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विडंबना : फोटोस्टेट, किराना ही नहीं, चाय भी बेचते हैं इंजीनियर

नौकरी के अभाव में भटक रहे इंजीनियर सिमरी बख्तियारपुर के सिटानाबाद की कहानी सहरसा : पापा कहते हैं बेटा नाम करेगा, कोई डॉक्टर तो कोई इंजीनियर का काम करेगा…हिंदी सिनेमा का यह गीत सुनने में भले ही अच्छा लगता हो लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल अलग है. जिले में अब भी सैकड़ों की तादाद में […]

नौकरी के अभाव में भटक रहे इंजीनियर

सिमरी बख्तियारपुर के सिटानाबाद की कहानी
सहरसा : पापा कहते हैं बेटा नाम करेगा, कोई डॉक्टर तो कोई इंजीनियर का काम करेगा…हिंदी सिनेमा का यह गीत सुनने में भले ही अच्छा लगता हो लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल अलग है. जिले में अब भी सैकड़ों की तादाद में इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर शिक्षित युवा दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर हैं. यह सच्चाई है जिले के सिमरी बख्तियारपुर
विडंबना : फोटोस्टेट, किराना…
प्रखंड के सिटानाबाद गांव की, जहां बाजार में प्रवेश करते ही चाय, फोटोस्टेट, किराना व मोबाइल की दुकानें आप को दिखनी शुरू हो जायेंगी. आप को आश्चर्य होगा कि इन दुकानों पर काम कर अपने परिवार की जीविका चलाने वाले अधिकांश इंजीनियर हैं, जिन्होंने नौकरी नहीं मिलने के बाद इन छोटी-छोटी दुकानों को ही अपनी आजीविका का सहारा बना लिया. गांव के युवा बताते हैं कि इंजीनियरिंग की डिग्री का जिक्र करते हुए भी अब शर्म महसूस होती है.
गांव में अब नहीं बनते लोग इंजीनियर
इन लोगों के अलावा गांव के ही सरफराज, महबूब आलम, अब्दुल हई सहित दर्जनों ऐसे लोग हैं, जो इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद भी बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं. पूंजी के अभाव में किराना व परचून की दुकान चला कई लोग अपने व परिवार का गुजारा कर रहे हैं. इन लोगों के सामने डिग्री से ज्यादा अब रोजाना की जरूरत परेशानी बन सामने खड़ी रहती है.
इंजीनियर तारिक अब चाय बेचते हैं
गांव के युवा मो तारिक अनवर ने एमआइटी से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्यूनिकेशन में बीटेक की डिग्री ली थी. डिग्री मिलने के बाद काफी परिश्रम के बाद भी जब नौकरी नहीं मिली, तो वे गांव में ही रहने लगे. वे बताते हैं कि पिताजी गांव में ही मिठाई व नमकीन की छोटी सी दुकान चलाते हैं. उन्होंने अपना पेट काट कर इंजीनियर बनाया था. अब मजबूरी में पिताजी के दुकान के आगे ही चाय की गुमटी लगा ली है. चाय बेचने से जो आमदनी होती है उससे किसी प्रकार परिवार की जीविका चल रही है.
फोटोकॉपी है जीने का साधन
इंजीनियर मो अजहरुद्दीन अब गांव के ही चौक बाजार में फोटोस्टेट की दुकान चलाते हैं. गांव में फोटोस्टेट के लिए कम लोगों की आवाजाही होती है. आठ वर्षों पहले ली गयी बीटेक की डिग्री अब तक किसी काम की नहीं रह गयी है. उन्होंने बताया कि गांव के लोग इंजीनियर के संबोधन से बुलाते हैं तो शर्म आती है. उन्होंने बताया कि परिवार में रह रहे लोगों की उम्मीद जुड़ी हुई है. समय बचता है तो किसी प्रकार मनी ट्रांसफर जैसे काम कर जीविका के लिए कुछ धन का जुगाड़ मुश्किल से कर पाते हैं.
लुकमान को वसुधा केंद्र का सहारा
स्थानीय युवा मो लुकमान बीटेक की डिग्री मिलने के बाद एमबीए भी कर चुके हैं. बीएनएमयू से इंजीनियरिंग की डिग्री मिलने के बाद उन्होंने अलीगढ़ के विश्वविद्यालय से एमबीए किया था. नौकरी नहीं मिलने के बाद गांव में ही वसुधा केंद्र चला रहे हैं, जहां गांव के लोगों का आधार व पैन कार्ड बनाते हैं. इसके अलावा फोटोस्टेट की मशीन भी लगा रखी है. उन्होंने कहा कि मजदूर भी गांव में रोजाना तीन से चार सौ रुपया कमा लेते हैं, लेकिन इंजीनियर की डिग्री बमुश्किल दो सौ रुपया कमा पाती है.

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