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पटना नगर निगम का सफर: शेरशाह ने कायम किया था ”शहरी महफूज महकमा” यानी नगर सुरक्षा विभाग

शेरशाह ने पुरारी शाहराहों (राजपथ) और उसके रास्तों की मरम्मत करायी. सड़कों के अलावा हर चार-चार मील की दूरी पर सराय बनवायीं. सराय के आसपास बाजार विकसित हुए.

नवीन रस्तोगी, वरिष्ठ पत्रकार: शेरशाह पहला मुस्लिम शासक था, जिसने बिहार के आम अवाम और शहरियों को बुनियादी सहूलियतें मुहैय्या करायी थीं. मौजूदा नगर निगम का जो स्वरूप आज देखने को मिलता है, उसकी शुरुआत शेरशाह ने ही की थी. उसने ”शहरी महफूज महकमा” के नाम से अपनी सल्तनत में विभाग कायम किया था, जो आम अवाम की बेहतरी के लिए काम करता था. शहरी महफूज महकमा का यदि शाब्दिक अनुवाद किया जाये तो वह ”नगर सुरक्षा विभाग” होगा.

शेरशाह ने बनवाया था सराय

शेरशाह ने पुरारी शाहराहों (राजपथ) और उसके रास्तों की मरम्मत करायी. सड़कों के अलावा हर चार-चार मील की दूरी पर सराय बनवायीं. सराय के आसपास बाजार विकसित हुए. इतिहास गवाह है कि शेरशाह ने जिन सड़कों की तामीर कार्रवाई थी उन सड़कों से दिल्ली, आगरा, लाहौर, मांडू, जोधपुर, चितौड़, मुल्ताना जाना-आना आसान हो गया था. सड़कों को राजधानी से जोड़ा गया था, ताकि अलग-अलग रास्तों से जरूरत पड़ने पर फौज या जनता को एक जगह से दूसरी जगह भेजने से आसानी हो. इन्हीं सराय में उसके चौक चौकी बनवा दी थी. यहां पर हरकारे और घोड़े रहते थे जो खबरों और खतों को तकसीम करते थे. यानी डाक भेजने का सबसे पहले इंतजाम शेरशाह की हुकूमत के दौरान ही हुआ था.

हर तीन कोस पर बनवाया था तालाब 

फिलहाल जलापूर्ति की व्यवस्था की जिम्मेदारी नगर निगम की है. इसकी शुरुआत भी शेरशाह ने अपनी हुकूमत के दौरान की थी. सड़क के किनारे, मस्जिदों और मंदिरों के पास, मकतब और पाठशालाओें में कुएं खुदवाये थे. हर तीन कोस की दूरी पर एक तालाब बनवाया था. इन कुओं और तालाबों कर देखभाल का जिम्मा शहरी महफूज महकमा का होता था. राजगीरों के आराम के लिए सड़क के किनारे किनारे पेड़ लगवायें.

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नगर निगम की जो व्यवस्था शेरशाह की हुकूमत में बनी

सफाई के लिए बड़ी तादाद में मजदूरों की बहाली की गयी थी. सड़कों पर चमड़े के मशक से पानी का छिड़काव किया जाता था. पानी का छिड़काव करने वालों को भिश्ती कहा जाता था. इसी तरह रौशनी के लिए जगह-जगह खंभों पर मशाल जलाये जाते थे. रौशनी के इंतजाम करने का काम मशालची करते थे. कुल मिला कर यह कहा जा सकता है कि नगर निगम की जो व्यवस्था दिखती है , शायद मुमकिन हो कि इसका प्रारंभिक प्रारूप शेरशाह की वक्ते-हुकूमत में बनी हो.

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