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चित्रकला अपने समय की सामाजिक अभिव्यक्ति है : अशोक भौमिक

पटना : बिहार इप्टा के विशेष ऑनलाइन फेसबुक कार्यक्रम 'रू-ब-रू' के छठे अंक में रविवार को प्रख्यात चित्रकार और चित्रकला समीक्षा के महत्वपूर्ण स्तंभ अशोक भौमिक ने शिरकत की. भारतीय चित्रकला पर चर्चा करते हुए अशोक भौमिक ने कहा कि भारतीय चित्रकला का मूल स्वरूप बीसवीं आदि के शुरुआत तक, धार्मिक कथाओं या राजा-बादशाहों की जीवनियों के चित्रण तक सीमित था. इस समय तक चित्रकला का आम जनता से कोई लेना-देना नहीं था.

पटना : बिहार इप्टा के विशेष ऑनलाइन फेसबुक कार्यक्रम ‘रू-ब-रू’ के छठे अंक में रविवार को प्रख्यात चित्रकार और चित्रकला समीक्षा के महत्वपूर्ण स्तंभ अशोक भौमिक ने शिरकत की. भारतीय चित्रकला पर चर्चा करते हुए अशोक भौमिक ने कहा कि भारतीय चित्रकला का मूल स्वरूप बीसवीं आदि के शुरुआत तक, धार्मिक कथाओं या राजा-बादशाहों की जीवनियों के चित्रण तक सीमित था. इस समय तक चित्रकला का आम जनता से कोई लेना-देना नहीं था.

उन्होंने कहा कि जनता के बीच यह भी चेतना नहीं थी कि चित्र किसे कहते हैं, या चित्रकला किसे कहते हैं. चित्रकला के ऐसे दौर जनता के लिए कला के नाम पर लोक कला और त्योहारों, उत्सवों में अल्पना, रंगोली, आदि ही थे. इसके जरिये वे कला से परिचित हो सकते थे. लेकिन, बीसवीं शताब्दी में पटचित्र ने आम आदमी को अपने चित्रों में लाना शुरू कर दिया.

चित्रकला की पाश्चात्य शैली की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि पश्चिम के कलाकारों में सामाजिक सरोकार की एक परंपरा रही है, जो इस समझ को कि चित्रकला में सर्वहारा का चित्रण भी संभव है, कलाकारों की एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी तक विरासत के रूप आगे बढ़ाया गया.

लॉकडाउन के दौरान अपनी स्थितियों की चर्चा करते हुए अशोक भौमिक ने कहा कि इस दौर मेरे चित्रों में केवल मेहनतकश जनता ही आ रही थी. कोई और दूर दूर तक नहीं था. यही वेदना ज्यादा महत्वपूर्ण है कि हम में मेहनतकश अवाम की ऊर्जा जिंदा है.

चित्रकला के महत्व और उसके प्रभाव की चर्चा करते हुए अशोक भौमिक ने कहा कि चित्रकला अपने एकल या सामूहिक अभिव्यक्ति को सामाजिक अभिव्यक्ति देता है. पेंटिंग आपके दिमाग को सोचने और कुछ नया रचने के लिए मजबूर कार्य है. वह भी बिना एक भी शब्द बोले.

अशोक भौमिक चित्रकला के क्षेत्र में काम करनेवाले अग्रणी लोगों में अशोक भौमिक का नाम प्रमुख है. चित्रों के माध्यम से समय, समाज और सत्ता के चेहरे को पहचानने की एक अनूठी कोशिश कर रहे हैं अशोक दा. अशोक दा ने वर्तमान सांस्कृतिक चुनौतियों के क्रम में हस्तक्षेप की जरूरत को समकालीन भारतीय चित्रकला के माध्यम से समझने की एक कोशिश की है.

इस अवसर पर प्री-शो के रूप में आरा इप्टा द्वारा कविवर कन्हैया की रचना ‘फिर नये संघर्ष का न्योता मिला है’ और बीहट इप्टा द्वारा मखदूम मोहिउद्दीन की रचना ‘हम मेहनतकश जगवालों से अपना हिस्सा मांगेगे’ प्रस्तुति किया गया. पटना इप्टा के वरीय साथी आशिक हुसैन ने रामधारी सिंह दिनकर की रचना ‘रश्मिरथी’ के छठे सर्ग ‘कृष्ण की चेतावनी’ का सस्वर पाठ किया.

Posted By : Kaushal Kishor

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