्य शिखर सम्मान से भी वे सम्मानित हो चुके हैं.
निरक्षर मां ने दिव्यांग पुत्र को दिखायी ऊंची शिक्षा की राह
सिमरी बख्तियारपुर : ऐ अंधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया, मां ने आंखें खोल दी घर में उजाला हो गया. यह शायरी स्थानीय निवासी दोनों पैरों से लाचार पुत्र रितुकी मां ने परिवार का सहारा बनकर चरितार्थ किया है.
मां अपने बुलंद हौसलों से आर्थिक तंगी व विपरीत परिस्थितियों के बावजूद सात लाडली संतानों को अच्छी शिक्षा ग्रहण करवा रही है. जानकारी के अनुसार मोबारकपुर पंचायत के गोरगामा निवासी मकेश्वर पंडित व उनकी पत्नी संजो देवी निरक्षर होने के बावजूद अपने विकलांग पुत्र को उच्च शिक्षा दिलवा रहे हैं. शादी के बाद पुत्र 6 पुत्री के बाद पुत्र रितु का जन्म हुआ.
लेकिन आर्थिक तंगी व विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपनी संतानों को अच्छी शिक्षा ग्रहण करवाकर उनका भविष्य उज्ज्वल बनाने की ठान ली. संजो देवी ने बताया कि उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद पति के सहयोग से दुकान पर व्यवसाय के साथ-साथ पुत्र पुत्री को संस्कारवान शिक्षा के लिए प्रेरित भी कर रही है.
ताकि वह आगे बढ़कर समाज के लिए उदाहरण बन सके. रितु कुमार ने बताया कि उनकी माता ने निरक्षर होने के बावजूद उन्हें इस बात का कभी एहसास नहीं होने दिया और हमेशा उन्हें शिक्षा के माध्यम से आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रही है. जो उसके लिए एक वरदान है. मां विपरीत परिस्थितियों में सारे दुख स्वयं झेलकर अपने बच्चों को खुश देखकर सुकून महसूस करती है. आज दोनों पैर से विकलांग रितु स्नातक तक की पढ़ाई कर कंप्यूटर की पढ़ाई कर रहे हैं
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