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समापन के मौके पर झूम उठे लोग

– मान-सम्मान से भावविभोर हुए बांग्लादेशी कलाकार – सर्द रात में भी जमे रहे लोग सासाराम कार्यालय : डेहरी-सासाराम जैसे छोटे शहरों में नाटक, नृत्य या फिर कला का प्रदर्शन वैसे भी सामान्य बात नहीं है. लेकिन, समारोह की शोभा बढ़ाने के लिए देश के सभी बड़े शहरों से कलाकारों का जुटान हो, एक छोटे […]

– मान-सम्मान से भावविभोर हुए बांग्लादेशी कलाकार

– सर्द रात में भी जमे रहे लोग

सासाराम कार्यालय : डेहरी-सासाराम जैसे छोटे शहरों में नाटक, नृत्य या फिर कला का प्रदर्शन वैसे भी सामान्य बात नहीं है. लेकिन, समारोह की शोभा बढ़ाने के लिए देश के सभी बड़े शहरों से कलाकारों का जुटान हो, एक छोटे से शहर में देश ही नहीं, बल्कि पड़ोसी बांग्लादेश से भी नाट्य कलाकार अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने सरहद पार आये, तो चर्चा होना लाजिमी है.

पुरस्कार भले ही किसी को मिला, प्रथम, द्वितीय या सांत्वना पुरस्कार ही क्यों न मिले, लेकिन कलाकारों को जो मान-सम्मान यहां मिला, उससे वे भाव-विभोर हो गये.

देर रात तक चला जश्न का दौर

देर रात तक कलाकारों का हंसी-खुशी, मौज मनाते डेहरी से लौटने का सिलसिला जारी रहा. दिल्ली से आयीं 26 वर्षीय निशा ने बताया कि नाटकों के प्रदर्शन के लिए देश के कोने-कोने में गयी, लेकिन आयोजकों ने जो सम्मान, कला के प्रति प्रेम, खाने-रहने से लेकर सुरक्षा के जो इंतजाम किया, उसकी जितनी तारीफ की जाये कम है.

सुनने में यह जरूर छोटी बात लगती है, लेकिन आयोजकों को विशेष शुक्रिया तो अदा करना ही होगा. वैसे भी 23 वर्षो का यह सफर बिना सर्मपण के निर्बाध रूप से चल नहीं सकती. देश में सैकड़ों थियेटर कंपनियां हैं, रंगमंच से जुड़े सैकड़ों संगठन हैं, लेकिन शायद ही किसी संगठन ने इतने दिनों तक कला, साहित्य व नृत्य के प्रति समर्पित भाव से लोगों का स्वस्थ मनोरंजन करने, कलाकारों को हुनर दिखाने के साथ सामाजिक संदेश देने का बेहतरीन मंच प्रस्तुत किया हो. यहां उल्लेखनीय है कि बॉलीवुड की मशहूर अदाकारा विद्या बालन भी 1990 में डेहरी के इस रंगमंच पर अपनी कला प्रदर्शित कर चुकी हैं.

रविवार को समापन समारोह में जो दर्शकों का हुजूम उमड़ा, जहां देर रात्रि तक रंगारंग व नाट्य का आनंद लेने के लिए लोग कड़ाके की ठंड में भी जमे रहे. धन्यवाद डालमियानगर के लोगों का भी करना होगा. आखिर कलाकारों को और चाहिए क्या? उत्साह, तालियों की गड़गड़ाहट और जजों की हौसला अफजाई ही तो उनकी पूंजी होती है.

अधिकारी भी जमे रहे

समापन समारोह में जब पुरस्कार वितरण की बारी आयी, तो भी दर्शकों के साथ मंचासीन अतिथियों ने भी कलाकारों को पुरस्कार देने के लिए देर रात तक मंच पर जमे रहे. अभिनव कला संगम के निदेशक कमलेश सिंह, अध्यक्ष संजय सिंह बाला व उनके साथियों के इस अनथक प्रयास और हिम्मत की जितनी भी सराहना की जाये, वह कम है. कारण कि रंगमंच के कलाकारों के लिए इससे बेहतर प्लेटफॉर्म शायद बिहार-झारखंड में कहीं और नहीं मिल सकती.

यह कहना दूर-दराज से आये कलाकारों-नाटककारों व रंगकर्मियों का है. अभिनव कला संगम का यह प्रयास निश्चित तौर पर उन कलाकारों के लिए वरदान साबित हो रहा है, जिनके पास प्रतिभा भी है और देश-समाज को कुछ देने का हुनर भी.

Prabhat Khabar Digital Desk
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