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बाढ़ राहत-बचाव : आप उस पार चलें, हम लेने आये हैं

बचाव : दियारे में रहने वालों की हिम्मत के आगे गंगा की धार भी हुई कम प्रहलाद कुमार पटना : आप लोगों को उस पार चलना है. हम आपको लेने आये हैं. सरकार ने उस पार आपके खाने व रहने का पूरा इंतजाम किया है. जब पानी और कम हो जायेगा, तो सरकार आपको वापस […]

बचाव : दियारे में रहने वालों की हिम्मत के आगे गंगा की धार भी हुई कम
प्रहलाद कुमार
पटना : आप लोगों को उस पार चलना है. हम आपको लेने आये हैं. सरकार ने उस पार आपके खाने व रहने का पूरा इंतजाम किया है. जब पानी और कम हो जायेगा, तो सरकार आपको वापस आपके घर नाव से भेज देगी. जिलाधिकारी संजय कुमार अग्रवाल की यह अपील भी दियारा वासी सुनने को तैयार नहीं हैं. बस दूसरी ओर से यही आवाज आ रही थी. हमार घर ढह गइल हई और हम अपन जानवर व घर के छोड़ कर इहां से नहीं जाइम. तभी छत पर खड़ी एक बुजुर्ग महिला बोली कि खाये लागी कुछ देकर जा, हम यहीं रहम. इसके बाद डीएम ने एनडीआरएफ की एक छोटी बोट बुलायी और उस पर बैठ कर गांव में निकल गये.
सभी गांवों के लोगों में राहत सामग्री बांटी गयी. इसके बाद गांव वालों से दोबारा चलने को कहा, लेकिन वहां रहने वाले बच्चे, महिला, बुजुर्ग किसी ने भी हामी नहीं भरी. यह नकटा पंचायत का सबसे पहला गांव था.
फिर मानस पंचायत पहुंची नाव : इसके बाद डीएम की नाव मानस पंचायत में पहुंची. एक छत पर सारा परिवार बैठा था और उस घर का पुरुष इस भीषण बाढ़ में भी कमाने के लिए पटना आया हुआ था. वह घर बिल्कुल गांव से बाहर था, जहां दूर-दूर तक कोई घर नहीं था. उस परिवार को भी पटना चलने को कहा गया, लेकिन वे लोग भी इसके लिए तैयार नहीं हुए. तभी छत से एक आवाज आयी, डॉक्टर साहब हथिन का, बचिया के तबीयत खराब है.
आवाज मिलने के बाद छोटी बोट से दो लोग उस घर तक पहुंचे और बच्ची को बड़ी नाव पर लाया, जहां डॉक्टर ने उसका इलाज किया. उस बच्ची के पैर में घाव था. पानी में चलने से फंगस हो गया था, जो पूरे पैर में फैल गया था. इस कारण से उसे बुखार भी आ रहा था. डॉक्टर ने उसे तुरंत दवा दी और वापस उसे घर में भेजा गया. इस पूरी पंचायत का हाल देखें, तो स्कूल, ट्रैक्टर, खलिहान सबकुछ डूब गया है, लेकिन इनकी हिम्मत ने इनको यहीं रोके रखा. जहां चारों ओर सिर्फ पानी है. शायद यही कारण है कि गंगा भी उनकी हिम्मत के आगे धीरे-धीरे कम होने लगी. उसके बाद नया पानापुर की ओर नाव गयी, जहां आठ सौ घरों का टोला है और उनके घरों में पानी पहुंच गया है. यहां रहने वाले परिवार भी जाने को तैयार नहीं हुए.
जब नदी में फंस गयी नाव : इसी दौरान जिला प्रशासन की नाव थोड़ी देर के लिए नदी में फंस गयी. उसे निकालने में आधे घंटे का समय लगा. उसी दौरान एक बच्चा सर पर कुछ लेकर छाती तक पानी में जा रहा था. उसको पूछा गया, तो बोला हमको गंगा में सड़क पता है, हम अपने घर पहुंच जायेंगे. कुछ राहत सामग्री है, तो दे दीजिए घर में खाना बढ़ जायेगा.
इसी पंचायत में एक छोटा पुल भी है, जानवरों को रखने के लिए वहीं पर जगह गांव वालों ने बनायी है. इसी तरह पांच घंटे तक पूरे पंचायत में घूमने के बाद जहां तक बड़ी नाव पहुंची, वहां तक राहत सामग्री बांटी गयी. उसके बाद छोटी नाव से राहत सामग्री बांटी गयी.
