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खीरा की खेती से संवर रही जिले के किसानों की किस्मत

पूर्णिया : खीरांचल के नाम से विख्यात हो चुके पूर्णिया के उच्च भूमि के इलाके में बड़े पैमाने पर खीरा की खेती की गयी है. पहले यह खेती सिर्फ कटिहार जिले के समेली प्रखंड के इलाके में होती थी. अब इस खेती ने पूरे सीमांचल में विस्तार ले लिया है. खासकर पूर्णिया का इलाका इसमें […]

पूर्णिया : खीरांचल के नाम से विख्यात हो चुके पूर्णिया के उच्च भूमि के इलाके में बड़े पैमाने पर खीरा की खेती की गयी है. पहले यह खेती सिर्फ कटिहार जिले के समेली प्रखंड के इलाके में होती थी. अब इस खेती ने पूरे सीमांचल में विस्तार ले लिया है.

खासकर पूर्णिया का इलाका इसमें सबसे आगे आ गया है. कहते हैं कि जबसे केला की खेती में किसानों को घाटा लगने लगा और केले में महामारी फैल गयी तो वैकल्पिक नगदी खेती के रूप में किसानों ने खीरा की खेती शुरू कर दी. तीन वर्षों से इस खेती में काफी तेजी आयी है.
खीरा की खेती करने वाले किसान तीन माह की इस फसल से काफी मुनाफा कमा चुके हैं. इसी के देखादेखी अन्य छोटे-छोटे किसानों ने भी खीरा की खेती को अपना लिया है.
बताया जा रहा है कि यहां का खीरा बिहार के अधिकांश शहरों के अलावा बिहार से बाहर भी जा रहा है. अजब संयोग है कि खेतों में कीमत काफी कम है, उसके विपरीत मार्केट में पांच छह गुणा अधिक कीमत बनी हुई है.
दरअसल खपत के अनुसार मार्केट में ताजा खीरा वाहनों की किल्लत के कारण नहीं पहुंच रहे हैं. ऐन-केन-प्रकारेण मार्केट तक लाया जा रहा खीरा उंची कीमत पर बेची जा रही है. मांग ज्यादा और आपूर्ति कम होने की वजह से इस तरह के हालात बने हुए हैं.
चुनाव खत्म लेकिन कम नहीं हुई खीरा किसानों की पीड़ा
चुनाव को लेकर वाहनों की किल्लत के कारण खीरा की कीमत में काफी गिरावट आ गयी थी. लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद धीरे-धीरे एक बार फिर उछाल आ रही है जिससे किसानों के चेहरे खिलने लगे हैं. हालांकि वाहनों की किल्लत अभी भी है. इस कारण अधिक से अधिक मुनाफा नहीं मिल रहा है और खीरा किसानों की पीड़ा अभी भी कम नहीं हुई है.
चुनाव के कारण मार्च के उत्तरार्ध से फलने वाली खीरा की कीमत में अचानक गिरावट आ गयी. मार्च के अंत में चुनाव को लेकर वाहनों की धर पकड़ के कारण खेतों से बाजार तक खीरा को ले जाना मुश्किल हो गया. इस कारण खीरा के व्यापारी किसानों के पास पहुंचने ही नहीं लगे.
ऐसे में खीरा के किसानों की बेचैनी बढ़ गयी. कल तक 24 रुपये किलो के दर से खेतों में बिकने वाला खीरा अचानक तीन रुपये किलो हो गया. इस हालात से न सिर्फ खीरा बल्कि इसकी खेती करने वालों किसानों के चेहरे भी पीले पड़ने लगे. लेकिन जैसे ही 18 अप्रैल को चुनाव खत्म हुआ वैसे ही इन किसानों को थोड़ी आस हुई.

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