Bihar chaupal-2: मनोज कुमार, पटना. आरा शहर में नेताजी की चुनावी सभा होनी थी. शहर से दूर पार्टी के समर्थक की परती खेत में ही मंच सज रहा है. टेंट वाले अपने काम में मगन थे. टेंट का मालिक हर पाये को ठीक से हिलाकर देखने का आदेश मजदूरों को दे रहा था. जैसे टेंट का मालिक खुद सत्ता पक्ष हो और उसे अपनी सत्ता उखड़ जाने का भय सता रहा हो. धीरे-धीरे कार्यकर्ताओं का जुटान शुरू हो गया था. नौशाद भाई अपने दो-चार लोगों के साथ पहुंचे. नौशाद भाई इधर-उधर गर्दन हिलाकर नजारा देखने लगे. तभी, उनकी नजर बीस बांस दूरी पर खड़े अयोध्या प्रसाद, बबन सिंह, रामस्वरूप सिंह, अवधेश राम पर गयी.
काहे पिछुवा गये नौशाद भाई
मंच के आस टेंट हाउस के मालिक के साथ चार पांच लोग खड़े थे. नौशाद भाई उनकी तरफ ही सरक गये. दूर से ही प्रणाम-सलाम हुआ. पास आते-आते सभी से दुआ-सलाम हो गयी थी. अयोध्या प्रसाद बोले- काहे पिछुवा गये नौशाद भाई. नौशाद भाई कुछ बोलने वाले थे, तभी बबन सिंह बीच में टपक गये. बोले- नौशाद भाई साहेब के सीधे टच में रहने वाले नेता हैं. इनके ऊपर बहुते लोड है. बीच-बीच में उनकी फोन की घंटी घनघना रही थी. फोन पर बात सुनने के बाद हर बार नौशाद भाई बोल रहे थे कि पहले आपलोग आइए. पेट्रोल हम भरवा देंगे. खाना-पीना का सब इंतजाम है. इससे लग रहा था कि कार्यक्रम की जिम्मेवारी नौशाद भाई पर थी.
भीड़ को वोट में बदलना होगा
बतकही आगे बढ़ी. इस बार अवधेश राम ने मुंह खोला. कहा- अबकी बार उलटफेर होना चाहिए. भीड़ को वोट में कंवर्ट कराना पड़ेगा. शाहबाद में मैसेज आरा से ही जाना चाहिए. अबकी एकरा के हिला देना है. बिना प्रसंग के शुरू हुई इस बात में वहां खड़े लोग बहुत इंटरेस्ट नहीं दिखा रहे थे. नौशाद भाई त अभियो फाेने पर बतियाये जा रहे थे. ठीक उसी तरह जैसे एसआइआर पर चुनाव आयोग कुछ और कह रहा है और विपक्षी दल कुछ और ही बोल रहे हैं. चूंकि बात निकल आयी थी तो अयोध्या प्रसाद ने माहौल को भांपने के लिए धीरे से कहा- ई सीट तबे निकलेगा, जब उम्मीदवार जमीनी होगा. पार्टी का समर्पित कार्यकर्ता होगा. अयोध्या जी ने ये बोलके वहां खड़े सभी लोगों के जख्म हरे कर दिये. काहे से कि वहां खड़े सभी पुराने कार्यकर्ता थे. नौशाद भाई 25 साल, बबन सिंह 30 साल, अवधेश और रामस्वरूप भी 20 साल से अधिक समय से पार्टी का झंडा ढो रहे हैं.
ई सब बात ऊपर के पहुंचायेगा
अवधेश राम ने कहा- अयोध्या भाई ठीक कह रहे हैं आप. मगर, ई सब बात ऊपर के पहुंचायेगा. नेताजी से भेंट भइले मुश्किल है. उनका से मिले खातिर कई गो छेदवाली लांघे के पड़ेगा. जबले नेताजी बड़े साहेब की तरह ओपेन दरबार नहीं लगायेंगे, तब ले जमीनी बात अऊर जमीनी कार्यकर्ता के ऊ चिन्हों नहीं पायेंगे. अवधेश राम की बात गंभीर मुद्रा में सुन रहे बबन सिंह बोले- चुनाव अब त एकदम माथे पर है. अभियो कवनो उपाय है या हमलोग खाली यहां गाले बजाते रहेंगे. तभी रामस्वरूप बोले- अऊर का कर लीजियेगा. बोलिये ना भाई. का करियेगा. बोलिये. जीवन भर दरी बिछाते रह जाइयेगा. नेताजी लोग के माला पहनावते जीवन बीत जायी. रामस्वरूप ने सभी का दुख अपने ही राग में गा दिया था. इसके बाद किसी के पास कुछ भी बोलने को था नहीं. कार्यक्रम शुरू होने का समय भी नजदीक था. चेहरे पर गंभीर सवाल ओढ़े, सभी टेंट की तरफ बढ़ गये.