सुबह में पढ़ाई, दोपहर में खाना, पटरी पर लायी जा रही बाढ़पीड़ित बच्चों की जिंदगी
पटना. सुबह में पढ़ाई. उसके बाद खाना. फिर कुछ देर अाराम और दो घंटे खेल. कुछ ऐसी ही दिनचर्या बाढ़ पीड़ितों के बच्चों की है. वहीं, महिलाओं को साफ-सफाई की जानकारी देने के लिए महिला मंडल अस्थायी रूप से बनायी गयी है. इधर-उधर भटक रहे बाढ़ पीड़ितों की जिंदगी को पटरी पर लाने की कवायद शुरू कर दी गयी है. बाढ़ में सब कुछ खत्म हो चुके लोगों को शिविर में नयी जिंदगी शुरू करने का प्रयास किया जा रहा है.
शिक्षकों की बनायी गयी टीम : बाढ़ पीड़ित शिविर में जिंदगी को सही करने के लिए आंगनबाड़ी सेविकाओं की टीम बनायी गयी है. इसमें शिक्षकों के साथ मेडिकल एक्सपर्ट भी शामिल हैं. जहां शिक्षकों की टीम बच्चों को पढ़ाने में लगे हैं. वहीं, मेडिकल एक्सपर्ट की ओर से शिविर में रह रही महिलाओं को हाइजीन व सफाई की जानकारी दी जा रही है. आंगनबाड़ी पटना सदर दो की सीडीपीओ ममता वर्मा ने बताया कि मंगलवार से बच्चों को पढ़ाने का काम शुरू किया गया है. जब तक यह शिविर रहेगा, तब तक इन बच्चों को पढ़ाई करायी जायेगी.
बच्चों की हो रही गिनती
शिविर में रह रहे लाेगों की गिनती की जा रही है. इसमें जीरो से तीन साल, तीन साल से छह साल, किशोरी और गर्भवती महिलाओं की संख्या को अलग-अलग किया जा रहा है. सूची तैयार होने के बाद इन्हें उसी के अनुसार सुविधाएं भी दी जायेंगी. शिविर में बच्चों के लिए खिलौना भी रखे गये हैं. बीएन कॉलेजिएट हाइस्कूल में मौजूद सीडीपीओ ममता वर्मा ने बताया कि आंगनबाड़ी केंद्रों से खिलौना इन बच्चों को ला कर बुधवार से दिये जायेंगे.
सरकार बाढ़पीड़ितों को राहत पहुंचाने में नाकाम : भाजपा
सीएम जिम्मेवारियों से पीछा छुड़ा रहे हैं : नंदकिशोर
पटना : बाढ़पीड़ितों को राहत पहुंचाने के मामले को लेकर भाजपा ने राज्य सरकार पर हमला बोला है. पार्टी ने आरोप लगाया है कि सरकार राहत पहुंचाने में पूरी तरह विफल रहा है. न लोगों को खाना मिल रहा है और न मवेशियों को चारा. राहत केंद्र के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हो रही है.
सरकार अपनी जिम्मेदारियों से भाग रही है. वरिष्ठ भाजपा नेता व लोक लेखा समिति के सभापति नंदकिशोर यादव ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बाढ़ पीड़ितों से पीछा छुड़ाकर जिम्मेदारियों से भाग रहे हैं. बाढ़ से प्रभावित पीड़ितों को इलाज व दवा की आवश्यकता है. मुख्यमंत्री इन भयावह स्थितियों पर अपने तंत्र को गंभीरता से एक्शन में लाने के बदले वैसे मुद्दों को कुरेद रहे हैं, भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता संजय सिंह टाइगर ने कहा है कि बिहार की आधी से आबादी बाढ़ की चपेट में है और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सिर्फ आश्वासन की घुट्टी पिला रहे हैं .
