Bihar Famous Sweet: बिहार की सांस्कृतिक और पाक-परंपराओं में मिठाइयों का एक विशेष स्थान है. इसी मिठास भरी विरासत का एक अनमोल हिस्सा है भोजपुर जिले का ‘खुरमा’. एक ऐसी मिठाई जिसकी सादगी में ही उसका स्वाद छुपा है. आरा के आसपास के इलाकों में तैयार होने वाला खुरमा आज न केवल बिहार बल्कि देश और विदेशों तक अपनी पहचान बना चुका है.
आरा के पास बसे गांव से निकलती है देशव्यापी मिठास
भोजपुर जिले में खुरमा कई जगहों पर बनाया और बेचा जाता है, लेकिन इसका असली गढ़ माना जाता है आरा शहर से करीब 7 किलोमीटर दूर स्थित उदवंतनगर गांव. यहां खुरमा बनाने की परंपरा तकरीबन 80-85 साल पुरानी है. अंग्रेजी शासनकाल से चली आ रही यह मिठाई अब भी उसी पारंपरिक विधि से तैयार की जाती है, जिसमें न तो मिलावट की गुंजाइश होती है और न ही किसी कृत्रिम तत्व की जगह होती है.
सौ प्रतिशत शुद्धता से तैयार होती है यह मिठाई
खुरमा केवल दो प्रमुख सामग्रियों से बनती है – छेना और चीनी. लेकिन इसका स्वाद जितना सरल है, उसे पाना उतना ही मेहनत भरा. खुरमा बनाने की प्रक्रिया करीब दो घंटे की होती है. सबसे पहले दूध से छेना तैयार किया जाता है. फिर उस छेना को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता है और फिर उन्हें चीनी के घने पाक (घोल) में डुबोकर कोयले की धीमी आंच पर पकाया जाता है.
इस पूरी प्रक्रिया के दौरान स्वाद और बनावट का विशेष ध्यान रखा जाता है. तैयार खुरमा को कढ़ाई में ही ठंडा होने के लिए छोड़ दिया जाता है, ताकि मिठास उसमें पूरी तरह समा जाए. इसके बाद जब खुरमा परतदार होकर तैयार हो जाता है, तो उसकी महक और स्वाद हर किसी को अपनी ओर खींच लेता है.
रोजाना बनते हैं सैकड़ों किलो खुरमा
उदवंतनगर क्षेत्र में रोजाना करीब 150 से 200 किलो खुरमा तैयार होता है. दिलचस्प बात यह है कि अधिकतर मिठाई उसी दिन बिक जाती है. यह न सिर्फ स्थानीय ग्राहकों की पसंदीदा है, बल्कि दूर-दराज से लोग इसे खरीदने आते हैं. यह मिठाई पारंपरिक बक्सों में पैक कर बनारस, पटना, रांची, बंगलोर और यहां तक कि विदेशों तक भेजी जाती है.
हर घर की मिठास, हर रिश्ते की सौगात
खुरमा न सिर्फ स्वाद का प्रतीक है, बल्कि रिश्तों में मिठास घोलने वाली सौगात भी है. कई परिवार इसे त्योहारों, विवाहों और अन्य पारिवारिक आयोजनों में उपहार स्वरूप भेजते हैं. आरा का यह खुरमा अब एक ब्रांड बन चुका है, जिसकी मांग देश के विभिन्न कोनों में ही नहीं, बल्कि प्रवासी भारतीयों के बीच भी लगातार बढ़ रही है.
पारंपरिक मिठाई का आधुनिक मुकाम
आरा का खुरमा यह सिद्ध करता है कि परंपरा में ही नवाचार छिपा होता है. बिना किसी मशीन या मिलावट के, पूरी तरह देसी तरीकों से बनी यह मिठाई न केवल स्वादिष्ट है, बल्कि सुरक्षित और स्वास्थ्यवर्धक भी मानी जाती है. भोजपुर की यह मिठाई आज उस विरासत का प्रतीक बन चुकी है जिसे न तो वक्त धुंधला कर सका और न ही आधुनिकता का स्वाद फीका कर पाया. खुरमा सिर्फ एक मिठाई नहीं, बल्कि भोजपुर की उस रसोई से निकला मीठा संदेश है, जो हर कोने में बिहार की सोंधी खुशबू और परंपरा की मिठास फैलाता है.
Also Read: पाकिस्तानी गोलीबारी में बिहार का एक और लाल शहीद, तीन महीने पहले ही हुई थी शादी