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Bihar Election 2025: बिहार में धरोहर पर सियासत खामोश, पर्यटन भी नहीं बनते चुनावी मुद्दे

Bihar Election 2025: विधानसभा चुनाव के शोरगुल में नौकरी, मानदेय, जीविका, सुरक्षा, निवेश, सड़क और आरक्षण पर जमकर बहस तो खूब हो रही है, पर कोई दल या उम्मीदवार इस बात पर नहीं बोल रहा कि पटना का धरोहर कितना उपेक्षित है.

Bihar Election 2025: सुबोध कुमार नंदन, पटना. राजधानी पटना, जो कभी प्राचीन पाटलिपुत्र के नाम से विश्व मानचित्र पर ज्ञान, शासन और संस्कृति का केंद्र रहा, आज चुनावी मंचों पर हाशिये पर खड़ा है, खासकर जब बात पर्यटन की आती है. विधानसभा चुनाव के शोरगुल में नौकरी, मानदेय, जीविका, सुरक्षा, निवेश, सड़क और आरक्षण पर जमकर बहस तो खूब हो रही है, पर कोई दल या उम्मीदवार इस बात पर नहीं बोल रहा कि पटना का धरोहर कितना उपेक्षित है. पटना में पर्यटन की अपार संभावनाएं रहते इसका विकास नहीं हो पा रहा है.

कुम्हरार के मौर्यकालीन अवशेष भी उपेक्षा का शिकार

यहां कुम्हरार के मौर्यकालीन अवशेष भी उपेक्षा का शिकार है. खुदाई से निकले मौर्यकालीन पिलर अब देखने को नहीं मिलता है. बुलंदीबाग जहां मौर्यकालीन अवशेष है, वह उपेक्षित ही नहीं, बल्कि अतिक्रमण का शिकार हो चुका है. वहीं मनेर आज भी पर्यटकों की पहुंच से दूर है. यहां के तालाब अपने आप मे उपेक्षित है. कुछ साल पहले यहां बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम की ओर से कैफेटेरिया खोला गया था, जो अब बंद हो चुका है. यहां बोटिंग की सुविधा शुरू की गयी थी. वह अब इतिहास बन चुका है. बावली का कुआं संबलपुर में स्थित है. यह एक सात मंजिला बावली कुआं है, जो राजस्थानी शैली में बने भव्य झरोखो के लिए जाना जाता है. इसकी चिंता न तो जनप्रतिनिधियोंको है और न पर्यटन विभाग को है.

कमलदह क्षेत्र को माना जाता है सिद्धक्षेत्र

गुलजारबाग स्थित कमलदह क्षेत्र को सिद्धक्षेत्र माना जाता है. यही से मुनि सुदर्शन ने निर्वाण प्राप्त किया था. यही सुदर्शन मुनि की टेकरी है, जहां चरणपादुकाएं विराजमान है. लेकिन यह ऐतिहासिक स्थल सैकड़ों वर्ष बाद भी उपेक्षित है. जबकि पुरातत्व विभाग ने इस स्थल को पुरातात्विक स्थल घोषित कर रखा है. जैसे स्थल देश-दुनिया से आनेवाले सैलानियों को आकर्षित कर सकते है, लेकिन दुखद यह है कि इन स्थलों के विकास, संरक्षण और प्रचार-प्रसार के लिए कोई ठोस नीति अब तक नहीं बनी.

पर्यटन की है अपार संभावनाएं

पर्यटन विशेषज्ञ प्रकाश चंद कहते हैं कि पटना का नाम दुनिया भर में बौद्ध सर्किट और एतिहासिक नगरी के रूप में जाना जा सकता है, लेकिन नेताओं के एजेंडे में यह कभी प्राथमिकता में नहीं रहा, जबकि पर्यटन से रोजगार और सम्मान, दोनों मिल सकते हैं. वास्तव में, पटना में पर्यटन की अपार संभावनाएं है. यहां बुद्ध सर्किट के तहत वैशाली, नालंदा, राजगीर से जुड़ने की भूगोलिक सुविधा है. परंतु, एयर कनेक्टिविटी और गाइडेस सेंटरों की कमी और सरकारी अनदेखी ने इन संभावनाओं को धूल-धूसरित कर दिया है. बिहार चैबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्टरज के अध्यक्ष पीके अग्रवाल कहते है कि हर साल हजारों विदेशी और घरेलू सैलानी बोधगया या राजगीर तो पहुंचते हैं, पर पटना को वे सिर्फ ट्रांजिट पॉइंट मानते हैं. इसका कारण है खराब इन्फरास्ट्रक्चर और प्रचार की कमी.

इतिहास राजनीतिक विमर्श से हुआ गायब

स्थानीय इतिहासकार अरविंद महाजन कहते हैं कि चुनाव के वक्त कोई उम्मीदवार यह नहीं बताता कि अगर वे जीतेंगे तो गोलघर की लाइटिंग सुधर जाएगी, गांधी संग्रहालय को विश्वस्तरीय बनाया जायेगा या पुराना शहर हेरिटेज वॉक में शामिल होगा. इससे साफ है कि संस्कृति और इतिहास हमारे राजनीतिक विमर्श से गायब हो चुके है. कई युवा मतदाता भी इस उपेक्षा से नाराज है. पटना विश्वविद्यालय की छात्रा प्रियंका सिन्हा कहती है, अगर नेताओं को लगता है कि युवाओं को सिर्फ रोजगार चाहिए, तो वे भूल रहे है कि पर्यटन भी हजारों युवाओ को रोजगार दे सकता है, लेकिन कोई इस पर बात ही नहीं करता.

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Ashish Jha
Ashish Jha
डिजिटल पत्रकारिता के क्षेत्र में 10 वर्षों का अनुभव. लगातार कुछ अलग और बेहतर करने के साथ हर दिन कुछ न कुछ सीखने की कोशिश. वर्तमान में पटना में कार्यरत. बिहार की सामाजिक-राजनीतिक नब्ज को टटोलने के लिए प्रयासरत. देश-विदेश की घटनाओं और किस्से-कहानियों में विशेष रुचि. डिजिटल मीडिया के नए ट्रेंड्स, टूल्स और नैरेटिव स्टाइल्स को सीखने की चाहत.

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