कर्मियों की तैनाती में कोताही स्वीकार नहीं : अवधेश : पशु एवं मत्स्य संसाधन मंत्री अवधेश कुमार सिंह विभागीय अधिकारियों के साथ राज्य में बाढ़ की स्थिति की समीक्षा की. समीक्षा में उन्होंने बाढ़ग्रस्त जिलों में चल रहे पशु राहत शिविरों में पदाधिकारियों और कर्मचारियों की मौजूदगी बनाये रखने का निर्देश दिया. उन्होंने कहा कि शिविरों में पशु दवाओं के साथ-साथ पशु चारा की उपलब्धता हर हाल में होनी चाहिए. राज्य मुख्यालय और जिला मुख्यालयों में उपलब्ध ऐंबुलेट्री वैन का परिचालन बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में कराने का निर्देश देते हुए उन्होंने कहा कि पटना जिला के खुशरूपुर, फतुहा, बख्तियारपुर आदि जगहों के उन्होंने खुद निरीक्षण करेंगे.
बाढ़ राहत में ईमानदारी से सहायता करे केंद्र : भारती : प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष व विधान पार्षद रामचंद्र भारती ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बिहार में आये बाढ़ आपदा के लिए राज्य सरकार को हर संभव मदद देने का वादे पर प्रतिक्रिया व्यक्त की है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री का सकारात्मक रवैया स्वागत योग्य जरूर है, परंतु केवल वादे से समस्या का समाधान नहीं होता. विपदा की घड़ी में केंद्र को ईमानदारीपूर्वक राज्य सरकार काे सहयोग करना चाहिए.
मुसीबत के इस अवसर पर बिहार को अन्य राज्यों के समकक्ष लाने हेतु केंद्र को विशेष पैकेज की व्यवस्था करनी चाहिए.
नालों का रिसाव बंद पर गंगा टावर से नहीं निकला पानी
पटना : गंगा का स्तर बढ़ा, तो कुर्जी के रोड पार बने गंगा टावर में पानी घुस गया और मंगलवार की शाम तक नहीं निकल पाया. लेकिन, जहां-जहां नाले से गंगा का रिसाव हो रहा था, वह पूरी तरह से बंद होगा गया है. कुर्जी में दो नाले से पानी का फ्लो काफी था और एक दीवार के नीचे से भी पानी का रिसाव हो रहा था, जहां बोरे लगाये गये थे. अब वहां से पानी नहीं निकल रहा है.
श्री ब्रजकिशोर स्मारक प्रतिष्ठान के परिसर में बने घरों में पानी भरने लगा था, जहां पर अब पानी नहीं जा रहा है. पानी निकलना भी शुरू हो गया है. गंगा का जल स्तर घटने से निचले इलाके में पानी आना बंद हो गया है. कुर्जी से राजापुर पुल तक की सड़क, जो दो दिनों से बंद थी, उसे खोल दिया गया है.
आज से खुल जायेंगे स्कूल : दो दिनों से राजापुर पुल से दीघा तक पड़ने वाले जिन स्कूलों को डीएम के अादेश पर बंद कर दिया गया था वे सभी स्कूल बुधवार से खुल जायेंगे. डीएम संजय कुमार अग्रवाल के मुताबिक इन स्कूलों को यातायात व्यवस्था बाधित होने के कारण बंद कराया गया था, जो कि अब ठीक हो गया है. संत माइकल, नोट्रेडम, लोयला, बीडी पब्लिक स्कूल, डाॅन बासको व संत जोसेफ कांवेंट स्कूल को बंद कराया गया था.
रौद्र गंगा मइया की गोद में गूंजी ‘गंगा’ की किलकारी
जिंदगी लड़ रही थी लहरों से जंग
रविशंकर उपाध्याय
पटना : पटना में गंगा मइया के रौद्र रूप के बीच जन्मीदो कहानी है. एक कहानी सफेद, तो दूसरी थोड़ी स्याह है. गंगा मइया ने अपने गुस्सैल रूप के बीच अपनी गोद में नई जिंदगी को जन्म दिया और उसकी किलकारी को सुरक्षित गंगा के घाट तक पहुंचाया. वह आज गंगा के नाम से जानी जाने लगी है. वहीं दूसरी ओर, उन्होंने एक और बेटी को अपनी आंचल की छांव दी, लेकिन उस एक महीने की बच्ची का नाम उनके परिवारवालों ने बस कहने को ही सही, लेकिन दहाड़ी रख दिया. क्योंकि, उसका जन्म इस बाढ़ जिसे स्थानीय लोग दहाड़ भी कहते हैं, उस के ठीक एक महीने पहले हुआ. हम पहले बात गंगा की करते हैं.
