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बिहार के इस गांव का नाम ग्रामीणों को लगता है कलंक, बदलकर लगा दिया बोर्ड, पर सरकार नहीं मानती

अपने गांव के नाम पर किसको गर्व नहीं होता है, लेकिन बिहार के पूर्णिया जिले में स्थित इस गांव की कहानी एकदम अलग है. यहां के गांव के लोगों को अपने गांव का नाम कलंक की तरह लगता है.

बिहार के पूर्णिया जिले के इस गांव के लोगों के लिए उनके गांव का नाम कलंक की तरह है. इस कलंक को वे मिटाना भी चाहते हैं. इसलिेए गांव का नाम बदलकर बिरसा नगर कर दिया. बिरसा नगर नाम का बोर्ड भी लगा दिया, लेकिन सरकार नाम बदलने के लिए तैयार नहीं दिख रही है. 

आप जानना चाहेंगे कि आखिर गांव का ऐसा क्या नाम क्या है कि लोगों को कलंक की तरह लग रहा है. दरअसल इस गांव का नाम पाकिस्तान टोला है. आपको जानकर हैरानी होगी कि इस पाकिस्तान को आदिवासियों ने बसाया है. भारत विभाजन के वक्त तत्कालीन बंगाल में छाये तनाव के बीच वहां से आये आदिवासियों से यह पाकिस्तान आस्तित्व में आया. जिले के श्रीनगर प्रखंड के सिंघिया पंचायत के अंतर्गत पाकिस्तान गांव में आदिवासियों के करीब 100 घर हैं. गांव के जेठा टुडु, बाजिल मूरमू आदि बताते हैं कि पूर्वजों ने गांव का नाम पाकिस्तान रखा. वह समय देश की आजादी का वक्त था. 

अब चाहते हैं बिरसानगर से दुनिया जाने

पाकिस्तान गांव के आदिवासी चाहते हैं कि दुनिया अब उनके गांव को बिरसानगर से जानें. गांव के बाहर एक पेड़ पर बिरसा नगर का बोर्ड भी ग्रामीणों ने लगा रखा है. ग्रामीण बताते हैं कि कुछ महीने पहले ही गांव के लोगों ने गांव का नया नाम बिरसानगर रखा है. मगर अब भी उन्हें पाकिस्तान के नाम से ही पहचाना जाना जाता है.

आधार, राशन, वोटर कार्ड सबमें पाकिस्तान

गांव को बिरसा नगर से पुकारा जाना सब चाहते हैं पर नाम के चक्कर में एक बार अपनी जमीन और अपना आस्तित्व नहीं खोना चाहते हैं. गांव के आदिवासी बताते हैं कि उनके आधार कार्ड, वोटर कार्ड, राशन कार्ड सबमें पाकिस्तान टोला दर्ज है. ऐसे में बिरसा नगर के नाम से गांव का दर्जा मिलने के साथ ही उनके कागजात में भी गांव के नाम का सुधार होगा, तभी वे पाकिस्तान नाम पूरी तरह से छूट पायेगा. 

बाहर ही रूक जाता है विकास का पहिया 

जिला मुख्यालय से महज 30 किमी दूर पाकिस्तान गांव आते-आते विकास का पहिया पूरी तरह थम गया है. गांव से कुछ दूर लोहा पुल है. उसके बाद गांव की बदरंग तस्वीर. कच्ची सड़क में बड़े-बड़े गड्ढे हैं. गांव में ना तो कोई स्कूल है और ना ही अस्पताल. योजना के नाम पर मिट्टी भराई कार्य का शिलापट्ट और नल-जल योजना की पाइपलाइन है. गांव के आदिवासी बताते हैं कि बरसात में संपर्क पथ डूब जाता है और सामान्य आवाजाही पूरी तरह से बंद हो जाती है. 

हम जंगली, हमारा गांव भी उपेक्षित

गांव की उपेक्षा का दर्द यहां के आदिवासियों को बरबस सालता है. वे बेबाकी से कहते हैं कि हम तो जंगली हैं. इसलिए सभी ने मान लिया है कि हमें ऐसे ही रहना पसंद हैं. जबकि हकीकत है कि आसपास के जंगल काफी घट गये हैं और हमारा जीवनयापन दिन ब दिन कठिन हो रहा है. बरसात शुरू होते ही गांव के नौजवान कमाने के लिए पंजाब निकल जायेंगे.

RajeshKumar Ojha
RajeshKumar Ojha
Senior Journalist with more than 20 years of experience in reporting for Print & Digital.

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