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इस बार चुनाव में राष्ट्रीय संदर्भों के अलावा स्थानीय मुद्दों में रहेंगे ओवरब्रिज, एनएच 107 और कोसी नदी

सहरसा : यह सही है कि लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय संदर्भों के लिए होता है. आतंकवाद, विदेश नीति, विदेशों से संबंध, कूटनीति, मुद्रा नीति, सीमा सुरक्षा सहित रोजगार, प्रति व्यक्ति आय, सबके विकास के लिए योजनाएं ही मुख्य रूप से प्रभावी होती हैं. लोकसभा चुनाव में जीत कर जाने वाले व्यक्ति संसद में बैठते हैं और […]

सहरसा : यह सही है कि लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय संदर्भों के लिए होता है. आतंकवाद, विदेश नीति, विदेशों से संबंध, कूटनीति, मुद्रा नीति, सीमा सुरक्षा सहित रोजगार, प्रति व्यक्ति आय, सबके विकास के लिए योजनाएं ही मुख्य रूप से प्रभावी होती हैं. लोकसभा चुनाव में जीत कर जाने वाले व्यक्ति संसद में बैठते हैं और देश को बाहर व भीतर से मजबूती प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय मुद्दों पर कानून बनाते हैं.

लेकिन चुनाव में इन सभी राष्ट्रीय मुद्दों के अलावे क्षेत्रीय विकास की बातें भी समाहित होती हैं. लोग संसद सदस्य से अपने क्षेत्र के विकास की अपेक्षा रखते हैं.
अपने क्षेत्र के विकास के लिए योजना लाने की उम्मीद रखते हैं. सहरसा के मतदाताओं के पास भी कई मुद्दे हैं. जिनमें बंगाली बाजार का ओवरब्रिज व खगड़िया से शुरू होकर सहरसा के रास्ते मधेपुरा और पूर्णिया को जोड़ने वाला नेशनल हाइवे 107 प्रमुख है. इसके अलावे कोसी के सिल्ट को निकाल नदी की सफाई कराने का मुद्दा भी राष्ट्रीय मुद्दे में पूर्व से शामिल रहा है.
लोकसभा चुनाव को ले नामांकन, नामांकन वापसी और नामांकन रद्द होने के बाद एनडीए, महागठबंधन व जाप के अलावे दस उम्मीदवार चुनावी अखाड़े में हैं. सौभाग्य से इनमें से तीन दलों के तीनों उम्मीदवार क्रमश: क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. तीनों ने क्षेत्र की समस्याओं को काफी करीब से देखा है. लेकिन दुर्भाग्य दशकों व वर्षों पुरानी इन समस्याओं का समाधान नहीं हो पाया है.
आरओबी के नहीं बनने से थम गयी रफ्तार: बंगाली बाजार स्थित रेलवे समपार संख्या 31 ए स्पेशल पर ओवरब्रिज की कहानी लगभग 22 वर्ष पुरानी है. 22 वर्ष पूर्व शिलान्यास किये गये इस आरओबी के निर्माण का कार्य अब तक शुरू नहीं किया जा सका है.
जबकि इन 22 वर्षों में दिग्विजय सिंह के अलावा अलग-अलग समय रेलमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव एवं अधीर रंजन चौधरी ने भी की. हालांकि लंबे समय तक यह मामला एनएच व पीडब्ल्यूडी को लेकर केंद्र व राज्य सरकार के बीच झूलता रहा.
कभी केंद्र राज्य को, तो कभी राज्य केंद्र सरकार को दोषी जवाबदेह बताती रही. जब मामला साफ हुआ तो तारीख पर तारीख का लान होता रहा. लेकिन इस दिशा में कोई कदम नहीं बढ़ सका. 22 वर्षों में एक अदद ओवरब्रिज बना नहीं और अब शहर में कम से कम तीन आरओबी की जरूरत आ पड़ी है. ओवरब्रिज के बगैर हर घंटे लगने वाली जाम की समस्या लगातार विकराल होती जा रही है और विकास की रफ्तार काफी धीमी हो गयी है.
हाइवे का रूप नहीं ले सका एनएच 107
पांच जुलाई 2001 को केंद्र सरकार के तत्कालीन सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री बीसी खंडूरी ने महेशखूंट-सहरसा-पूर्णिया एनएच 107 की आधारशिला रखी थी. लेकिन यह मार्ग अब तक नेशनल हाइवे का रूप नहीं ले सका. समय-समय पर इस सड़क की मरम्मत नहीं किये जाने से यह सिंगल सड़क लगातार टूटती, बिखरती चली गयी.
पिछले पांच वर्षों में इस नेशनल हाइवे की दशा अत्यंत दयनीय हो गयी. पूरी सड़क पर बड़े-बड़े गड्ढे हो गये हैं. तीन घंटे की दूरी छह से सात घंटे में तय होती है. वाहन सहित लोगों के दुर्घटनाग्रस्त होने का सिलसिला लगातार जारी है. बार-बार और लगातार आवाजें उठती रही.
लेकिन मरम्मती की दिशा में कोई काम नहीं हुआ. लगभग दो वर्ष पूर्व पीएम ने इसके दोहरीकरण किये जाने की घोषणा की थी. पिछले महीने इस दिशा में काम शुरू भी हुआ. लेकिन जमीन अधिग्रहण, मुआवजे के भुगतान की लंबी प्रक्रिया के शुरू होते ही चुनाव की सुगबुगाहट शुरू होते ही आचार संहिता लग गया और काम अटक गया. हालांकि इन पांच वर्षों में इस अतिमहत्वपूर्ण सड़क को सुगम्य भी नहीं बनाया जा सका.
57 वर्षों में नहीं बनी कोसी की सफाई की योजना
कोसी बिहार का शोक वैसे ही नहीं कही जाती है. नेपाल के पहाड़ों से निकलने के बाद पूर्वी एवं पश्चिमी तटबंधों में बहकर यह नदी 125 किलोमीटर का सफर करती है. कोसी नदी विश्व की सबसे अधिक सिल्ट बहाकर लाने वाली नदी है. इसीलिए नदी सिल्ट से भर चुकी है.
बता दें कि कोसी पने साथ एक लीटर पानी में तीन ग्राम सिल्ट बहाकर लाती है. कोसी के प्रकोप से बचने के लिए बिहार सरकार तटबंध को ऊंचा व चौड़ा करती जा रही है. तटबंध को बचाने के लिए हर साल करोड़ों रुपये बहाये जाते हैं. अब स्थिति यह हो गई है कि अधिकतर जगहों पर नदी का तल तटबंध के बाहरी तल से बहुत अधिक ऊंचा हो गया है.
1962 में तटबंधों के बीच कोसी नदी को बांध तो दिया गया. लेकिन इन 57 सालों में कभी भी नदी की सफाई की योजना नहीं बनी. इस मुद्दे पर संसद में कभी सवाल भी नहीं उठ सका. नदी का तल काफी ऊंचा हो जाने कारण ही तटबंध के बाहर सीपेज की समस्या भी बढ़ती जा रही है और दोनों ओर हजारों-लाखों एकड़ खेतिहर जमीन जलप्लावित रहकर बेकार पड़ी रहती है.

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