गंगा, जिसकी उम्र केवल चार दिन है. नकटा दियारे के नया टोला की रहनेवाली गुड़िया 20 अगस्त की सुबह से ही प्रसव वेदना से कराह रही थी. उसका पति सिकंदर राय, यह सोच ही रहा था कि गुड़िया को गंगा पार कर अस्पताल ले जाया जाये, इसी बीच गंगा की लहरों ने पहले गांव के इर्द-गिर्द फिर जल्द ही समूचे इलाके को आगोश में ले लिया था. प्रशासन ने जो नाव मुहैया कराया उसमें किसी तरह अपनी जरूरत के सामान लेकर सिकंदर अपने मां, चाची, पिता और चाचा के साथ तीन बच्चों को लेकर चढ़ गया. दियारे में ही प्रसव वेदना जब अपने चरम पर पहुंच गया. सभी औरतों ने साड़ी-धोती घेर कर सुरक्षित घेरा बनाया और जब तक दीघा का किनारा आता, गंगा की किलकारी नाव पर ही गूंज उठी थी. घाट पर से उसे दीघा स्वास्थ्य उपकेंद्र ले जाया गया.
वहां से एक दिन बाद ही उसे छुट्टी दे दी गयी और आज गुड़िया अपनी नन्ही सी जान को गोद में लेकर मध्य विद्यालय में बने कैंप में ममता लुटा रही है.
…इधर बबली का नाम रख दिया दहाड़ी : मध्य विद्यालय के ठीक बगल में कन्या मध्य विद्यालय में भी एक कैंप है. यहां पर महज दो दर्जन लोग ही रहे रहे हैं. इसमें छितरचक दियारे के रहने वाले अरुण साव और उनकी पत्नी कांति देवी भी हैं. कांति को एक महीने पहले ही बेटी हुई थी. इसका नाम तो कांति और अरुण ने मिल कर बबली रखा था, लेकिन बबली की बड़ी दादी गुलजरिया देवी ने बाढ़ आने के कारण उसका नाम दहाड़ी रख दिया है.
गुलजरिया कहती है कि ऐकर जन्म होलो आउ बड़ी दिन बाद दहाड़ भी अयलो. इ त दहड़िया हको. यानी इसका जन्म हुआ और कुछ दिन बाद ही बाढ़ से सामना करना पड़ा. इसका नाम दहाड़ी रख दिये हैं. अरुण के परिवार की पूरी संपत्ति बाढ़ में दियारे में ही रह गयी है और इसी का दर्द पोती के नये नामकरण के रूप में सामने आया है.
बाढ़ पर राजनीति न करे केंद्र : चंद्रशेखर
पटना. आपदा प्रबंधन मंत्री प्रो चंद्रशेखर ने कहा है कि केंद्र सरकार और उनके केंद्रीय मंत्री बिहार की बाढ़ पर राजनीति न करें. उन्हेांने कहा है कि राज्य में लगभग एक माह से बाढ़ की स्थित बनी हुई है. इसके बावजूद केंद्र सरकार कोई सहायता या मदद की कोई चर्चा तक नहीं कर रही है.
बिहार दूसरे राज्य और देश की पानी से परेशान है, पर केंद्र की सरकार इससे निबटने में राज्य सरकार को कोई मदद करने के बजाय घू्म-घूम कर राजनीतिक बयानवाजी कर रहे हैं. इधर, फतुहा प्रखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में आये भीषण बाढ़ को लेकर मंगलवार को बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन मंत्री चंद्रशेखर सिंह स्थानीय विधायक डॉ रामानंद यादव के साथ फतुहा के सुकुलपुर, मौजीपुर,गढ़ोचक, कृपालटोला, पठानटोली,जेठुली, कच्चीदरगाह सहित दर्जनों गांवों का दौरा कर बाढ़ राहत की जानकारी ली.
इसके बाद वाणी पुस्तकालय में संवाददाता सम्मेलन आयोजित कर आपदा प्रबंधन मंत्री ने कहा कि सरकार के पास आपदा से निबटने के लिए संसाधन की कोई कमी नहीं है. वहीं पैसे की भी कमी नहीं आने दी जायेगी. उन्होंने बताया कि बाढ़ से प्रभावित किसानों को 13 हजार प्रति हेक्टेयर की दर से फसल क्षतिपूर्ति दी जायेगी. वहीं जिनके घर के चुल्हा में पानी चला गया है उनको छह हजार रुपये प्रति परिवार, पशु मरने पर 30 हजार रुपये, झोंपड़ीनुमा मकान गिरने पर 41 सौ व पक्का मकान ध्वस्त होने पर 95 हजार की राशि दी जायेगी.
