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चुनावी समर में बिछ गयी सियासत की बिसात, पूर्णिया में कांग्रेस के उदय सिंह की टक्कर जदयू के संतोष से

अरुण कुमार पूर्णिया : पूर्णिया के चुनावी समर में सियासत की बिसात बिछ गयी है. शह और मात के लिए सियासतदारों ने दांव-पेच भी शुरू कर दिये हैं. इस बार भी चुनाव की पिच वही है, चेहरे भी वही हैं, पर दल बदल गया है और समीकरण भी. अलबत्ता यह माना जा रहा है कि […]

अरुण कुमार

पूर्णिया : पूर्णिया के चुनावी समर में सियासत की बिसात बिछ गयी है. शह और मात के लिए सियासतदारों ने दांव-पेच भी शुरू कर दिये हैं. इस बार भी चुनाव की पिच वही है, चेहरे भी वही हैं, पर दल बदल गया है और समीकरण भी.

अलबत्ता यह माना जा रहा है कि यहां इस बार जदयू और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होगा. एनडीए में यह सीट जदयू के खाते में गयी है और जदयू ने इस सीट से संतोष कुमार कुशवाहा को चुनाव के मैदान में उतारा है. संतोष कुमार कुशवाहा ने पिछले 2014 के चुनाव में भाजपा को शिकस्त देकर इस सीट पर कब्जा जमाया था.

कांग्रेस की ओर से इस बार उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह चुनावी अखाड़े में उतरे हैं. सिंह पिछले 2014 में इसी सीट से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़े थे और हार गये थे. इस बार वे कांग्रेस का दामन थाम कर मैदान में डटे हैं. सिंह पूर्णिया से 2004 और 2009 में सांसद रह चुके हैं. याद रहे कि पिछले चुनाव में जदयू ने बिहार की जिन दो सीटों पर विजय का परचम लहराया था उनमें एक सीट पूर्णिया की थी.

उस समय जदयू अकेले था, पर अब एनडीए के साथ में है. जदयू हर हाल में इस सीट पर दोबारा कब्जा करने की जुगत भिड़ा रहा है. इधर, उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह को माय समीकरण का भरोसा है. उनकी मां माधुरी सिंह भी यहां से दो बार कांग्रेस की टिकट पर जीत चुकी हैं. पूर्णिया की कुल छह विधानसभा में दो पर जदयू, दो पर भाजपा और दो पर कांग्रेस का कब्जा है.

दो सुरक्षित सीटें

पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र में कुल विधानसभा

सीटें हैं. इनमें कसबा, पूर्णिया, रूपौली, धमदाहा, बनमनखी और कोढ़ा शामिल हैं. खास बात यह है कि इस लोकसभा सीट में आने वाले छह विधानसभा में दो सीट बनमनखी और कोढ़ा सुरक्षित सीटें हैं.

1952 से 1971 तक यह क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ माना जाता था. फणि गोपाल सेन यहां के पहले सांसद बने थे. 1977 में जनता पार्टी की लहर में यह सीट कांग्रेस की झोली से छिन गयी. लेकिन 1980 यह सीट फिर से कांग्रेस की झोली में चली गयी और माधुरी सिंह यहां से एमपी बनीं. फिर 1984 के चुनाव में भी इस सीट पर कांग्रेस की माधुरी सिंह का कब्जा बरकरार रह गया.

1989 में जनता दल के टिकट पर मो. तस्लीमउद्दीन इस सीट से विजयी हुए.1995 में हुए पुनर्मतदान में इस सीट पर निर्दलीय चुनाव लड़ कर राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने इस सीट पर कब्जा कर लिया. 1996 में सपा के टिकट पर राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव यहां से दोबारा एमपी बने. 1998 में जयकृष्ण मंडल ने पहली बार भाजपा का परचम लहराया और सांसद बने. 1999 में राजेश रंजन पुन: जीतकर यहां से एमपी बने. 2004 से 2009 तक लगातार दो बार भाजपा से उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह सांसद बने.

Prabhat Khabar Digital Desk
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