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आंकड़ों को समझे बिना नीतियां बनाना उचित नहीं : डॉ अनंत
पटना : वैश्विक स्तर पर भारतीय गनगणना के आंकड़ों की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं. उसकी गुणवत्ता सुधारने की भी बात हो रही है. उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी भी शुक्रवार को इस पर बोलते नजर आये. इस मुद्दे पर भारत सरकार के सचिव और चीफ स्टैटिस्टिशियन डॉ. टीसीए अनंत से बात की अभिमन्यु कुमार साहा […]
पटना : वैश्विक स्तर पर भारतीय गनगणना के आंकड़ों की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं. उसकी गुणवत्ता सुधारने की भी बात हो रही है. उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी भी शुक्रवार को इस पर बोलते नजर आये. इस मुद्दे पर भारत सरकार के सचिव और चीफ स्टैटिस्टिशियन डॉ. टीसीए अनंत से बात की अभिमन्यु कुमार साहा ने.
देश के आंकड़ों की विश्वसनीयता पर सवाल क्यों उठ रहे हैं?
आंकड़ों की गुणवत्ता पर सवाल खड़ा करना उचित नहीं होगा, क्योंकि शोध के तरीके अलग-अलग होते हैं, उसके आधार अलग-अलग हो सकते हैं. उद्देश्य भी अलग-अलग हो सकते हैं.
क्या वजह है कि आंकड़े उद्देश्य पर खरे नहीं उतर रहे हैं?
आंकड़ों के जुटाने की अगल-अगल मेथडोलॉजी होती है. फ्रेमवर्क अलग होते हैं. कुछ आंकड़ें खुद में महत्वपूर्ण होते हैं. उसके महत्व को ही नजरअंदाज कर देंगे तो सही परिणाम कैसे आयेगा.
क्या आंकड़ों के महत्व को नीति निर्धारक समझ नहीं पा रहे हैं?
बिल्कुल, मैं यही कहना चाह रहा था. हमारे नीति निर्धारक आंकड़ों को समझे बिना नीतियां बना रहे हैं. आंकड़ों को इस्तेमाल से पहले पूरी समझ जरूरी है. इसके बाद नीतियां बनानी चाहिए.
क्या आंकड़ों के निर्माण में राजनीतिक प्रभाव हावी होता है?
देखिए, ऐसा नहीं होता है. हां, इन आंकड़ों का राजनीतिक इस्तेमाल जरूर होता है. सेंसस के डेटा से संसद की बाउंड्री डिसाइड होती है. उसका एक बहुत बड़ा मुद्दा गवर्नेंस के साथ जुड़ा है.
ओपेन डाटा पॉलिसी हो?
मेरे हिसाब से नहीं होनी चाहिए, क्योंकि डाटा सार्वजनिक करने से गोपनीयता खतरे में पड़ सकती है. हमारी कमजोरी व मजबूती सरेआम हो जायेगी.
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