नाव पर चढ़ने के क्रम में गर्भवती की गिरने से मौत
दानापुर. दियारे की बाढ़ग्रस्त पतलापुर पंचायत के हवसपुर डेरा निवासी अनिल राय की 25 वर्षीया गर्भवती पत्नी लक्ष्मी देवी को प्रसव के लिए खटिया पर लाद कर नाव पर चढ़ाने के क्रम में लक्ष्मी देवी की पानी में गिरने से मौत हो गयी़ शव को अनुमंडलीय अस्पताल में पोस्टमार्टम करा कर परिजनों को सौंप दिया गया़ यह घटना अकिलपुर थाने के दियारे हवसपुर डेरा में मंगलवार को सुबह घटी है़
डूबने से पांच की मौत
दानापुर. दियारे के अकिलपुर थाने के जाफरपुर निवासी मदन राय के आठ वर्षीय पुत्र मुकेश कुमार की मंगलवार दोपहर में बाढ़ के पानी में डूबने से मौत हो गयी. फतुहा प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न जगहों में बाढ़ के पानी में डूबने से दो लोगों की मौत हो गयी. जानकारी के अनुसार मौजीपुर निवासी कमलेश राय का पुत्र विकास कुमार 18 वर्ष पशु के लिए चारा लाने गया था,जो पानी के तेज बहाव में बह गया. वहीं दूसरी ओर गौरीपुंदा निवासी शिवशंकर बिंद की बेटी जितनी कुमारी 15 वर्ष मंगलवार को नदी के पास शौच के लिए गयी थी. जो बाढ़ के पानी में डूब गयी. खुसरूपुर में जानवरों के लिए टाल से घास लाने गया युवक बाढ़ की पानी में डूब गया. दीदारगंज थाना क्षेत्र के सोनावा में बाढ़ के पानी में मंगलवार को 40 वर्षीय युवक डूब गया है.
नीरज ने िलया जायजा
मोकामा. एमएलसी नीरज कुमार ने मंगलवार को कसहा दियारा का दौरा किया. कसहा दियारा पहुंचने के बाद बाढ़पीड़ितों ने एमएलसी से शिकायतों की झड़ी लगा दी. मौके पर मरांची मुखिया पंकेश कुमार, पूर्व मुखिया सुरेश निशाद, धनंजय सिंह, उमेश कुमार, धीरज, रोशन आदि मौजूद थे.
बाढ़ व मनेर में िकया एनएच जाम
बाढ़. मंगलवार की दोपहर गंंगा नदी के पानी को निकालने की मांग को लेकर एनटीपीसी थाने के सहनौरा गांव के पास एनएच 31 को दो घंटे तक जाम कर दिया. वहीं, मनेर में भी बाढ़पीड़ितों ने अपनी मांगों को लेकर एनएच जाम िकया. अथमलगोला में सबनीमा के पास गंगा में नाव पलट गयी. िजसमें 23 लोग सवार थे. लेिकन इस घटना में कोई हताहत नहीं हुआ.
1975 की बाढ़ के वे ग्यारह दिन व ग्यारह रातें, हर तरफ तबाही का मंजर
डॉ चतुर्भुज
24 अगस्त, 1975 की रात दस बजे खा-पीकर जब मैं पढ़ने बैठा, तब सड़क से लाउडस्पीकर की आवाज आयी. ‘संभव है, आज रात सोन नदी का बांध टूट जाये. इसलिए सभी लोग यथाशीघ्र सुरक्षित स्थान पर चले जाये. ‘ बार-बार यही सूचना. सुबह नौ बजे जब मैं दफ्तर के लिए तैयार हो रहा था, तब मेरा छोटा भाई अनंत कुमार दौड़ता आया और बोला कि पश्चिम से पानी काफी वेग से आ रहा है. आपके दरवाजे पर भी पहुंचने ही वाला है.
