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पार्टियों के प्रति निष्ठा कम होने की यह भी बड़ी वजह

जो लोग यह मानते हैं कि भारतीय समाज आम तौर पर गणतंत्र पर अधिकाधिक जोर देने लगा है, उन्हें यह बात रास नहीं आती कि वंशवाद अब भी चुनावी राजनीति पर हावी है. भारतीय राजनीति में वंशवाद हावी हो चुका है. वास्तविक आंकड़े निश्चय ही खतरे का संकेत दे रहे हैं. वर्तमान लोकसभा के चालीस […]

जो लोग यह मानते हैं कि भारतीय समाज आम तौर पर गणतंत्र पर अधिकाधिक जोर देने लगा है, उन्हें यह बात रास नहीं आती कि वंशवाद अब भी चुनावी राजनीति पर हावी है. भारतीय राजनीति में वंशवाद हावी हो चुका है. वास्तविक आंकड़े निश्चय ही खतरे का संकेत दे रहे हैं. वर्तमान लोकसभा के चालीस से कम उम्र के एक-तिहाई सांसदों के नजदीकी रिश्तेदार इस समय राजनीति में हैं. भारतीय जीवन के अधिकांश क्षेत्रों में रिश्तेदारों और संबंधियों के नजदीकी लोग ही अक्सर चुनाव क्षेत्रों की दलगत राजनीति को नियंत्रित करते हैं.
भाजपा और वामपंथी दलों के लोग अब भी अपेक्षाकृत गणतंत्र वाले हैं, लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि चवालीस साल से कम उम्र वाले कांग्रेस पार्टी के दस वर्तमान सदस्यों में से नौ सदस्य आनुवांशिक परंपरा से जुड़े हैं और निश्चय ही उन्होंने संसद की अपनी सीट विरासत में पायी है. पैसा और आनुवांशिकता आपस में गहरे जुड़े हुए हैं. चुनाव आयोग के आंकड़ों पर नजर डालें, तो वर्तमान लोकसभा के बीस सबसे अमीर सांसदों में से पंद्रह आनुवांशिक परंपरा से आये हैं और इनमें से दस सांसद कांग्रेस पार्टी में हैं. जो सांसद प्रतिष्ठित राजनीतिक घरानों से आये हैं, वे उन सांसदों से पांच गुना •यादा अमीर हैं, जिनकी राजनीति में कोई पारिवारिक पृष्ठभूमि नहीं है.
उदाहरण के लिए राष्ट्रीय या क्षेत्रीय राजनीति से जुड़े जो सांसद सास, चाचा या बेटा-बेटी के रूप में हाइपर कनेक्टेड राजनीतिक परिवारों से आते हैं, वे औसतन उन सांसदों से अधिक अमीर होते हैं, जो कारोबार में लंबा और सफल कैरियर बिताने के बाद संसद में आये हैं. दूसरे लोकतांत्रिक देशों में राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री की संतानें राजनीति की चूहा दौड़ में अक्सर शामिल तो होना चाहती है, मगर उनकी पार्टियों पर उनके परिवारों का नियंत्रण नहीं होता. भारत में राहुल गांधी आनुवांशिक राजनीति के सबसे प्रमुख युवा वंशज हैं, लेकिन इस परंपरा को कई अन्य क्षेत्रीय दलों में भी दोहराया गया. भाजपा अपेक्षाकृत कम आनुवांशिक पार्टी है. भारतीय राजनीति में जब भाई-भतीजावाद का सवाल सामने आता है, तो बहुत भयावह आंकड़े सामने आते हैं.
वंशवाद से आगे आने वाले लोगों के पास क्या प्रमुख मम्मी-डैडी सांसद भावी सुल्तान हैं या फिर वे उन तुर्की युवा सैनिकों के समान हैं, जो असली शासकों को आगे बढ़ाने में मदद कर रहे हैं. मतदाओं की अनिश्चितता के कारण इनमें से कई लोगों कीअपने मां-बाप की पीढ़ी की तुलना में पार्टियों के प्रति भी निष्ठा कम होने लगी है.
(मूल आलेख का संपादित हिस्सा. वेबसाइट से साभार)
Prabhat Khabar Digital Desk
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