20.1 C
Ranchi
Friday, March 29, 2024

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Muharram 2022: फुलवारीशरीफ के कर्बला को आकर्षक ढंग से सजाया गया, सुरक्षा के बीच निकलेगा ताजिया

एक तरफ सिर्फ 72 जांनिसार, दूसरी तरफ यजीद के लश्कर की तादाद हजारों में थी. इससे यह साबित हो जाता है कि हजरत हुसैन किसी तरह भी करबला के जंग को टालना चाहते थे, लेकिन कुदरत को तो कुछ और ही मंजूर था.

मंगलवार को मुहर्रम की 10 वीं तारीख है. इस दिन को हजरत इमाम हुसैन की शहादत के रूप में याद करते हैं. अर्धसैनिक बलों की सुरक्षा में मंगलवार को फुलवारीशरीफ और आसपास के तमाम इलाकों में मोहर्रम का अखाड़ा निकलेगा. फुलवारीशरीफ के कर्बला में आकर्षक ढंग से सजावट की गयी है. शहर के विभिन्न इलाकों से ताजिया का पहलाम कर्बला इलाकों में होगा.

अखाड़ों से मर्सिया की आवाजें गूंज रही

फुलवारीशरीफ में ईसापुर नया टोला कर्बला नोहँसा मिलकियाना लाल मियां की दरगाह, खलील पुरा, सबजपुरा, मनसूर मोहल्ला, सय्यददाना मोहल्ला, महतवाना गुलिस्तान मोहल्ला, खानकाह मोहल्ला, चुनौती कुआं समेत संपतचक परसा बाजार, जानीपुर, अनीसाबाद, पहाड़पुर, चितकोहरा दमरीया के शहरी व ग्रामीण इलाकों में शहर के इमामबाड़ों में जहां हजरत इमाम हुसैन की याद में मातम की मजलिस सहित कई तरह के एहतेमाम किए जा रहे हैं. वहीं, ताजिया के अखाड़ों से मर्सिया की आवाजें गूंज रही हैं. हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के नवासे इमाम हुसैन की याद में कुरआनख्वानी और फातिहा का भी सिलसिला शुरू है.

हुसैन को यजीदों ने शहीद कर दिया था

इस्लामी जानकारों के अनुसार 10 मुहर्रम 61 हिजरी (610 ई) को करबला के मैदान में इमाम हुसैन को यजीदों ने शहीद कर दिया था. हजरत हुसैन ने यजीद के साथ जो जंग लड़ी, उसका मकसद सत्ता या सिंहासन प्राप्त करना नहीं था, बल्कि इस्लाम धर्म के उसूल के खिलाफत समाज को गलत राह दिखाने वालों का मुखर होकर विरोध करना था. हजरत हुसैन ने यजीद की गलत नीतियों और समाज के खिलाफ किए जा रहे हैं कुकृत्य को मानने से इन्कार कर दिया था. सत्य के लिए यजीद से जंग करने को तैयार हो गए.

हजरत हुसैन ने यजीद को यह समझाने की हर मुमकिन कोशिश की कि वादे के मुताबिक वह खुद को खलीफा घोषित न करे और तमाम मुसलमानों से सलाह-मशवरा के बाद कोई फैसला लिया जाए. हालांकि नबी के नवासे इमाम हुसैन के तमाम दलीलों और इस्लाम के उसूलों को मानने से इन्कार करते हुए यजीद अपनी मनमानी पर उतारू था. कहा जाता है कि हजरत इमाम हुसैन का मकसद जंग करना नहीं था.

हजरत इमाम हुसैन अपने परिवार के कुनबे के साथ उस पवित्र जगह को छोड़कर दूसरी जगह जाने के लिए तैयार थे, लेकिन रास्ते में यजीद के लोगों ने उन्हें घेर लिया. हजरत हुसैन का जंग करना मकसद होता, तो वे अपने साथ लश्कर लेकर निकलते. इतिहास गवाह है कि हजरत हुसैन के साथ उनके खानदान के लोग और कुछ अन्य सहयोगी थे, जिनकी तादाद केवल 72 थी और जिनमें औरतें व बच्चे भी शामिल थे.

Also Read: बेतिया से पटना आकर लूटते थे ज्वेलरी की दुकानें, राजीवनगर में बेच चले जाते थे वापस, 8 लूटेरे गिरफ्तार
हक पर कुर्बान होने की मिसाल

एक तरफ सिर्फ 72 जांनिसार, दूसरी तरफ यजीद के लश्कर की तादाद हजारों में थी. इससे यह साबित हो जाता है कि हजरत हुसैन किसी तरह भी करबला के जंग को टालना चाहते थे, लेकिन कुदरत को तो कुछ और ही मंजूर था. दुनिया को यह सबक सिखाना था कि सच्चाई के लिए बड़ी से बड़ी ताकतों के सामने झुकना नहीं है और असत्य को हर हाल में अस्वीकार करना है, लेकिन यजीद और उसकी सेना ने 10वीं मुहर्रम को हजरत हुसैन और उनके सहयोगियों को घेरकर शहीद कर डाला. जब तक दुनिया में अत्याचार, अधर्म और असत्य रहेगा, तब तक हर साल मुहर्रम के माह में हजरत हुसैन की शहादत की प्रासंगिकता बरकरार रहेगी.

You May Like

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

अन्य खबरें