फिर उसने मुझे कहा कि आप सपरिवार मेरे मकान में आ जाएं. वह मंदिरी मुहल्ले में तीसरी मंजिल पर पर रहता था. उन दिनों मेरा यह छोटा भाई आकाशवाणी में समाचार वाचक था. रोज शाम को समाचार प्रसारण किया करता था. मैंने अपनी पत्नी और छोटे-छोटे बच्चों से कहा कि तुमलोग अनंत जी के घर चले जाओ. मैं पीछे से आता हूं. वे लोग जल्दी में तैयार होकर थोड़ी ही दूर गये होंगे कि मेरे दरवाजे पर और घर में तीन ओर से बाढ़ का पानी आ धमका. पुत्र अशोक और विनोद घर के दरवाजे और नालियों पर पानी रोकने के लिए मिट्टी जमा करने लगे. कुछ ही देर बाद दूर से पत्नी की आवाज सुनी.
वे लोग वापस घर लौट रहे थे क्योंकि तेज पानी ने अनंत जी के यहां पहुंचने का रास्ता बंद कर दिया था. तब तक उन लोगों का अपने घर पहुंचने का रास्ता भी बंद हो चुका था क्योंकि घर में पानी कमर तक आ गया था. उन्हें मैंने इशारे से कहा कि जहां तुम लोग खड़े हो, उसी मकान की छत पर शरण ले लो. वे लोग उसी मकान की छत पर चले गये. जल स्तर इतनी तेजी से बढ़ेगा, इसका अनुमान किसी को नहीं था. आधे घंटे में ही कमर भर पानी. मेरे लड़के और दामाद कृष्ण मोहन बाबू जल्दी-जल्दी में जो कुछ भी सामान खींच सके, उसे अपनी छत पर पहुंचा आये. कौन सामान जरूरी था और कौन गैरजरूरी इसकी छानबीन करने का समय कहां था. मैं दो-एक किताबें लेकर, साथ में ट्रांजिस्टर, लेकर छत पर आ गया. बगल में सीढ़ी थी. बाढ़ का पानी लगातार सीढ़ियों को डुबाता जा रहा था.
छत से मुहल्ले पर निगाह डाली.
सारे लोग सपरिवार खानाबदोश की तरह लाचार थे खुली छतों पर. एक अजीब दहशत थी. खुली छत पर ही शाम को दो ईंटों से चूल्हा बना. बांस के फट्ठों को जलाया. खिचड़ी बनायी और किसी तरह हलक के नीचे उतारी. पान की तलब लगी. मगर आता कहां से? हैंड बैग में मात्र नौ सिगरेट थी. एक सुलगाता और दो-तीन फूंक मार कर बुझा लेता. रात हुई. बिजली की लाइन कटी थी. चारों तरफ घुप्प अंधेरा. राम-राम करते वह रात बीत गयी. 26-27 अगस्त के दिन भी बीत गये. पानी न घटने का नाम लेता और न बढ़ने का.
27 अगस्त की रात में आयी घनघोर बारिश. हवा के तेज झोंकों के साथ मूसलधार बारिश. छत के ऊपर टंगा नाटक का परदा फड़फड़ाने लगा. हम चार आदमी परदा के चारों कोनों को थामे रहे, लेेेकिन बारिश से बच न सके. हवा में काफी ठंडक थी. 27 अगस्त की रात बड़ी भयंकर थी. 28 अगस्त की सुबह गीले कपड़ाें को सूखने के लिए छत पर फैला दिया. उस दिन से वायु सेना के जवान हेलिकॉप्टर से बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में राहत के सामान गिराने लगे. हेलिकॉप्टर, छत के इतने करीब आ जाते कि छत पर फैले सारे कपड़े उड़ने लगते.
धूप से बचाव का साधन, नाटक का वह मेरा परदा हेलिकॉप्टर की हवा में रस्सी तोड़ कर ऐसा उड़ा कि सिर ढंकने का एक मात्र साधन भी जाता रहा. हेलिकॉप्टर की हवा में उड़ कर लोगों के अनेक सामान 11-12 फुट पानी में चले गये. बाद में पटना वासियों को हेलिकॉप्टर की नीची उड़ान के समय बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में बार-बार सूचनाएं दी गयीं. आकाशवाणी पटना ने इस आपातकाल में अपनी बहुमूल्य सेवा दी.
