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देखिए, सियासत के आईने में साल 2015 की रोचक घटनाएं

आशुतोष के पांडेय पटना : सियासत सत्ता के बिना नहींचल सकती. सियासत के साथ संगसार भी राजनेता होते हैं. सत्ता के इर्द-गिर्द राजनीतिक घटनाओं का तानाबाना बुना जाता है. वर्ष 2015 कुछ घटनाओं को छोड़ दें तो यह साल बड़े सियासी हलचल के लिए जाना जाएगा. कही मिथ टूटे. कहीं धारणाएं खारिज हुई. कहीं परिणाम […]

आशुतोष के पांडेय

पटना : सियासत सत्ता के बिना नहींचल सकती. सियासत के साथ संगसार भी राजनेता होते हैं. सत्ता के इर्द-गिर्द राजनीतिक घटनाओं का तानाबाना बुना जाता है. वर्ष 2015 कुछ घटनाओं को छोड़ दें तो यह साल बड़े सियासी हलचल के लिए जाना जाएगा. कही मिथ टूटे. कहीं धारणाएं खारिज हुई. कहीं परिणाम उल्टे हुए. वर्ष 2015 अपने अंतिमकाल में है. 2016 का आगाज होने वाला है. वैसे में सियासत के आईने से वर्ष 2015 को देखना काफी रोचक होगा.

सारे अनुमान बिखर गए

वर्ष 2015 में सियासत ने कुछ ऐसे जलवे बिखेरे की बड़े-बड़े राजनीतिक पंडितों का अनुमान उनके गुमान से निकलकर महज गुब्बार बनकर रह गया. प्राचीन हस्तिनापुर वर्तमान दिल्ली की गद्दी कांग्रेस से छीनी वहीं बीजेपी के हाथ से निकलकर आम आदमी पार्टी की गोद में जा गिरी. बुद्ध के बिहार की जनता ने लालू-नीतीश की जोड़ी को सिर आंखों पर बिठाया और राज्य का तख्तो-ताज सौंप दिया.

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वर्ष की शुरुआत में ही बीजेपी को नयी दिल्ली दगा दे गयी और सबसे बड़ा सियासी झटका पार्टी को झेलनी पड़ी. चुनाव बाद विश्लेषकों का विश्लेषण महज चैनलों पर बहस बनकर रह गया और केजरीवाल की पार्टी ने दिल्ली को ऐतिहासिक तरीके से जीता. बीजेपी का विजय रथ लोकसभा चुनाव के बाद प्रचंड बहुमत के उद्दंड रथ पर सवार होकर विजय गाथा लिखता जा रहा था. दिल्ली ने उस विजय रथ को रोक दिया और पार्टी को मात्र 3 सीटें मिलीं.

सत्ता के लिए समझौता

सियासत में ऊंट कब किस करवट बैठे यह ऊंट हांकने वाले को भी पता नहीं होता. शायद वर्तमान राजनीति की परिभाष किसी ने ठीक कही है सत्ता के लिए सिद्धांत के साथ समझौता ही वर्तमान राजनीति की सटिक परिभाषा है. जम्मू-कश्मीर में भाजपा और पीडीपी का गठबंधन देश का सबसे बड़ा सियासी मिलन बना. अलग-अलग सिद्धांतों और विचारों की दोनों पार्टियों ने सियासत और सत्ता को सर्वोपरि रखा और आपस में मिल गए. बीजेपी ने पीडीपी के साथ सरकार बनाने का फैसला किया. आलोचनाओं का दौर शुरू हुआ. आलोचना कितने दिनों तक? फिर किसी नये मुद्दे में आलोचना दब गयी. सियासत जीत गयी.

दल मिले दिल नहीं

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इसी कड़ी में आगे देखें तो जनता परिवार के बारे में पहले लोगों ने पैरोडी तक बना दी थी. सियासी हलकों में गाया जाता था जनता दल के टुकड़े हजार हुए कोई यहां गिरा कोई वहां गिरा. नरेंद्र मोदी के विजय रथ पर सवार होने के बाद जनता परिवार का मिलन भी बड़ी राजनीतिक घटनाओं में शुमार हुआ. नयी दिल्ली में सामाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव के यहां दिल मिलाने जनता परिवार के सभी नेता पहुंचे. लालू यादव और नीतीश कुमार के साथ सभी नेताओं ने जनता परिवार के मिलन का एलान किया. हालांकि साईकिल पर सवार सामाजवाद ने किसी को पैडल मारने नहीं दी और विलय के पहले बिखरने का बहाना खोजा जाने लगा.