आकाशवाणी के दफ्तर और स्टूडियो में पानी भर गया था. कलक्टर की मदद से नाव पर बैठ कर आकाशवाणी के उद्घोषक और समाचार वाचक और इंजीनियर करीब बीस किमी दूर फतुहा के नजदीक ट्रांसमीटर से प्रसारण करने जाते रहे. यह काम जान पर खेल कर होता. यह सिलसिला कई दिनों तक चला. अचानक एक रात मुझे अपने प्यारे कुत्ते ‘पौली’ की याद आयी. वह लापता था. मन उदास हो गया. चौथे दिन यानी 28 अगस्त को लगा कि पानी कुछ कम हो रहा है. छत पर की दूसरी सीढ़ी दिखाई देने लगी. एक सप्ताह बाद दूसरे मकान की छत पर रह रही मेरी पत्नी और बच्चों को मेरे एक संबंधी नाव द्वारा अपने घर ले जाने के लिए स्टेशन जा रहे थे.
आगे जाकर नाव से उतर कर जब वे सब रिक्शे पर सवार हुए, तब एक कृषकाय कुत्ता झट से उनके रिक्शे पर सवार हो गया. ‘अरे, यह तो पौली है’ एक हफ्ते से भूखा-हड्डियों का ढांचा मात्र. मेरा पुत्र अशोक उस कुत्ते को पानी में तैरा कर किसी तरह मेरे पास ले आया. सुबह का भूला सात दिनों के बाद कुत्ता घर लौटा. लोटपोट कर वह हमें अपनी दुर्दशा दिखाने लगा. उस दिन से वह रात भर सारी छत पर घूम घूम कर पहरा दिया करता. चार सितंबर को घुटने भर कीचड़ भरे पानी में मैं नीचे उतरा. कमरे में मुंह के बल गिरी पुस्तकों से भरी लकड़ी की आलमारी को देखते ही होश उड़ गये. मेरी सारी अमूल्य निधि नष्ट हो गयी थी.
पांडुलिपियां सड़-गल गयी थी. कीमती विदेशी पुस्तकों से भरी उस अलमारी की एक भी पुस्तक साबूत नहीं बची थी. बाढ़ का कारण यह था कि दानापुर के पास पश्चिमी तटबंध में दो स्थानों में दरार पड़ गयी थी. सोन और गंगा का पानी पश्चिमी और मध्य पटना में तीव्र वेग में फैलने लगा था. रात साढ़े नौ बजे अन्य प्रसारण रोक कर अंतत: आकाशवाणी के उद्घोषक को कहना पड़ा-हमारे स्टूडियो में बाढ़ का पानी प्रवेश कर गया है. अत: हम अपना कार्यक्रम प्रसारित नहीं कर पायेंगे. हमारे जेठुली स्थित ट्रांसमीटर से अगला कार्यक्रम होगा. पटना में प्रलय का दृश्य उपस्थित था. मुरादपुर और गांधी मैदान में नावें चल रही थीं. हमारे मुहल्ले में पानी छत को छू रहा था.
-लेखक आकाशवाणी के केंद्र िनदेशक व नाटककार हैं
यहां भी नावें चल रही थीं. इस प्राकृतिक विपदा में अनेक लोग मौत के शिकार हुए. शहर में मवेशियों की लाशें फैली थीं. सांपों का प्रकोप अलग था. प्रशासन ने ऐसे महाविनाश की कल्पना नहीं की थी. सामान्य होने में काफी समय लगा. भगवान बुद्ध ने सैकड़ों वर्ष पहले इस नगर के लिए ऐसा कहा था.
अखबारों का प्रकाशन बंद था. रेडियो का समाचार प्रसारण जेठुली के ट्रांसमीटर से हो रहा था. समाचार पाने का यही एकमात्र साधन था. मैंने ग्यारह दिन और ग्यारह रात खुली छत पर बितायी. प्रत्येक क्षण मृत्यु पास आती दिखाई दी. हमारी नाट्य संस्था ‘मगध आर्टिस्ट्स’ के ऐतिहासिक नाटकों के कीमती ड्रेस, राजसी जूते, सब नष्ट हो गये. कुछ पानी में तैरते देखे गये. मेरी नाट्य संस्था के पचासों हजार के सामान नष्ट हो चुके थे.
फिर भी हमारे कलाकारों ने बिहार और इसके बाहर टिकट पर अनेक शो किये और लाखों की राशि ‘बाढ़ राहत कोष’ में दे दी. वैसे तो बिहार के अनेक क्षेत्र बाढ़ से हर साल मार खाते रहते हैं लेकिन पटना की 1975 की वह भयंकर विनाशकारी बाढ़ अजीब थी, जिसने लाखों पटनावासियों को बरबाद कर दिया.
Prabhat Khabar Digital Desk
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