तीर और लालटेन का साथ जनता को भाया

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बिहार में बड़े भाई लालू प्रसाद यादव और छोटे भाई नीतीश कुमारका मिलन राजनीति को एक नया मुहावरा दे गया. लोकसभा चुनाव में पस्त हुए दोनों नेताओं को राष्ट्रीय राजनीति में भी एक जोरदार उभार मिल गया ओर विपक्ष ने फिर से नीतीश में भावी पीएम की संभावनाएं देखना शुरू कर दिया. भाजपा को बिहार में हराने के लिए दोनों भाईयों ने मोहन भागवत के आरक्षण वाले बयान को तीर बनाया और बिहार के डीएनए के धनुष परउसे रखकर खूब छोड़ा. आरक्षण के तीर सही जगहलगे भी.लालू ने लालटेन में बिहार के अपने पसंदीदा मुद्दे को ऐसा तेल बनाकर भरा की लालटेन जल उठी. जिस लालू के खिलाफ सियासत करके नीतीश कुमार सत्ता के सिरमौर बने थे. अपनी जमीन को थोड़ा सा ढीला देखकर उन्हें बड़े भाई की याद आयी और दोनों ने एक नया राजनीतिक इतिहास बनाया.

संसद में गतिरोध

एकदिन संसद चलने में करोड़ों रुपए खर्च होते हैं. सियासत ने संसद के मानसून सत्र को भी चलने नहीं दिया. कभी लैंड बिल मुद्दा बना तो कभी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ललित मोदी की लपेटे में आ गयीं. अभी मामले की चिंगारी ठंढी भी नहीं हुई कि राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पर आरोपों की बौछार हो गयी. कांग्रेस हंगामा करती रही. मामला ठंढा कहां से होता. व्यापमं के दंश से बीजेपी दागदार होती दिखने लगी.

कोई रणनीति काम नाआयी

बिहार को जीतने के लिए बीजेपी ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. केंद्र का पूरा मंत्रिमंडल बिहार के दौरे पर रहा. बिहार के स्टेट हैंगर से दर्जनों हेलिकॉप्टर उड़ते रहे. बीजेपी के सारे नेताओं की सारी मेहनत कोई काम न आयी. बिहार में बहार हो नीतीशे कुमार हो. एक बार फिर से नीतीशे कुमार हो जनता को भा गया. बिहार को सुशासन बाबू की मुस्कान अच्छी लगी. गद्दी जनता नेफिर सौंप कर उनके कामकाज पर मुहर लगा दी.

नेशनल हेराल्ड

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साल का अंत आते-आते नेशनल हेराल्ड का मामला भी सुर्खियों में आया. देश की सबसे बड़ी वपुरानी पार्टी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को आरोप झेलने पड़े. बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा उठाया गये इस मामले ने ऐसा सियासी तूफान खड़ा किया कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी को कोर्ट से जमानत लेनी पड़ी. देश की पुरानी पार्टी के पहरुए कटघरे में खड़ा हुआ. जैसा की होता है. इतना होने के बाद तो हंगामा बरपना ही था.

बयानों के वीर

बयानों के वीरों ने भी अपनी सियासत चमकाने के लिए कुछ ऐसे बयान दे डाले जो राजनीतिक इतिहास में किसी पन्ने पर जरूर अंकित होंगे. विदेश राज्य मंत्री वीके सिंह का दलित बच्चों का कुत्तों से तुलना करना मीडिया को मसाला दे गया. जबकि हरियाण के भाजपाई मुख्यमंत्री खट्टर ने बीफ पर बयान देकर फंस गए. बिहार में लालू यादव का बीफ वाला बयानव शैतान सवार होने वाली टिप्पणी भी खूब चर्चा में रही.अंत में डीडीसीए कलंक कथा हवा में तैरने लगी. संसद मौन नहीं है. संसद बोलती है. जरूरत बस सुनने वाले की है. कोई सुनता क्यों नहीं?

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